वैष्णवस्तण्ड-कार्तिकमास म/दाल्प ] # विभिन्न वेबताभोंके संतोषके लिये काकश्च नशी विधि #
३१७
अक्षार्जके अंशसे उत्पन्न हुआ दि । जो कार्तिक मासमें उसके
पत्तलमें भोजन करता है; वह भगवान् विधु छोकम जाता
है। पीपलके रूपमे खाक्षात् भगवान् विष्णु विराजमान हैं,
इसलिये कार्तिकर्मे परयक्पर्वक उसका पूजन करना चाहिये ।
जो रोग कार्तिक मासमें स्नानः जागरण; दीपदान और
वलसीवनकी रक्षा करते हैं, वे भगवान् विष्णुके स्वरूप ह ।
जो भगयान् विष्णुके मन्दिरमे शाद देकर स्वस्तिक आदिका
( निष्काम भावसे ) मङ्गल सिह यनाते और भगयान् विष्णुकी
पूजा करते हैं; ये जीवन्मुक्त हैं।
जब दो पड़ी रात बाकी रहे; त्र तुल्सीकी मृचिका,
अन्न और कुलदा लेकर जलाशयके समीप जाय। रैर घोकर
गड्ला आदि नदियों तथा विष्णु और शिव आदि देवताओं -
का स्मरण करे । फिर नाभिके बरावर जरम खड़ा होकर इस
मन्त्रको पदे ।
कर्तिकेऽं करिष्यामि प्रातःस्नानं जनाईन ।
प्रीस्पर्थ तब देकेस दामोदर मया सह ॥
प्जनार्दन ! देवेश्वर दामोदर ! रूष्मीसदित आपकी
प्रखन्नताके लिये मैं कार्तिके प्रातःस्नान करूंगा |?
तत्यशवात्-
गृद्दाणाध्य मदा दत्तं राधपा सहितो हरे ।
भमः कमलनाभाय नम्ये जलदाययेने ॥
नप्स्तेऽस्तु हृपीकेश गृहाणा््यं नमोस्तु ते ।
भमगवन् ! आप श्रीराधाके छथ मेरे दिये इए शस
अर्प्यको स्वीकार करे । हरे ! आप कमछनामकों नमस्कार है।
जलम शयन करनेवाले आप नारायणकों नमस्कार है।
दीक ! यह अर्यं ग्रहण डीज़िये। आपको बार-बार
नमस्कार है |”
मनुष्य किसी भी तीर्थम जान करे, उसे गङ्गाका स्मरण
अबश्य करना चाहिये। पहले मृत्तिका आदिमे स्नान करके
पाकमानी ऋचाओंदारा अपने मस्तकपर अभिषेक ष्टे ।
अपमर्षण और स्नानाज्गतपण करके पुरुषसक्तते सिरपर
जल छिड़के | उसके बाद याहुर आकर पुनः मस्तकपर तीर्थ
जल सौंचे | फिर हांयमें तुछखी लेकर तीन बार आचमन
करके पानी यार धोती निचोढ़े । घस्र निभोइनेंके पश्चात्
तिलक आदि करे | कार्तिकर्म जहाँ कहीं भी प्रत्येक जकाशयपके
जलमें स्नान करना आद्िये | गरम जड़ी अपेक्षा ठण्डे जएमें
श्नान करनेसे दखगुना पुष्य ता द । उच्ठे तोगुना पुण्य
बाइरी कुएँके जलमें स्नान करनेसे ता द । उससे अधिक
पुण्य बायड़ीमें और उससे मी अधिक पुण्य पोखरेंमें स्नान
करनेसे होता है। उससे दरुगुना शरनोंमे और उससे भी
अधिक पुण्य कार्तिकर्मे नदीस्नान करनेसे द्वोता है । उससे
भी दसगुना तीर्यस्थानमें पाया गया है | तीर्थसे दसगुना
पुण्य वहाँ होता दै, ज दो नदियोंका सङ्गम हों और यदि
करी तीन नदियोंका सङ्गम हो, तय तो पुण्यकी कोई सीमा
ही नहीं द | चिन कृष्ना; वेगी, यमुना, खरस्वती, गोदावरी,
विपाला ( व्यास )# नर्मदा, तमसा;। मही, कादेरीः
सरयू, क्षिप्रा, चर्मण्वती ( चम्बर )› बितस्ता ( झेल्म ),
वेदिका, शोणमद्र, वेष॒क्ती ( बेतवा }, अपराजिता, गष्डकी,
गोमती, पूरा, ऋरक्षपुत्रा, मानसरोयर। शाग्भती', शत्रु
८ छतलज )--ये तीर्थ कार्तिकर्मे दुर्लभ हैं। सब स्थछोसे
अधिक आर्यायर्च ( क्न्नयाचछ और हिमालयङके भीतरका
प्रदेश--उत्तर मारत ) पुण्यदायक है, उससे भी क्रोल्हापुरी
श्रेष्ठ है; कोव्दापुरीसे श्रेष्ठ विष्णुकाओ और शिवकाओी है।
उससे श्रेष्ठ है अनस्तसेनका निवासस्थान वराके, वराहक्षेत्रसे
कशे शौर चक्रकस्ेत्रते अधिक पुण्पमय मुक्तिकश्षेत्र है।
उसके भे अवन्तीपुरी ओर अयन्तीपुरीसे श्रेष्ठ यदरिकाभम
है। वदरिकाभ्रमसे अयोध्या, अयोध्यासे गन्नादार, गन्नाइारसे
कमखलछ और कनखल्मे भी श्रेष्ठ मथुरा है; क्योंकि कार्तिक
यहाँ स्वयं भगवान् राधाकृष्ण स्नान करते हैं। मधुरासे भी
श्रेष्ठ द्वारफा रै । जिन्होंने मंगवान् गोविन्दर्मे अपने ित्तड़ो
छगा रक््खा १, उनके छिपे द्वारका सूर्वके समान पुण्य
प्रकाश रूरनेबाटी दे । द्वारकासे भी श्रेष्ठ भागीरपी हैं | यह
भी जहाँ विन्भ्यपर्वतवे म्रिछती टै यश अधिक श्रेष्ठ हैं।
उससे दसगुना पुण्य तीर्थराज प्रयाग होता है। उससे भेष
काशी है, जिसके आश्रयणे गज्ञाजी भी मनुष्योंके सव पापौका
नाश करती हैं। कायीमे पनद् ( प्चगङ्गा ) तीर्थ है। जो
तौनों रोके विख्यात है । कार्तिक मास आनेपर् रौरव
नरकमे पढ़े हुए. पितर भी चिछाते हैं कि श्यां इमारे वदाम
कोई ऐसा भाग्यवात् पैदा शोगा, जो १आरगज्ञामें जाकर हमारे
डिये मरकसे उद्धार करनेवाला तर्पण करेगा। ससो पाप
करके भी मनुष्य यदि प्श्गक्ञा्में नह्ाकर विन्युमाधयजीकी
पूजा करे तो उसके सभी पाप तःकाट नष्ट हो जाते हैं ।
कुछ राव बाकी रहे तभी ल्ञान किया जाय तो वह
ण
१. नेषाखूडो धक पुण्कमथी नदी ओो सरस्वतोका स्वरूप
धमो जाती है भौर जिष्ठश्य मद गजाके एमन है ।