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४ स्थान (१०, ११, १२, १)-में ही सब ग्रह

मौजूद हों तो “दण्ड ' योग होता है॥ १८९ ॥ लग्रसे

क्रमशः सात स्थानों (१, २, ३, ४, ५, ६, ७)-में

सब ग्रह हों तो “नौका' योग, चतुर्थ भावसे

आरम्भ करके लगातार सात स्थानोंमें सातो ग्रह हों

तो 'कूट' योग, सप्तम भावसे आरम्भ करके

लगातार सात स्थानोंमें सातों ग्रह विद्यमान हों तो

'छत्र' योग और दशमसे आरम्भ करके सात

स्थानोंमें सब ग्रह स्थित हों तो 'चाप' नामक योग

होता है। इसी प्रकार केन्द्रभिन्न स्थानसे आरम्भ

करके लगातार सात स्थानोंमें सब ग्रह हों तो

“अर्धचन्द्र' नामक योग होता है ॥ १९०॥

लग्रसे आरम्भ करके एक स्थानका अन्तर

देकर क्रमश: (१, ३, ५, ७, ९ और ११ इन)

६ स्थानोंमें ही सब ग्रह स्थित हों तो “चक्र'

नामक योग होता है और द्वितीय भावसे लेकर

एक स्थानका अन्तर देकर क्रमशः ६ स्थानों (२,

४, ६, ८, १०, १२)-में ही सब ग्रह मौजूद हों

तो “समुद्र' नामक योग होता है।

७ से १ स्थानतकमें सब ग्रहोंके रहनेपर

क्रमशः वीणा आदि नामवाले ७ योग होते हैं।

जैसे-७ स्थानोंमें सब ग्रह हों तो 'वीणा' ६

स्थानोंमें सब ग्रह हों तो 'दाम', ५ स्थानम सब

ग्रह हों तो 'पाश', ४ स्थानोंमें सब ग्रह हों तो

'क्षेत्र', ३ स्थानोंमें सब ग्रह हों तो 'शूल', २

स्थानोंमें सब ग्रह हों तो “युग” ओर एक हौ

स्थानमें सब ग्रह हों तो "गोल" नामक योग होता

है। सब ग्रह चरराशिमें हों तो ' रज्जु ', स्थिर राशिमें

हों तो 'मुसल' और द्विस्वभावमें हों तो "नल

नामक योग होता है। सब शुभग्रह केन्द्रस्थानोंमें

हों तो 'माला' और सब पापग्रह केन्द्रस्थानोमें हों

तो 'सर्प' नामक योग होता है॥१९१--१९३॥

(इन योगम जन्म लेनेवालोके फल-- )

संक्षिप्त नारदपुराण

रज्जुयोगमें जन्म लेनेवाला बालक ईर्ष्यावान्‌ और

राह चलने (यात्रा करने या घूमने-फिरने)-की

इच्छावाला होता है। मुसलयोममें उत्पन्न शिशु धन

ओर मानसे युक्त होता है। नलयोगमें उत्पन्न पुरुष

अङ्गहीन, स्थिरबुद्धि और धनी होता है। मालायोगमें

पैदा हुआ मानव भोगी होता-है तथा सर्पयोगमें

उत्पन्न पुरुष दुःखसे पीड़ित होता है॥१९४॥

वीणायोगमें जिसका जन्म हुआ हो, वह मनुष्य

सब कार्वोमिं निपुण तथा सङ्गत और नृत्यमें रुचि

रखनेवाला होता है। दामयोगमें उत्पन्न मनुष्य दाता

और धनाढ्य होता है। पाशयोगमें उत्पन्न धनवान्‌

और सुशील होता है। केदार <( क्षेत्र )-योगमें पैदा

हुआ खेतीसे जीविका चलानेवाला होता है तथा

शूलयोगमें उत्पन्न पुरुष शूरवीर, शस्त्रसे आघात न

पानेवाला और अधन (धनहीन) होता है। युगयोगमें

जन्म लेनेवाला पाखण्डी तथा गोलयोगमें उत्पन्न

मनुष्य मलिन और निर्धन होता है॥ १९५-१९६॥

चक्रयोगमें जन्म लेनेवाले पुरुषके चरणोंमें

राजा लोग भी मस्तक झुकाते हैं। समुद्रयोगमें

उत्पन्न पुरुष राजोचित भोगोंसे सम्पन्न होता है।

अर्धचन्द्रमें पैदा हुआ बालक सुन्दर शरौरवाला

तथा चापयोगमें उत्पन्न शिशु सुखी और शूरबीर

होता है ॥ १९७ ॥ छत्रयोगमें उत्पन्न मनुष्य मित्रोंका

उपकार करनेवाला तथा कूटयोगमें उत्पन्न मिथ्याभाषी

और जेलका मालिक होता है। नौकायोगरमे उत्पन्न

पुरुष निश्चय ही यशस्वी और सुखी होता है।

यूपयोगमें जन्म लेनेवाला मनुष्य दानी, यज्ञ

करनेवाला ओर आत्मवान्‌ ( मनस्वी और जितात्मा)

होता है । शरयोगमें उत्पन्न मनुष्य दूसरोंको कष्ट

देनेवाला ओर गोपनीय स्थानोंका स्वामी होता

है । शक्तियोगमें उत्पन्न नीच, आलसी और निर्धन

होता है तथा दण्डयोगमें उत्पन्न पुरुष अपने प्रियजनोंसे

वियोगका कष्ट भोगता है॥१९८-१९९॥

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