३३६] [ श्हयाण्ड पुराण
।११। इसलिऐ उसके मुल का उच्छेदन करने के लिए कोई यत्न करना हो
चाहिए ।'मैंने दूतो के भूख से सुना है कि उसकी वृत्ति महा वलवती है ।१६५।
यह सब सेना के वह पीछे ही रहती है और उसके आगे हाथी-घोड़े और
सेनाएँ सब चला करती हैँ । १३। अब इसी अवसर पर उसका पाष्णिग्राह
करो । इस पार्णिग्राह् में अर्थात् पीछे पहुँचकर उसको पकड़ने में विषज्धू
बहुत कूणल है ।१४।
तेन प्रौढमदोन्मत्ता बहुसंग्रामदुर्म दा: ।
दण पञ्च च सेनान्यः सह यांतु युयुत्सया ॥१५
पृष्ठतः परिवारास्तु न तथा सन्ति ते पूनः ।
अल्पेस्तु रक्षिता वे स्यात्तेनैवासौ सुनिग्रहा ॥ १६
अतस्त्वं वहुसन्नाहमाविधाय मदोत्कटः ।
विषंग गुप्तरूपेण पार्ष्णिग्राह समाचर ।१७
अल्पीयसी त्वया साद्ध सेना गच्छतु विक्रमात् ।
सज्जाश्चलंतु सेनान्यो दिक्पालविजयोद्ताः ।। १८
अक्षौहिण्यश्च सेनानां दश पञ्च चलतु ते ।
त्वं गुप्तवेषस्तां दृष्टां सन्निपत्य दढ जहि ॥१६
सेव निःशेषणक्तीनां मूलभूता महीयसी ।
तस्याः समूलनाणेन गक्तिव न्द विनश्यति ॥२०
कंदच्छेदे सरोजित्या दलजालभिवांभसि ।
सर्वेषामेव पश्चाद्यो रथश्चलति भासुरः ॥२१
उस विषंग के साथ युद्ध करने की इच्छा से बड़े प्रोढ़ और मदोन्मक्त
दश पाँच सेनानी भी जावे ।१५। उनके पीछे की ओर कोई परिवार नहीं
है । वह बहुत थोड़े से संनिकों के द्वारा रक्षित है अतः सबका निग्रह आसान
है ।१६। इसीलिए मदोत्कट तुम बहुत संग्राम न करके गुप्त रूप से विषंग को
समाचरण करो ।१७। आपके साथ बहुत थोडी सेना जावे भौर सेनानी
सज्जित होकर चलें जो विक्रमसे दिक्पालों के भी विजयं करने से उद्धत
हैं ।१८। पन्द्रह अक्षौहिणी सेनाएँ भी जानें और तुम वक्ष वेष बाले होकर
दृष्टा उसको मार डालो ।{६। वह ही सम्पूर्ण शक्तियों की बहुत बड़ी मूल