& श्री लिंग पुराण क ३११
देवताओं और ब्रह्मा ने नहीं समझा। देवी को शिव के
पास पर्ववत् बैठी देखा क्योकि वे सब देवी की माया से
मोहित हो गये। पार्वती ने शिव के शरीर में प्रवेश करके
उनके कण्ठ में स्थित विष से अपना शरीर धारण किया
जो काले वर्ण वाला हुआ। कामारि शिव ने तब हृदय में
उनको ऐसा जान कर अपने तीसरे नेत्र से उन्हें बाहर
उत्पन्न किया। उस समय दैत्यों के नाश के लिए और
भवानी और भोलेश्वर की तुष्टि के लिए विष से काले
कण्ठ वाली उस काली के दारुण रूप को देखकर डर
के मारे देवता व सिद्ध लोग भागने लगे। उस काली के
ललाट में तीसरा नेत्र है, ललाट में चन्द्र रेखा है। कण्ठ में
कराल विष का चिह्न है, हाथ में भयंकर त्रिशूल है।
नाना प्रकार के आभूषण हैं, दिव्य वस्त्र धारण किए हुए
हैं।
इसके बाद ऐसी देवी ने पार्वती की आज्ञा से देवताओं
को दुःख देने वाले ब्रह्म दारुक असुर को मार दिया।
परन्तु उसके क्रोध की ज्वाला से सम्पूर्ण लोक जलने
लगा। उसके क्रोध शान्ति के लिए शिव ने श्मशान में
बालक का छोटा रूप धारण किया और बच्चे के समान
रोने लगे। भगवान की माया से मोहित हुई वह देवी उस
बालक को उठाकर पुचकार अपने स्तनों से दूध पिलाने
लगी।शिव रूपी बालक ने दूध के साथ ही उसके क्रोध