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* यलरामजीकी ब्रजयात्रा, श्रीकृष्णद्वारा रुक्मिणीका हरण तथा शब्बरासुरका वध « ३९५

शम्बरासुरको भेंट कर दिया । उसके घरमे मायावती

नामकौ एक युवती गृहस्वामिनी थी । वह सुन्दरी | कालरूपी शम्बरको मार डाला ओर आकाशमार्गसे

रसोइयोंका आधिपत्य करती धी । जब मछलीका पेट । उड़कर वे मायावतीके साथ अपने पिताके नगरमें

चरा गया, तव उसमें मायाबतीने एक अत्यन्त सुन्दर | आये । अन्तःपुरे उत्तरनेपर मायाबतीसहित प्रद्युम्नको

बालक देखा, जो जले हुए कामरूपी वृक्षका प्रथम | देखकर श्रोकृष्णकी रानियाँ प्रसन्न हो अनेक प्रकारके

था। "यह कौन है? किस प्रकार मछलीके | संकल्प करने ल्गौ । रुक्मिणीकी दृष्टि प्रदयुप्रकी

आ गया?" इस प्रकार कौतूहलमें पड़ी हुई उस | ओरसे हटती ही नहीं थी । वे स्नेहे भरकर कहने

कृशाङ्गी तरुणीसे नारदजीने कहा-' यह सम्पूर्ण | लगीं--“यह अवश्य ही किसी बड़भागिनोका पुत्र

जगतूकी सृष्टि, पालन और संहार करनेवाले भगवान्‌ | है। अभी इसकी युवावस्थाका आरम्भ हो रहा है।

श्रीकृष्णका पुत्र है। इसे शम्बरासुरने सौरीसे चुराकर | यदि मेरा पुत्र प्रद्युप्न जीवित होता तो उसकी भी

समुद्रमें फेंक दिया और वहाँ मत्स्थने निगल लिया | यही अवस्था होती। बेटा! तुमने अपने जन्मसे

था। वही यह बालक है, जो आज तुम्हारे हाथ आ | किस सौभाग्यशालिनी जननीकी शोभा बढ़ायी है?

गया। सुन्दरी! यह मनुष्यो रत्न है। तुम पूर्ण | अथवा तुम्हारे प्रति मेरे हदये जैसा स्नेह उमड़ रहा

विश्वासके साथ इसका पालन करो।' है, उसके अनुसार मैं यह स्पष्टरूपसे कह सकती

देवर्षिं नारदके यों कहनेपर मावावतीने उस ' हूँ कि तुम श्रीहरिके पुत्र हो।'

बालकका पालन किया | उसका अत्यन्त सुन्दर रूप इसी समय श्रीकृष्णके साथ नारदजी वहाँ

देखकर वह मोहित थी और बचपनसे ही अत्यन्त | आये। उन्होंने अन्तःपुरमें रहनेवाली रुक्मिणी देवीसे

अनुरागपूर्वक उसकी सेवा करने लगी। जिस समय | प्रसन्नतापूर्वक कहा--'सुभू! यह तुम्हारा पुत्र प्रद्युम्न

वह बालक युवावस्थाकी संधिसे सुशोभित हुआ, उस | है। इस समय शम्बरासुरको मारकर यहाँ आया है।

समय वह गजगामिनी बाला प्रद्युप्रके प्रति कामनायुक्त | कुछ वर्ष पहले शम्बरासुरने ही तुम्हारे पुत्रको

भाव प्रकट करने लगी। मायावतीने महात्मा प्रद्युम्रको | सृतिकागृहसे हर लिया था। यह तुम्हारे पुत्रकी सती

सारी माया सिखा दी। उसका मन उन्होंमें रमता था | भार्या मायावती है। यह शम्बरासुरकी पत्नी नहीं है।

और उसके नेत्र सदा उन्हीको निहारते रहते थे। ` इसका कारण सुनो। जब शंकरजीके कोपसे कामदेवका

मायावतीको अपने प्रति आसक्त होते देख कमलनयन नाश हो यया, तब उनके पुनर्जन्मकी प्रतीक्षा करती

प्रयुम्ने कहा--/ तू मातृभावका परित्याग करके यह | हुई रहठिने अपने मायामय रूपसे शम्बरासुरको

विपरीत भावना कैसे करती है?' मायावतोने कहा--' तुम | मोहित किया। देवि! तुम्हारे पुत्ररूपमें ये कामदेव

मेरे नहीं, भगवान्‌ श्रोकृष्णके पुत्र हो । तुम्हें कालरूपी | ही अवतीर्ण हुए हैं और यह उन्हींकी पत्नौ रति है।

शम्बरे चुराकर समुद्रम कैक दिया था। तुम मुझे | कल्याणी} यह तुम्हारी पुत्रवधू है, इसमें किसी

मछलीके पेटसे प्राप्त हुए हो । प्रिय ! तुम्हारी पुत्रवत्सला | प्रकारको विपरीत शङ्का न करना ।'

माता आज भी तुम्हारे लिये रोती है।' यह सुनकर रुक्मिणी और श्रीकृष्णको बड़ा

मायावतीके यों कहनेपर पहाबली प्रद्युम्रका | हर्षं हुआ! समस्त द्वारकापुरी * धन्य! धन्य!

चित क्रोधसे व्याकुल हो उदा । उन्होने शम्बगसुरको कहने लगी । चिरकालते खोये हुए पुत्रके साथ

युद्धके लिये ललकारा और उसकी सारी दैत्यसेनाका | माता रुक्मिणीका मिलन देख द्वारकापुरीके सब

संहार करके सातों मायाओंकों जीतकर उसके ऊपर | लोगोंको बड़ा विस्मय हुआ।

[र

आटवी मायाका प्रयोग किया सम्यतसुरको बट कर दिया। उसके यरने [मे किया। उत मारे हे मायासे प्रद्य॒म्नने

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