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अः ३ ]

पञ्चम अंश

अ पचा जदा ३१५

समुद्राद्रिनदीद्रीपवनपत्तनभूषणा ॥

्रापखर्वटखेटाख्या समस्ता पृथिवी शुभे ॥ १३

समस्तवह्वयोऽम्पांसि सकलाश्च समीरणा: ।

ग्रहर्षतारकाचित्रं विपानझतसंकुछम्‌ ॥ १४

अवकाशमशेषस्यथ यहदाति नभःस्थलम्‌ ।

भूर्लोकश्च भुवर्त्नकस्स्वर्लोकोऽथ महर्जनः ॥ १५

तपश्च ब्रह्मलोकश्ष ब्रह्माण्डमखिलं शुभे । .,

तदन्तरे स्थिता देवा दैत्यगन्धर्वचारणाः ॥ १६

महोरगास्तथा यक्षा राक्षसाः प्रेतगुह्मका: ।

मनुष्याः पशवश्चान्ये ये च जीवा यशस्विनि ॥ १७

नैरन्तःस्थैरनन्तोऽसौ सर्वगः सर्वभावनः ॥ १८

रूपकर्मस्वरूपाणि न परिच्छेदगोचरे ।

सस्याखिलप्रमाणानि स विष्णुर्गर्भगस्तव ॥ १९

तवं स्वाहा त्वं खधा विद्या सुधा त्वं ज्योतिरम्बरे ।

त्वं॑सर्वल्ेकरक्चार्थमवतीर्णां महीतले ॥ २०

प्रसीद देवि सर्वस्य जगतइशं शुभे कुरु ।

है शुभे ! समुद्र, पर्वत, नदी, द्वीप, बन और नगरोंसे

सुशोधित तथा ग्राम, खर्वट और खेटादिसे सम्पन्न समस्त

पृथिवो, सम्पूर्ण अग्रि ओर जल तथा समस्त वायु, ग्रह,

नक्षत्र एवं तारागणोंसे चित्रित तथा सैकड़ों विमानोंसे पूर्ण

सबको अवकाश देनेवाला आकाश, भूलोंक, भुवलोंक,

स्वर्त्नक तथा मह, जन, तप और बह्यल्ेकपर्यन्त सम्पूर्ण

ब्रह्माप्ड तथा उसके अन्तर्वतीं देव, असुर, गन्धर्व,

चारण, नाग, यक्ष, साक्षस, प्रेत, गुह्यक, मनुष्य, पु

और जो अन्यान्य जोव हैं, हे यशास्विनि ! वे सभी अपने

अन्तर्गत होनेके कारण जो श्रोअनन्त सर्वगामी और

सर्वभावन हैं तथा जिनके रूप, कर्म, स्वभाव तथा

[ बालत्व महत्व आदि ] समस्त परिमाण परिच्छेद

(विचार) के विषय नहीं हो सकते वे ही श्रीनिष्णु-

भगवान्‌ तेरे गर्भमें स्थित है ॥ ९३-- १९ ॥ तू ही स्वाहा,

स्वधा, विद्या, सुधा और आकाशस्थिता ज्योति है ।

सम्पूर्ण लोकरकी रक्षाके लिये ही तूने पृथिबीमें अचत

लिया है॥ २० ॥ हे देवि ¦ तू प्रसन्न हो। हे शुभे ! तू

सम्पूर्ण जगतका कल्याण कर। जिसने इस सम्पूर्ण

जगतको धारण किया है उस प्रभुको तू प्रीतिपूर्वक अपने

प्रीत्या तं धारयेश्ानं धृ्ते येनाखिलं जगत्‌ ॥ २९१ | गर्भमें घारण कर ॥ २६॥

नम ए

इति श्रीविष्णुपुराणे पश्चमेंडशे द्वितीयोऽध्यायः ॥ २ ॥

---- ॥ $ है:

तीसरा अध्याय

भगवान्‌का आविर्भाव तथा योगमायाद्वारा कंसकी वज्चना

श्ीपगरकार उवाच

एबं संस्तूयमाना सा देवरदेवपधारयत्‌ ।

गर्भेण पुण्डरीकाक्षं जगतखराणकारणम्‌ ।। ९

ततो5खिलजगत्पदबोधायाच्युतभानुना ।

देवकीपूर्वसन्ध्यायामाविरभूतं यहात्थना ॥ २

9 2 ५ म्‌ |

बभूव सर्वलोकस्य कौमुदी यथा ॥ ३

सन्तस्पन्तोषमधिकं प्रशम॑ चण्डमारुता: ।

प्रसादं निम्नगा याता जायमाने जनार्दने ॥ ४

वि-पु-१९-

श्रीपरादार्जी छोल्के--हे मैत्रेय ! देवता ओसि इस

प्रकार स्तुति की जाती हुई देवकीजीने संसारको रक्षाके

कारण भगवान्‌ पुण्डरीकाक्षको गर्भम धारण किया ॥ १ ॥

तदनन्तर सम्पूर्ण संसाररूप कमलको विकसित करनेके

लिये देवकीरूप पूर्व॑स्य महात्मा अच्युतरूप

सूर्यदेवका आविर्भाव हुआ॥ २॥ चन्द्रगाकी चाँदनीके

समान भगवान्‌का जन्म दिन सम्पूर्ण जगत्‌्को आह्वादित

करनेवाला हुआ और उस दिन सभी दिशते अत्यन्त

निर्मल हो गयौ ॥ ३ ॥

श्रीजनार्दनके जन्म लेनेपर सन्तजरनोको परम सन्तोष

हुआ, प्रचण्ड वायु शान्त हो गया तथा नदियाँ अत्यन्त

स्वच्छ हो गयीं ॥ ४ ॥

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