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* गणपतिखण्ड « ३४५

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कवच धारण करके उससे युद्ध करनेके लिये | मुहानेपर जृम्भणास्त्र छोड़ा। उस अस्त्रके प्रभावसे

उद्यत हो गये। क्रोधके कारण राजाकी बुद्धि मारी | राजाको निद्राने आ घेरा और वह मृतक-तुल्य

गयी थी; अतः वह मुनिके साथ जूझने लगा। होकर सो गया। तब राजाको निद्रित देखकर

मुनिने कपिलाद्वारा दी गयी शक्ति और शस्त्रके मुनिने उसी क्षण अर्धचन्द्रा उस भूपालके

बलसे राजाको शस्त्रहीन करके मूर्च्छित कर |सारथि, रथ और धनुषबाणको छिल्न-भिन्न कर

दिया। तब कमललोचन राजा कार्तवीर्य पुनः | दिया। क्षुरप्रसे मुकुट, छत्र और कवच काट डाला

होशमें आकर क्रोधपूर्वक मुनिके साथ लोहा लेने | तथा भाँति-भाँतिके अस्त्र-प्रयोगसे उसके अस्त्र,

लगा। उस नृपश्रेष्ठने समरभूमिमें आग्रेयास्त्रका | तरकस और घोड़ोंकी ध्ज्जियाँ उड़ा दीं। फिर

प्रयोग किया, तब मुनिने वारुणास्त्रद्वारा उसे |युद्धस्थलमें हँसते हुए मुनिने खेल-ही-खेलमें

हँसते-हँसते शान्त कर दिया। फिर राजाने रणभूमिमें | नागास्त्रद्वारा राजाके सभी मन्त्रियोंकों बाँधकर कैद

मुनिके ऊपर वारुणास्त्र फेंका, तब मुनिने लीलापूर्वक | कर लिया; फिर लीलापूर्वक उत्तम मन्त्रका प्रयोग

वायव्यास्त्रद्वारा उसे शान्त कर दिया। तब राजाने | करके उस राजाको जगाया और उन बंधे हुए

युद्धस्थले वायव्यास्त्र चलाया; मुनिने उसे उसी | सभी मन्त्रियोंको उसे दिखाया। राजाको दिखाकर

क्षण गान्धर्वा्त्रद्ारा निवारण कर दिया। फिर | मुनिने तत्काल ही उन्हें बन्धन-मुक्त कर दिया

नरेशने रणके मुहानेपर नागास्त्र छोड़ा, मुनिवरने | और नरेशको आशीर्वाद देकर कहा--'राजन्‌!

उसे हर्षपूर्वक तत्काल ही गारुड़ास्त्रद्वारा प्रतिहत | अब अपने घर जाओ ।' परंतु राजा क्रोधसे भरा

कर दिया। तब नृपवरने, जो सैकड़ों सूर्योके हुआ था। उसने उठकर त्रिशूल उठा लिया और

समान कान्तिमान्‌ एवं दसों दिशाओंको उदी | |यत्रपूर्वक उसे मुनिवर जमदग्रिपर चला दिया। तब

करनेवाला था, उस माहे श्रर नामक महान्‌ अस्त्रका | मुनिने उसपर शक्तिसे प्रहार किया। इसी बीच उस

प्रयोग किया। नारद! तब मुनिने बड़े यत्रके साथ | युद्धस्थलमें ब्रह्मान आकर उत्तम नीतिद्वारा उन

त्रिलोकव्यापी दिव्य वैष्णवास्त्द्वारा उसका निवारण | दोनोंमें परस्पर प्रेम स्थापित करा दिया। तब मुनिने

कर दिया और फिर यत्नपर्वक नारायणास्त्र चलाया। | संतुष्ट होकर रणक्षेत्रमें ब्रह्माके चरणोंमें प्रणिपात

उस अस्त्रको देखकर महाराज कार्तवीर्य उसे | किया और राजा ब्रह्मा तथा मुनिको नमस्कार

नमस्कार करके शरणागत हो गया। तब प्रलयाग्रिके | करके अपने घरको प्रस्थान कर गया। फिर मुनि

समान वह अस्त्र वहां ऊपर-ही-ऊपर घूमकर | और ब्रह्मा अपने-अपने भवनको चले गये। इस

क्षणभरतक दसों दिशाओंको प्रकाशित करके | प्रकार इसका वर्णन तो कर दिया, अब आगे

स्वयं अन्तर्धान हो गया। फिर मुनिने रणके | तुमसे कुछ और कहूँगा। (अध्याय २५-२६)

नन ८५५

जमदग्नि-कार्तवीर्य-युद्ध, कार्तवीर्यद्रारा दत्तात्रेयदत्त शक्तिके प्रहारसे जमदग्रिका

वध, रेणुकाका विलाप, परशुरामका आना और क्षत्रियवधकी प्रतिज्ञा

करना, भृगुका आकर उन्हें सान्त्वना देना

नारायण कहते है - नारद ¦ राजा घर लौट | आश्रमपर जाकर आश्रमको घेर लिया। राजाकी

तो गया पर उसके मने युद्धकी लगी रही; इससे | विशाल सेनाको देखकर जमदग्निके आश्रमवासी

उसने लाखों सेना संग्रह करके फिर जमदग्निके | भयसे मूर्च्छित हो गये । महर्षिने मन्त्रोच्वारणपूर्वक

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