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आहुति समर्पित करे। भिक्षाद्वारा प्राप्त यवनिर्मित

भोज्यपदार्थ, फल, मूल, दुग्ध, सत्तू और घृतका

आहार यज्ञकालमें विहित है॥ १--३ ॥

पार्वति! लक्ष-होमकी समाप्ति-पर्यनत एक

समय भोजन करे। लक्ष-होमकी पूर्णाहुतिके

पश्चात्‌ गौ, वस्त्र एवं सुवर्णकी दक्षिणा दे। सभी

प्रकारके उत्पातोंके प्रकट होनेपर पाँच या दस

ऋत्विजोंसे पूर्वोक्त यज्ञ करावे। इस लोकमें ऐसा

कोई उत्पात नहीं है, जो इससे शान्त न हो जाय।

इससे बढ़कर परम मद्गलकारक कोई वस्तु नहीं

है। जो नरेश पूर्वोक्त विधिसे ऋत्विजोंद्वारा कोटि-

होम कराता है, युद्धमें उसके सम्मुख शत्रु कभी

नहीं ठहर सकते हैं। उसके राज्यमें अतिवृष्टि,

अनावृष्टि, मूषकोपद्रव, टिट्ठीदल, शुकोपद्रव एवं

भूत-राक्षस तथा युद्धमें समस्त शत्रु शान्त हो जाते

हैं। कोटि-होममें बीस, सौ अथवा सहस्र

ब्राह्मणोंका वरण करे। इससे यजमान इच्छानुकूल

धन-वैभवकी प्राप्ति करता है। जो ब्राह्मण, क्षत्रिय

अथवा वैश्य इस कोटिहोमात्मक यज्ञका अनुष्ठान

करता है, वह जिस पदार्थकी इच्छा

करता है, उसको प्राप्त करता है। वह सशरीर

स्वर्गलोकको जाता है ॥ ४-९५, ॥

गायत्री-मन्त्र, ग्रह-सम्बन्धी मन्त्र, कृष्माण्ड-

मन्त्र, जातवेदा--अग्नि- सम्बन्धी अथवा रेन,

वारुण, वायव्य, वाम्य, आग्नेय, वैष्णव, शाक्त,

शैव एवं सूर्यदेवता-सम्बन्धी मन्त्रोसे होम-पुजन

आदिका विधान है। अयुत-होमसे अल्प सिद्धि

होती है । लक्ष-होम सम्पूर्ण दुःखोंको दूर करनेवाला

है। कोरि-होम समस्त क्लेशोंका नाश करनेवाला

और सम्पूर्णं पदार्थोंको प्रदान करनेवाला है । यव,

धान्य, तिल, दुग्ध, घृत, कुश, प्रसातिका (छोटे

दानेका चावल), कमल, खस, बेल और आप्रपत्र

होमके योग्य माने गये हैं। कोटि-होममें आठ

हाथ और लक्ष-होममे चार हाथ गहरा कुण्ड

बनावे। अयुत-होम, लक्ष-होम और कोटि-

होममें घृतका हवन करना चाहिये ॥ १०॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणे “युद्धजवार्णवके अन्तर्गत अचयुत-लक्ष-कोटिहोम *

नामक एक सौ उनचातवां अध्याय पूरा हुआ॥ १४९ #

(~

एक सौ पचासवाँ अध्याय

मन्वन्तरोका वर्णन

अग्निदेव कहते है -- अब मैं मन्वन्तरोका

वर्णन करूँगा। सबसे प्रथम स्वायम्भुव मनु हुए

हैं। उनके आग्नीध्र आदि पुत्र थे। स्वायम्भुव

मन्वन्तरमें यम नामक देवता, ओर्व आदि सतर्षि

तथा शतक्रतु इन्द्र थे। दूसरे मन्वन्तरका नाम था--

स्वारोचिष; उसमें पारावत और तुषित नामधारी

देवता थे । स्वरोचिष मनुके चैत्र ओर किम्पुरुष

आदि पुत्र थे। उस समय विपश्चित्‌ नामक इन्दर

तथा उर्जस्वन्त आदि द्विज (सपर्षि) थे। तीसरे

मनुका नाम उत्तम हुआ; उनके पुत्र अज आदि थे।

उनके समयमे सुशान्ति नामक इन्र, सुधामा आदि

देवता तथा वसिष्ठके पुत्र सप्तर्षि थे। चौथे मनु

तामस नामसे विख्यात हुए; उस समय स्वरूप

आदि देवता, शिखरी इन्द्र, ज्योतिहोंम आदि

ब्राह्मण (सप्र्धि) थे तथा उनके ख्याति आदि नौ

पुत्र हुए॥ १--५॥

रैवत नामक पाँचवें मन्वन्तरमें वितथ इन्द्र,

अमिताभ देवता, हिरण्यरोमा आदि मुनि तथा

बलबन्ध आदि पुत्र थे। छठे चाक्षुष मन्वन्तरमें

मनोजव नामक इन्द्र और स्वाति आदि देवता थे।

सुमेधा आदि महर्षि और पुरु आदि मनु-पुत्र थे।

तत्पश्चात्‌ सातवें मन्वन्तरमें सूर्यपुत्र श्राद्धदेव मनु

हुए। इनके समयमें आदित्य, वसु तथा रुद्र आदि

देवता; पुरन्दर नामक इन्द्र; वसिष्ठ, काश्यप, अत्रि,

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