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दिन या रात्रिका ज्ञान होनेपर दिनमान या रात्रिमान-

घरीसे), नवमांशके लिये ९ से तथा होरके लिये

२ से भाग देकर शेषद्रारा सबका ज्ञान करना

चाहिये । इस प्रकार जिनके जन्म-समय आदिका

ज्ञान न हो उनके लिये इन सब बातोंका विचार

करना चाहिये ॥ ३४७--३५० ॥

( द्रेष्काणका स्वरूप-- ) हाथमें फरसा लिये

हुए काले रंगका पुरुष, जिसको आँखें लाल हों

और जो सब जीवोंकी रक्षा करनेमें समर्थ हो,

मेषके प्रथम द्रेष्काणका स्वरूप है। प्याससे

पीडित एक पैरसे चलनेवाला, घोड़ेके समान

मुख, लाल वस्त्रधारी और घड़ेके समान आकार-यह

मेषके द्वितीय द्रेष्काणका स्वरूप है। कपिलवर्ण,

करूरदृष्टि, क्रूरस्वभाव, लाल वस्त्रधारी ओर अपनी

प्रतिज्ञा भड़ करनेवाला--यह मेषके तृतीय द्ेष्काणका

स्वरूप है। भूख और प्याससे पीड़ित, कटे-छटे

घुँघराले केश तथा दूधके समान धवल वस्त्र-यह

वृषके प्रथम द्रेष्काणका स्वरूप है । मलिनशरीर,

भूखसे पीडित, बकरेके समान मुख और कृषि

आदि कार्योंमें कुशल--यह वृषके दूसरे द्रेष्काणका

रूप है। हाथीके समान विशालकाय, शरभ*के

समान पैर, पिङ्गल वर्ण ओर व्याकुल चित्त-यह

वृषके तीसरे द्रेष्काणका स्वरूप है। सुईसे सीने-

पिरोनेका काम करनेवाली, रूपवती, सुशीला तथा

संतानहीना नारी, जिसने हाथको ऊपर उठा रखा

है, मिधुनका प्रथम द्रेष्काण है । कवच और

धनुष धारण किये हुए उपवनमेँ क्रीडा करनेकी

इच्छासे उपस्थित गरुडसदृश मुखवाला पुरुष

मिथुनका दूसरा द्रेष्काण है। नृत्य आदिकौ

कलामें प्रवीण, वरुणके समान रत्रोंके अनन्त

भण्डारसे भरा-पूरा, धनुर्धर वीर पुरुष मिथुनका

संक्षि नारदपुराण

तीसरा द्रेष्काण है। गणेशजीके समान कण्ठ,

शूकरके सदृश मुख, शरभके-से चैर और वनमें

रहनेवाला- यह कर्कके प्रथम द्रेष्काणका रूप है ।

सिरपर सर्पं धारण किये, पलाशकी शाखा पकड़कर

रोती हुई कर्कशा स्त्री--यह कर्कके दूसरे द्रेष्काणका

स्वरूप है। चिपटा मुख, सर्पसे वेष्टित, स्त्रीकी

खोजमें नौकापर बैठकर जलमें यात्रा करनैवाला

पुरुष-यह कर्कके तीसरे द्रेष्काणका रूप

है ॥ ३५१--३५६॥ सेमलके वृक्षके नीचे गीदड़

और गीधको लेकर रोता हुआ कुत्ते-जैसा मनुष्य- यह

सिंहके प्रथम द्रेष्काणका स्वरूप है । धनुष और

कृष्ण मृगचर्म धारण किये, सिंह-सदृश पराक्रमी

तथा घोड़ेके समान आकृतिवाला मनुष्य-यह

सिंहके दूसरे द्रेष्काणका स्वरूप है। फल और

भोज्यपदार्थ रखनेवाला, लंबौ दाढ़ीसे सुशोभित,

भालू-जैसा मुख ओर वानरोकि-से चपल स्वभाववाला

मनुष्य-सिंहके तृतीय द्रेष्काणका रूप है । फूलसे

भे कलशवाली, विद्याभिलापिणी, मलिन वस्त्रधारिणी

कुमारौ कन्या- यह कन्या राशिके प्रथम ट्रेष्काणका

स्वरूप है । हाथमे धनुष, आय-व्ययका हिसाब

रखनेवाला, श्याम-वर्णं शरीर, लेखनकार्यमे चतुर

तथा रोएँसे भरा मनुष्य- यह कन्या राशिके दूसरे

द्रेष्काणका स्वरूप है। गोरे अङ्गोपर धुले हुए

स्वच्छ वस्त्र, ऊँचा कद, हाथमे कलश लेकर

देवमन्दिरकौ ओर जाती हुई स्त्री-यह कन्या

राशिके तीसरे द्ेष्काणका परिचय है ॥ ३५७--३५९ ॥

हाथमें तराजू ओर बटखरे लिये बाजारमे वस्तुं

तौलनेवाला तथा बर्तन-भाँड्रोंकी कीमत कूतनेवाला

पुरुष तुलाराशिका प्रथम द्रेष्काण है। हाथमें

कलश लिये भूख-प्याससे व्याकुल तथा गीधके

समान मुखवाला पुरुष, जो स्त्री-पुत्रके साथ

१. पुराणोंमें शरभके आठ पैर कहे गये हैं और उसे व्याघ्र-सिंहसे भौ अधिक बलिष्ठ एवं भयङ्कर बताया गया

है; परंतु यह अब कहीं उपलब्ध नहीं होता। शरभका दूसरा अर्थ ऊँट भी है।

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