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३३० * संक्षिप्त ब्रहपुराण *

स्त्री एक मुसल पैदा करेगी, जिससे समपपूर्ण | श्रीभगवान्‌ बोले-'दूत! तुम जो कुछ कहते

यदुकुलका संहार हो जायगा।' उनके योँ| हो, वह सब मैं जानता हूँ। इसीलिये मैंने

कहनेपर यदुकुमारोंने पुरीमें आकर राजा उग्रसेनको | यादबोंके संहारका कार्य आरम्भ कर दिया है।

सब हाल कह सुनाया। साम्बके पेटसे मुसल | यदि यदुवंशिर्योका संहार न हो तो यह पृथ्वीपर

पैदा हुआ। उग्रसेनने उस मुसलके लोहेको | बहुत बड़ा भार रह जायगा; अतः मैं सात रातके

कुटवाकर चूर्ण बना दिया और उसे समुद्रम फक | भीतर जल्दी ही इस भारको भी उतार डालूँगा।

दिया। बह चूर्ण एरका नामकी घासके रूपमे | जिस प्रकार मैंने द्वारकापुरी बसानेके लिये

उत्पन्न हौ गया। मुसलका जो लोहा था, उसे | समुद्रसे भूमि माँगी धी, उसी प्रकार उसे वह

चूर्ण कर देनेपर भी उसका एक टुकड़ा बचा रह | भूमि लौटा भी दूँगा और यादवोंका संहार करके

गया। उसे यादवगण किसी प्रकार भी चूर्ण न | अपने परमधामको जाऊँगा। देवराज इन्द्र तथा

कर सके। उसकी आकृति तोमरके समान थी। देवताओंको यों मानना चाहिये कि मैं बलरामजीके

वह टुकड़ा भी समुद्रमें फेंक दिया गया, किंतु साथ अब अपने धामे आ ही गया। इस

उसे एक मत्स्यने निगल लिया। उस मत्स्यको | पृथ्वीके भाररूप जो जरासंध आदि राजा थे, वे

मछेरोंने जाल बिछाकर पकड लिया। जब | मारे गये; तथापि इन यदुवंशियोंका भार उनसे

ठसका पेट चीरा गया, तब वह लोहा निकला | भी बढ़कर है, अतः पृथ्वीके इस महाभारको

और उसे जरा नामक व्याधने ले लिया। भगवान्‌ | उतारकर ही मैं देवलोककी रक्षाके लिये अपने

श्रीकृष्ण इन सभी बातोंकों अच्छी तरह जानते | धाममें जाऊंगा ।'

थे तो भी उन्होने विधाताके विधानको बदलना | भगवान्‌ वासुदेवके यों कहनेपर देवदूत

नहीं चाहा। इसी बीचमें देवताओंने भगवान्‌ | उन्हें प्रणाम करके दिव्य गतिसे देवराजके

श्रीकृष्णके पास अपना दूत भेजा। उसने एकान्ते | समीप चला गया। इधर द्रारकापुरीमें दिन-रात

भगवान्‌को प्रणाम करके कहा--' भगवन्‌! वसु, | विनाशके सूचक दिव्य, भौम एवं अन्तरिक्षसम्बन्धी

अश्विनीकुमार, मरुद्रण, आदित्य, रुद्र तथा साध्य | उत्पात होने लगे। उन्हें देखकर भगवानूने

आदि देवताओकि साथ इन्द्रने मुझे दूत बनाकर यादवोंसे कहा-' देखो, ये अत्यन्त भयंकर

भेजा दै। प्रभो! देवगण आपसे जो निवेदन महान्‌ उत्पात हो रहे हैँ । इनकी शान्तिके लिये

करना चाहते हैं, वह इस प्रकार है; सुनिये । | हम सव लोग शीघ्र ही प्रभासक्षेत्रमे चले ।'

दैवताओंके प्रार्थना करनेपर आपने जो इस | उस समय महान्‌ भगवद्धक्त उद्धवजीने श्रीहरिको

पृथ्वीका भार उत्तारनेके लिये अवतार लिया था, | प्रणाम करके कहा--' भगवन्‌! अब मुझे क्या

उसे आज सौ वर्षसे अधिक हो गये। दुराचारौ | करना चाहिये? इसके लिये आज्ञा दें। मैं

दैत्य मारे गये। पृथ्वीका भार उतर गया। अब | समझता हूँ आप इस समस्त यादवकुलका

देवता आपसे सनाथ होकर स्वर्गमें निवास करं । | संहार करना चाहते हैं; क्योकि मुझे ऐसे

जगन्नाथ! यदि आपको स्वीकार हो तो अन | निमित्त दिखायी देते हैं, जो इस कुलके

अपने परमधामको पधार ।' विनाशकी सूचना देनेवाले है ।'

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