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३३४ । [` ब्रह्मोण्ड पुराण

लिए हुए निरन्तर रंगरेलि्यां कर रहे थे । भार्गव श्री परशुराम जीने जिस

समय में उस परम सुन्दरपुरी का अवलोकन किया उनको अत्यन्त हषं

हुआ था ।२३। इसके अनन्तर वे उसके ऊपर गये थे जिस शिखर पर

भगवान्‌ शिव का परम सुरम्य निवास करने का गृह था। हे राजेन्द्र ! वहाँ

पर एक महान विशाल बहुत ही धनी छाया वाला बट का वृक्ष उन्होने देखा

शा ।२४। उस वट वृक्ष के नीचे एक आवास गृह बना हुआ था जो भली

भाँति सेवन करने के योग्य था और बड़े-बड़े महान्‌ सिद्धगणो से समन्वित

था | वहाँ पर उसक्रा एक प्रकार (कहार दीवारी) उन्होने देखा था जिसका

मण्डल (घेरा) एक सौ योजन बाला था ।२५। उस नगर में अनेक प्रकारके

रत्न खचित हो रहे थे तथा परम रम्य और चार प्रधान द्वारों से वह सम-

न्वित था। वहाँ पर गण सव ओर थे। अब उन प्रधान गणों में नस्दीश्वर-

महाकाल-रक्ताक्ष ओर विक्रटोदर थे )२६। इनके अतिरिक्त पिगलाक्ष-

विरूपाक्च-घटोदर-मन्दार-भैरव-बाण-सुरु- भैरव भी थे ।२७। उन गणों में

वीरभद्र-चण्ड-रिटि-मुख भी थे। वहाँ पर सिद्ध न्द्र-नाथ और रुद्र थे तथा

विद्याधर और महोरग भी विद्यमान थे ।२८।

भूत तपिशाचांश्च कुंध्मांडान्ब्रह्म राक्षसान्‌ ।

वेतालान्दानवेंद्रांश्व योगीच्ंश्च जटाधरान्‌ ।।२&

यक्षकिषुरुषां श्चैव डाकिनीयो गिनीस्तथा ।

दृष्ट वा नंद्याज्ञया तत्र प्रविष्टोऽतमृं दान्वितः ॥३०

ददशं तत्र भूवनेरावृत्तं शिवमंदिरम्‌ ।

चतुर्योजनविस्तीर्णं तत्रे प्राग्ारसं स्थितौ ।।३१

दृष्ट्वा वामे कात्तिकेयं दक्षे चैव विनायकम्‌ ।

ननाम भार्गवस्तौ दरौ शिवतुल्यपराक्रमौ ।३२

पार्षदप्रवरास्तत्र क्षेत्रपालाश्च संस्थित्ताः ।

रत्नसिहासनस्थाश्च रत्नभूषणभूषिता. ।।३३

भागेन प्रविशन्तं तु ह्यपृच्छङ्शिवमंदिरम्‌ ।

विनायको महाराज क्षणं तिष्ठेत्य्‌.वाच ह ३८

निद्रितो हू मया युक्तो, महादेवेऽशुनेति च ।

ईश्वराज़ां गृहीत्वाहमत्रांगैत्य क्षणांतरे ।।३५

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