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छोड़कर युवावस्थामें ही धर्मोका अनुष्ठान करना

चाहिये । मुने! यह शरीर मृत्युका निवासस्थान

और आपत्तिरयोका सबसे बड़ा अड्डा है। शरीर

रोगोंका घर है। यह मल आदिसे सदा दूषित रहता

है। फिर मनुष्य इसे सदा रहनेवाला समझकर

व्यर्थ पाप क्‍यों करते हैं। यह संसार असार है।

इसमें नाना प्रकारके दुःख भरे हुए हैं। निश्चय ही

यह मृत्युसे व्याप्त है, अत: इसपर विश्वास नहीं

करना चाहिये। इसलिये विप्रवर! सुनो, मैं यह

सत्य कहता हँ देह-बन्धनको निवृत्तिके लिये

भगवान्‌ विष्णुकी ही पूजा करनी चाहिये। अभिमान

और लोभ त्यागकर काम-क्रोधसे रहित होकर

सदा भगवान्‌ विष्णुका भजन करो; क्योकि मनुष्यजन्म

अत्यन्त दुर्लभ है।

सत्तम! (अधिकांश) जीवोंको कोरि सहस्र

जन्मोंतक स्थावर आदि योवनियोंमें भटकनेके बाद

कभी किसी प्रकार मनुष्य-शरीर मिलता है।

साधु-शिरोमणे ! मनुष्य-जन्ममें भी देवाराधनकौ

बुद्धि, दानकी बुद्धि और योगसाधनाकी बुद्धिका

प्राप्त होना मनुष्योंके पूर्वजन्मकी तपस्याका फल

है। जो दुर्लभ मानव-शरीर पाकर एक बार भी

श्रीहरिकी पूजा नहीं करता, उससे बढ़कर मूर्ख,

जड़बुद्धि कौन है? दुर्लभ मानव-जन्म पाकर जो

भगवान्‌ विष्णुकी पूजा नहीं करते, उन महामूर्ख

मनुष्योंमें बिवेक कहाँ है? ब्रह्मन्‌! जगदीश्वर

भगवान्‌ विष्णु आराधना करनेपर मनोवाड्छित

फल देते हैं। फिर संसार-रूप अग्रिमे जला हुआ

कौन मानव उनकी पूजा नहीं करेगा 2 मुनिश्रेष्ठ !

विष्णुभक्तं चाण्डाल भी भक्तिहीन द्विजसे बढ़कर

है । अत: काम, क्रोध आदिको त्यागकर अविनाशी

संक्षिप्त नारदपुराण

प्रसन्न होनेपर सब संतुष्ट होते हैं; क्योकि वे

भगवान्‌ श्रीहरि हौ सबके भीतर विद्यमान हैं। जैसे

सम्पूर्णं स्थावर-जङ्गम जगत्‌ आकाशसे व्याप्त हैं,

उसी प्रकार इस चराचर विश्चको भगवान्‌ विष्णुने

व्याप्त कर रखा है । भगवान्‌ विष्णुके भजनसे जन्म

और मृत्यु दोनोंका नाश हो जाता है। ध्यान,

स्मरण, पूजन अथवा प्रणाममात्र कर लेनेपर

भगवान्‌ जनार्दन जीवके संसारबन्धनको काट देते

हैं। ब्रह्म! उनके नामका उच्चारण करनेमात्रसे

महापातकोंका नाश हो जाता है और उनकी

विधिपूर्वक पूजा करके तो मनुष्य मोक्षका भागी

होता है। ब्रह्मन्‌! यह बड़े आश्चर्यकी बात है,

बड़ी अद्भुत बात है और बड़ी विचित्र बात है कि

भगवान्‌ विष्णुके नामके रहते हुए भी लोग जन्म-

मृत्युरूप संसारम चक्र काटते हैं'। जबतक

इन्द्रियाँ शिथिल नहीं होतीं और जबतक रोग-

व्याधि नहीं सताते, तभीतक भगवान्‌ विष्णुकी

आराधना कर लेनी चाहिये! जीव जब माताके

गर्भसे निकलता है, तभी मृत्यु उसके साथ हो लेती

है। अतः सबको धर्मपालनमें लग जाना चाहिये।

अहो! बड़े कष्टकी बात है, बड़े कष्टकी बात है,

बड़े कष्टकी बात है कि यह जीव इस शरीरको

नाशवान्‌ समझकर भी धर्मका आचरण नहीं करता।

नारदजी ! बाँह उठाकर यह सत्य-सत्य और

पुनः सत्य बात दुहरायी जाती है कि पाखण्डपूर्ण

आचरणका त्याग करके मनुष्य भगवान्‌ वासुदेवकी

आराधनापे लग जाय। क्रोध मानसिक संतापका

कारण है। क्रोध संसारबन्धनमें डालनेवाला है

और क्रोध सब धर्मोका नाश करनेवाला है। अतः

क्रोधको छोड़ देना चाहिये। काम इस जन्मका

भगवान्‌ नारायणका भजन करना चाहिये। उनके | मूल कारण है, काम पाप करानेमें हेतु है और

१. अहो चित्रमहो चित्रमहो चित्रमिदं द्विज। हरिनाप्नि स्थिते लोक: संसारे परिवर्तते॥

(ना° पूर्व० ३४। ४८)

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