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परशुरामं द्वारा कातंवोयं-वध | [ ३१६

नाना शस्त्रसमाकीर्णं नानारत्नपरिच्छदम्‌ ।

दशनल्वप्रमाणं च णतवाजियूतं नूपः ।।२०

युते बाहुसहस्रं ण नानायुघवरेण च ।

बभौ स्वर्लोकमा रोक्ष्यन्देहाते सुरती यथा ।>१

परशुराम ने क्रोध करके उस भहाबली पुष्कराक्ष को बिदीर्ण करके

फिर कर. होकर उसकी जो परम विशाल सेनः थी उसको भी भस्मीभूत

करके जला दिया जिस तरह से दावाग्नि बड़े भारी बन को जला दिया

करता है ।१५। मन और वायु के सहश ओज वाले परशुराम जहां-जहाँ पर

भी दौड़कर जाते थे और अपने फरशासे प्रहार कर रहे ये वहीं-वहीं पर

अश्व-रथ-हाथी और मानव सेनिक कट-कटकर छिन्न भिन्न शरीर वाले

सेकडों ही गिर गये थे । १६। अत्यन्त बल वाले राम ने बहाँ युद्ध भूमि में

अपने परश से जिनको मारकर गिरा दिया था अथवा अधमरे होकर भिर

गये थे वै उस समय में मूच्छित होकर पड़े हुए चीत्कार कर रहे थे और हे

तात ! हे माता! हम मर रहे हैं--यह कहते हुए भस्मीभूत हो गये थे । १७।

मुहत्त' मांत्र में ही अर्थात्‌ दो घड़ियों के समय में भागेव ने उस पुष्कराक्ष की

सम्पूर्ण सेना को तथा बहुत से राजाओं के समुदाय को जिनके स्वामी निहत

सो गये हैं एवं अत्यन्त आतुर नौ अक्षौहिणी सैन्य को निहत कर दिया था

।१८। जब यह देखा गया था कि पृष्कराक्ष जैसा महाबली मर गयां तो

कात्त वीर्याजु न जिसका महान बल-वीर्य था स्वयं एक सुवणं से निमित रथ

पर समास्थित होकर वहाँ पर युद्ध करने के लिए समागत हो गया था ।१६।

उसका वह ठेस) रथ था जिसमें अनेक भांति के शस्त्र भरे हुए ये ओर

विविध भाँति के रत्नों का परिच्छद था । उसका प्रमाण दशनत्व था और

उसमें सौ अश्व लगे हुए थे ।२०। वह राजा भी अनेक आयुध धारी सहल

बाहुओं से युक्त था। उसकी उस समय में ऐसी शोभा हो रही थी

जैसे कोई पुण्यात्मा देह के अन्त समय में स्वगंलोक को जा रहा होवे ।२१।

पुत्रास्तस्य महावीर्या शतं युद्धविशारदाः ।

सेनाः संव्यूह्य संतस्थुः संग्रामे पितुराज्ञया ।२२

कात्तंवीयेस्तु बलवानुमं इष्ट वा रणाजिरे ।

कालांतकयमप्रख्यं यौदध ` समुपचक्रमे ॥ २

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