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१७१ सू ९३ १३१

१०२२. पशून चित्रा सुभगा प्रथाना सिन्धुर्न क्षोद उर्विया व्यश्वैत्‌ ।

अमिनती दैव्यानि व्रतानि सूर्यस्य चेति रश्मिभिर्दृशाना ॥१२॥

उज्ज्वल वर्णवाली, सौ भाग्यशालिनी देवी उषा गौशाला से निकले हुए पशुओं के समान विस्तार को प्राप्त

होती है । नदियों में बढ़ते जल के समान फंलती हुई जातौ है । ये देवौ उषा देवो के श्रेष्ठ कर्मों से विचलित नही

होतीं और सूर्यं की रश्मियों सौ दीखती हुई प्रतोत होती दै ॥१२ ॥

१०२३. उषस्तच्चित्रमा भरास्मभ्यं वाजिनीवति । येन तोकं च तनयं च धामहे ॥१३ ॥

हयनों को प्रारम्भ करने वालो हे उपे ! हमें वह विलक्षण ऐश्वर्य प्रदान करें, जिससे हम सन्तानादि का

पोषण कर सकें ॥१३ ॥

१०२४. उषो अद्येह गोमत्यश्वावति विभावरि । रेवदस्मे व्युच्छ सूनृतावति ॥१४॥

गौ ओं ( पोषक तत्त्वो) ओर अश्वो (पराक्रम) से युक्त यज्ञ कर्मो की प्रेरक हे उपे आप आज हमें धन-धान्य

से परिपूर्ण करें ॥१४ ॥

१०२५. युक्ष्वा हि वाजिनीवत्यश्वाँ अद्यारुणाँ उषः। अथा नो विश्वा सौ भगान्या वह ॥१५॥

हवनों को प्रारम्भ करने वाली हे उषे |! अरुणाध अश्वो ( किरणों) को अपने रथ से युक्त करें और हमें विश्व

के सब सौभाग्य प्रदान करें ॥१५ ॥

१०२६. अश्विना वर्तिरस्मदा गोमदस्रा हिरण्यवत्‌। अर्वाग्रथं समनसा नि

यच्छतम्‌ ॥९६॥

शत्रुओं का नाश करने वाले हे अश्विनीकुमारो आप गौ ओं ओर स्वर्णमय रथ को मनोयोग पूर्वक हमारी

ओर प्रेरित करें ॥१६ ॥

१०२७. यावित्था श्लोकमा दिवो ज्योतिर्जनाय चक्रथुः ।

आ न ऊर्जं वहतमश्विना युवम्‌ ॥१७ ॥

है अश्विनीकुमारों ! आप घ्रुलोक से प्रशंसा योग्य प्रकाश लाकर लोगों का हित करते हैं, ऐसे आप हमें अन

से पुष्ट करे ॥१७ ॥

१०२८. एह देवा मयोभुवा दस्रा हिरण्यवर्तनी । उषर्बुधो वहन्तु सोमपीतये ॥१८ ॥

देवौ उषा के साथ जाग्रत्‌ अश्व (शक्तिप्रवाह) स्वर्णिम प्रकाश में स्थित दुःख निवारक एवं सुखदायी

अश्विनीकुमारो को इस यज्ञ मे सोमपानं के लिये लाये ॥६८ ॥

[ सूक्त - ९३ |

[ ऋषि-गोतम राहूगण । देवता-अग्नी-पोम देवता । छन्द -१-३ अनुष्टुप्‌ ; ४-७, १२ वरिष; ८ जगती अथवा

त्रिष्टप्‌; ९-१६ गायत्री ]

१०२९. अग्नीषोमाविपं सु मे शृणुतं वृषणा हवम्‌।

प्रति सूक्तानि हर्यतं भवतं दाशुषे मयः ॥१ ॥

हे शक्तिवान्‌ अम्निदेव और सोमदेव ! आप हमारे आवाहन को सुने ओर हमारे उत्तम वचनों से आप हर्षित

हों । हम हविदात्राओं के लिये सुखकारी हों ॥६ ॥

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