३७६ * संक्षिप्त ग्रह्मवैवर्तपुराण *
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सुचन्द्र-पुत्र पुष्कराक्षके साथ परशुरामका युद्ध, पाशुपतास्त्र छोड़नेके लिये उद्यत
परशुरामके पास विष्णुका आना और उन्हें समझाना, विष्णुका विप्रवेषसे
पुत्रसहित पुष्कराक्षसे लक्ष्मीकवच तथा दुर्गाकवचको
माँग लेना, लक्ष्मी-कवचका वर्णन
श्रीनारायण कहते हैं--ब्रह्मन्! रणक्षेत्रमें | है; क्योकि श्रीहरिका सुदर्शनचक्र समस्त अस्त्रोंका
राजाधिराजोकि शिरोमणि सुचन्द्रके गिर जानेपर | मान मर्दन करनेवाला है । शिवजीका पाशुपतास्त्र
तीन अक्षौहिणी सेनाके साथ पुष्कराक्ष आ | ओर श्रीहरिका सुदर्शनचक्र-ये ही दोनों तीनों
धमका। महान् पराक्रमी राजा पुष्कराक्ष सूर्यवंशमें |लोकोंमें समस्त अस्त्रम प्रधान है । इसलिये
उत्पन्न, महालक्ष्मीका सेवक, लक्ष्मीवान् और | ब्रह्मन् । तुम पाशुपतास्त्रको रख दो ओर मेरी बात
सूर्यके समान प्रभाशाली था। वह सुचनद्रका पुत्र | सुनो। इस समय तुम जिस प्रकार महाबली राजा
था। उसके गलेमें महालक्ष्मीका मनोहर कवच | पुष्कराक्षको जीत सकोगे तथा जिस प्रकार अजेय
बंधा था, जिसके प्रभावसे वह परमैश्चर्यसम्पन्न | कार्तवीर्यपर विजय पा सकोगे, वह सारा उपाय
ओर त्रिलोकविजयी हो गया था। उसे देखकर | तुम्हे बतलाता हूँ; सावधानतया श्रवण करो।
बुद्धिमान् परशुरामके सभी भाई हाथोंमें नाना | महालक्ष्मीका कवच, जो तीनों लोके दुर्लभ है,
प्रकारके शस्त्रास्त्र धारण करके युद्ध करनेके लिये | पुष्कराक्षने भक्तिपूर्वक विधि-विधानके साथ अपने
आ इटे। राजाने लीलापूर्वक बाणसमूहकी वर्षा | गले धारण कर रखा है ओर पुष्कराक्षका पुत्र
करके उन्हें छेद डाला । तब उन वीरोने भी हँसते- | दुर्गतिनाशिनी दुर्गाका परम अद्भुत एवं उत्तम
हँसते उन बाणोंके टुकड़े-टुकड़े कर डाले । फिर | कवच अपनी दाहिनी भुजापर बधे हुए है । इन
तो पुष्कराक्षके साथ घोर युद्ध आरम्भ हुआ।|कवचोंकी कृपासे वे दोनों विश्वपर विजय पा
परशुरामने पाशुपतास्त्रके सिवा सभी अस्त्र- | लेनेमें समर्थ है । उनके शरीरपर कवचोकि वर्तमान
शस्त्रोंका प्रयोग किया, पर पुष्कराक्षने सबको | रहते त्रिभुवनमें उन्हें कौन जीत सकता ह । मुने
काट गिराया। तब अपने समस्त शस्त्रास्त्रोको | मँ तुम्हारी प्रतिज्ञा सफल करनेके निमित्त उन
विफल देखकर परशुरामने स्नान करके शिवजीको | दोनोके संनिकट माँगनेके लिये जाऊँगा और उनसे
प्रणाम किया और पाशुपतास्त्रका प्रयोग करना | कवचकी याचना करूँगा । ब्राह्मणकी बात सुनकर
चाहा; इतनेमे भगवान् नारायण ब्राह्मणका वेष | परशुरामका मन भयभीत हो गया, तब वे दुःखी
धारण करके वहाँ प्रकट हो गये और बोले। | दयसे उस वृद्ध ब्राह्मणसे बोले ।
ब्राह्मणवेषधारी नारायणने कहा-- वत्स परशुरामने कहा--' महाप्राज्ञ! ब्राह्मणरूपधारी
भार्गव! यह क्या कर रहे हो? तुम तो ज्ञानिर्योपिं आप कौन हैं, मैं यह नहीं जान पा रहा हूँ;
श्रेष्ठ हो; फिर भ्रमवश क्रोधावेशमें आकर मनुष्यका | अत: मुझ अनजानको शीघ्र ही अपना परिचय
वध करनेके लिये पाशुपतका प्रयोग क्यों कर रहे | दीजिये, तत्पश्चात् राजाके पास जाइये।' परशुरामका
हो? इस पाशुपतसे तो तत्काल ही सारा विश्च| वचन सुनकर ब्राह्मणको हँसी आ गयी, वे मै
भस्म हो सकता है; क्योंकि यह शस्त्र परमेश्वर | विष्णु हूँ” यों कहकर राजाके पास याचना करनेके
श्रीकृष्णके अतिरिक्त और सबका विनाशक है।|लिये चले गये। उन दोनोंके संनिकट जाकर
अहो ! पाशुपतको जीतनेकी शक्ति तो सुदर्शनमें ही | विष्णुने उससे कबचकी याचना कौ। तब विष्णुकी