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३४२ ॐ श्री लिंग पुराण कै

उनके स्वरूप में ही सोम, मंगल, बुध, वृहस्पति,

शुक्र, मन्द मन्द्‌, गति, शनि उनके चारों तरफ में दीखते

है । जगन्नाथ दीखते हैं। जगन्नाथ शिव सूर्य रूप में और

साक्षात्‌ उमा सोम रूप में शेष भूतों को, चराचर जगत

को उमापति शिव के रूप में सभी देवता देखते हैं। उनको

देखकर सभी देवता और मुनि हाथ जोड़कर उत्तम-

उत्तम स्तोत्रों से उनकी स्तुति करने लगे।

ऋषि बोले--शिव रूप, रुद्र रूप, मीदुष्टङ् रूप

आपको नमस्कार है । आप नवीन शक्ति से युक्त पदा पर

स्थित हो । आप भास्कर स्वरूप हो । आप आदिता भानु,

रवि, दिवाकर रूप और उमा, प्रभा, प्रज्ञा, संध्या, सावित्री,

विस्तारा, बोधिनी आदि रूप वाली हो आपको हम प्रणाम

करते है । सोमादि देवों की मन्त्रो द्वारा पूजा करके रवि

मण्डल में स्थित शंकर भगवान की ही हम स्तुति करते

है । सिन्दूर के से वर्ण वाले मण्डल स्वरूप, स्वर्णं और

हीरा के आभूषण वाले ब्रह्म इन्द्र नारायण के भी कारण

आपको नमस्कार है। आपका रथ सात घोड़ों वाला,

अनूरू सारथी वाला है । गण आपके सात प्रकार के है ।

ऋतु के अनुसार बालखिल्य आपकी स्तुति करते है ।

तिल आदि से विविध प्रकार से अग्नि में हवन करके

हदय कमल में स्थित बिम्ब रूप शिव का ही स्मरण

करते हैं। पद्म के समान अमल लोचन वाले तथा रक्त

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