विधान है। नानी, आचार्य तथा नानाकी मृत्यु
होनेपर तीन दिनका अशौच लगता है। दुर्पिक्ष
(अकाल) पड़नेपर, समूचे राष्ट्रके ऊपर संकट
आनेपर, आपत्ति-विपत्ति पड़नेपर तत्काल शुद्धि
कही गयी है। यज्ञकर्ता, ब्रतपरायण, ब्रह्मचारी,
दाता तथा ब्रह्मवेत्ताकी तत्काल ही शुद्धि होती है।
दान, यज्ञ, विवाह, युद्ध तथा देशव्यापी विप्लवके
समय भी सद्यःशुद्धि ही बतायी गयी है। महामारी
आदि उपद्रवमें मरे हुएका अशौच भी तत्काल ही
निवृत्त हो जाता है। राजा, गौ तथा ब्राह्मणद्वारा
मारे गये मनुष्योंकी और आत्मघाती पुरुषोंको
मृत्यु होनेपर भी तत्काल ही शुद्धि कही
गयी है॥ ३३-३७ ॥
जो असाध्य रोगसे युक्त एवं स्वाध्यायमें भी
असमर्थ है, उसके लिये भी तत्काल शुद्धिका ही
विधान है। जिन महापापियोंके लिये अग्नि और
जलमें प्रवेश कर जाना प्रायश्चित्त बताया गया है
(उनका बह मरण आत्मघात नहीं है)। जो स्त्री
अथवा पुरुष अपमान, क्रोध, स्नेह, तिरस्कार या
भयके कारण गलेमें बन्धन (फाँसी) लगाकर
किसी तरह प्राण त्याग देते हैं, उन्हें ' आत्मघाती '
कहते हैं। वह आत्मघाती मनुष्य एक लाख
वर्घतक अपवित्र नरकमें निवास करता है। जो
अत्यन्त वृद्ध है, जिसे शौचाशौचका भी ज्ञान नहीं
रह गया है, वह यदि प्राण त्याग करता है तो
उसका अशौच तीन दिनतक ही रहता है । उसमें
(प्रथम दिन दाह), दूसरे दिन अस्थिसंचय, तीसरे
दिन जलदान तथा चौथे दिन श्राद्ध करना चाहिये।
जो बिजली अथवा अग्निसे मरते हैं, उनके
अशौचसे सपिण्ड पुरुषोंकी तीन दिनमें शुद्धि
होती है। जो स्त्रियाँ पाखण्डका आश्रय लेनेवाली
तथा पतिघातिनी हैं, उनकी मृत्युपर अशौच नहीं
लगता और न उन्हें जलाज्जलि पानेका ही
अधिकार होता है। पिता-माता आदिकी मृत्यु
होनेका समाचार एक वर्ष बीत जानेपर भी प्राप्त
हो तो सवस्त्र स्नान करके उपवास करे और
विधिपूर्वक प्रेतकार्यं (जलदान आदि) सम्पन्न
करे ॥ ३८-४३ ॥
जो कोई पुरुष जिस किसी तरह भी असपिण्ड
शवको उठाकर ले जाय, वह वस्त्रसहित स्नान
करके अग्निका स्पर्श करे और घी खा ले, इससे
उसको शुद्धि हो जाती है। यदि उस कुटुम्बका
वह अन्न खाता है तो दस दिनमें ही उसकी शुद्धि
होती है। यदि मृतकके घरवालोंका अन्न न
खाकर उनके घरमें निवास भी न करे तो उसकी
एक ही दिनमें शुद्धि हो जायगी। जो द्विज अनाथ
ब्राह्मणके शवको ढोते हैं, उन्हें पग-पगपर अश्वमेध
यज्ञका फल प्राप्त होता है और स्नान करनेमात्रसे
उनकी शुद्धि हो जाती है। शद्रके शवका अनुगमन
करनेवाला ब्राह्मण तीन दिनपर शुद्ध होता है।
मृतक व्यक्तिके बन्धु-आन्धवोंके साथ बैठकर
शोक-प्रकाश या विलाप करनेवाला द्विज उस
एक दिन और एक रातमें स्वेच्छसे दान और
श्राद्ध आदिका त्याग करे! यदि अपने घरपर
किसी शूद्रा स्त्रीके बालक पैदा हो या शुद्रका
मरण हो जाय तो तीन दिनपर घरके बर्तन-भाँड़े
निकाल फेंके और सारौ भूमि लीप दे, तब शुद्धि
होती है। सजातीय व्यक्तियोके रहते हुए ब्राह्मण-
शवको शूद्रके द्वारा न उठवाये। मूर्देको नहलाकर
नूतन वस्त्रसे ढक दे और फूलोंसे उसका पूजन
करके श्मशानकी ओर ले जाय । मर्देको नंगे शरीर
ने जलाये। कफनका कुछ हिस्सा फाड़कर
श्मशानवासीको दे देना चाहिये ॥ ४४--५० ॥
उस समय सगोत्र पुरुष शवको उठाकर
चितापर चढ़ावे । जो अग्निहोत्री हो, उसे विधिपूर्वकं
तीन अग्नियों (आहवनीय, गार्हपत्य और
दाक्षिणाग्नि) द्वारा दग्ध करना चाहिये। जिसने
अग्निकौ स्थापना नहीं की हो, परंतु उपनयन-