* मत्स्यपाधवकी महिमा, समुद्रम मार्जन आदिकी विधि एवं अष्टाक्षर-मनत्रकी महत्ता *
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करके आपके श्रीअङ्ग सुशोभित हों | सच्चिनन्दस्वरूप , दक्षिणदलमें संकर्षणका, पश्चिमदलमें प्रगुम्नका,
श्रीनारायणको नमस्कार है।'
"ॐ नमः' यह अशरक्षर-मन्त्रके प्रत्येक
अक्षके साथ लगाकर पृथक्-पृथक् पूजा करे
अधवा समस्त मूल-मन्त्रका एक ही साथ उच्चारण
करके पूजन करे।
धूप-मन्त्र
वनस्पतिरसो दिव्यो गन्धाढ्यः सुरभिश्च ते।
मया निवेदितो भक्त्या धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ नमो नारायणाय नमः
भगवन्! यह धूप सुगन्धद्र्वयोसे मिश्रित
वनस्पतिका दिव्य रस है, अतएव अत्यन्त सुगन्धित
है; मैंने भक्तिपूर्वक इसे आपकी सेवामें अर्पित
किया है, आप इसे स्वीकार कर । सच्विदानन्दस्वरूप
श्रीनारायणको नमस्कार है।'
दीप-मन्त्र
सूर्यचन्रमसोज्योतिर्विदयुदग्न्योस्तथैव च।
त्वमेव ज्योतिषां देव दीप्येऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ नमो नारायणाय नमः
"देव ¦ आप ही सूर्य और चन्द्रमाकी बिजली
और अग्रिकी तथा ग्रहों और नक्षत्रोंकी ज्योति हैं।
यह दीप ग्रहण कौजिये। सच्चिदानन्दस्वरूप
श्रीनारायणको नमस्कार है।'
नैवेह्य-मन्त्र
अत्रं चतुर्विधं चैव रसैः षड्धिः समन्वितम्।
मया निवेदितं भक्त्या नैवेद्यं तब केशव ॥
ॐ नमो नारायणाय नमः
“केशव! मैंने [मधुर आदि] छः रसोंसे युक्त
चार प्रकारका (भक्ष्य, भोज्य, लेहा, चोष्य) अन्न
आपको भक्तिपूर्वक समर्पित किया है। आप यह |
नैवेद्य ग्रहण करें। सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीनारायणकों
नमस्कार है।'
उत्तरदलमें अनिरुद्धका; अग्रिकोणवाले दलमें
वाराहका, नैररत्यकोणमें नरसिंहका, वायव्यकोणमे
माधवका तथा ईशानमें भगवान् त्रिविक्रमका न्यास
करे । फिर अष्टाक्षरदेवके सम्मुख गरुड़की स्थापना
करे। भगवान्के वामभागमें चक्र और दक्षिणभागे
शङ्खकी स्थापना करे । इसी प्रकार उनके दक्षिणभागमें
महागदा कौमोदकी और वामभागे शाङ्ग नामक
धनुषको स्थापित करे। दक्षिणभागे दो दिव्य
तरकस और वामभागे खद्भका न्यास करे।
दक्षिणभागे श्रीदेवी और वामभागमें पुष्टिदेवीकौ
स्थापना करे। भगवानके सामने वनमाला, श्रीवत्स
ओर कौस्तुभ रखे। फिर पूर्व आदि चारो दिशाऑमें
हदय आदिका न्यास करे । कोणमे देवदेव विष्णुके
अस्त्रका न्यास करे । पूर्व आदि आठ दिशाओंमें
तथा ऊपर और नीचे तान्त्रिक मन्त्रोंसे क्रमशः
इन्द्र, अग्नि, यम, निर्क्रति, वरुण, वायु, कुबेर,
ईशान, अनन्त तथा ब्रह्माजीका पूजन करे । इस
प्रकार मण्डलमें स्थित देवेश्वर जनार्दनका पूजन
करके मनुष्य निश्चय ही मनोवाज्छित भोगोंको प्राप्त
करता है। इसी विधिसे पूजित मण्डलस्थ भगवान्
जनार्दनका जो दर्शन करता है, वह भी अविनाशी
विएणुमें प्रवेश करता है। जिसने उपर्युक्त विधिसे
एक बार भी श्रीकेशवका पूजन किया है, वह
जन्ममृत्यु ओर जरा अवस्थाको लाँघकर भगवान्
विष्णुके पदको प्राप्त होता है। “नमः” सहित
ॐकार जिसके आदिमें और “नमः' जिसके
अन्ते है, वह " ॐ नमो नारायणाय नमः' यह
तेजस्वी मन्त्र सम्पूर्ण तत्त्वोंका मन्त्र कहलाता है ।
इसी विधिसे प्रत्येकको गन्ध, पुष्प आदि वस्तु
क्रमशः निवेदन करनी चाहिये । इसी तरह क्रमशः
आठ मुद्रां बाँधकर दिखाये। फिर मन्त्रवेत्ता पुरुष
पूर्वोक्त अष्टदल कमलके पूर्वदलमें वासुदेवका, | ' ॐ नमो नारायणाय ' इस मूलमन्त्रका एक सौ