वलाहाकादि सप्त सेनापति वध वर्णत |] [ ३२१
सप्तलोकविमर्देन तेन ष्ट्वा महाबलाः ।
प्रोषिता ललितासेन्यं जेतुकामेन दुरधिया ॥१८
ते पतन्तो रणतलमुच्चलच्छत्रपाणयः ।
गक्तिसेनामभिमुखं सक्रोधमभिदुद्ुवुः । १६
मुहुः किलकिलारातरर्घोषियंतो दिशो दश ।
देव्यास्तु सैनिकं यत्र तत्र ते जभ्मुरुद्धता: ॥२०
सैन्यं च ललितादेव्या: सन्नद्धं गस्त्रभीषणम् ।
अभ्यमित्रीणमभवदुवद्रश्रङुटिनिष्टुरम् २१
ये मद से उद्धत कंकसेय तीन सौ अक्षौहिणी उस सेना को लेकर इस
सम्पूर्ण विश्व में प्रवेश मानों कर रहे थे वहाँ से रबाना हुए थे ।१५। ये
धारण किए हुए क्रोध से लाल हो रहे थे और सूर्यमण्डल के समान उद्दीप्त
कंकट यै) ये शास्त्रों के आभरणों से परम उद्दीप्त थे और इनके दीप्त एवं
ऊध्वंकेश थे ऐसे परम घोर ये वहाँ से चल दिये शे । १६ सम्पूर्ण जगत के
विजय करने वाले महान भण्डासुर के द्वारा परम उद्धत इनको समस्त सात
लोकों का प्रमथन करने के लिए ही भेजा गया था ।१७। जीतने की कामना
वाले सातों लोकों को विमदित करने वाले उसने अपनी दृष्ट बुद्धि से ही
महान बलवान इनको ललिता देवी की सेना में भेजा था ।१८। ये हाथों में
छत्नों को ऊपर उठाते हुए रणस्थल में जा रहे थे ओर फिर शक्ति सेना से
सामने बड़े ही कोध के साथ धावा बोल दिया था।१६। बार-बार किल-
कारियों की ध्वतियों से दशों दिशाओं को घोषित कर रहे थे तथा जहाँ
पर देवी की सेना थी वहाँ पर उद्धत थे ।२०। ललिता देवी की सेता भी
सन्नद्ध थी और शस्त्रास्त्रों से वह सेना परम भीषण थी । देवी की सेना भी
अपनी भूकुटी तानकर कठोरता से शत्रु के समक्ष में हो गयी थी ।२६१।
पाशिन्यो मुसलिन्यश्च चक्रिण्यश्चापरा मुने ।
मुद्गरिण्य: पट्टिशिन्यः कोदं डिन्यस्तथापराः ॥२२
अनेकाः गक्तयस्तीन्ना ललितासेन्यसं गताः ।
पिबंत्य इव देत्याब्धि सन्निपेतुः सहस्रशः २३
आयातायात है दुष्ट: पापिन्यो वनिताधमा; ।