Home
← पिछला
अगला →

73..

निर्माण कराता है, वह भोग ओर मोक्ष, दोनों

पाता है। श्रीहरिके मन्दिरकी तीन श्रेणियाँ हैं--

कनिष्ठ, मध्यम और श्रेष्ठ । इनका निर्माण करानेसे

क्रमशः स्वर्गलोक, विष्णुलोक तथा मोक्षकी प्राप्ति

होती है। धनी मनुष्य भगवान्‌ विष्णुका उत्तम

्रेणीका मन्दिर बनवाकर जिस फलको प्राप्त

करता है, उसे ही निर्धन मनुष्य निप्नशरेणीका

मन्दिर बनवाकर भी प्राप्त कर लेता है। धन-

उपार्जनकर उसमेंसे थोड़ा-सा ही खर्च करके यदि

मनुष्य देव-मन्दिर बनवा ले तो बहुत अधिक

पुण्य एवं भगवान्‌का वरदान प्राप्त करता है। एक

लाख या एक हजार या एक सौ अथवा उसका

आधा (५०) मुद्रा ही खर्च करके भगवान्‌

विष्णुका मन्दिर बनवानेवाला मनुष्य उस नित्य

धामको प्राप्त होता है, जहाँ साक्षात्‌ गरुडकी

ध्वजा फहरानेवाले भगवान्‌ विष्णु विराजमान

होते हैं॥ ६-१२ ६॥

जो लोग बचपनमें खेलते समय धूलिसे

भगवान्‌ विष्णुका मन्दिर बनाते हैं, वे भी उनके

धामको प्राप्त होते हैं। तीर्थमें, पवित्र स्थानमें,

सिद्धक्षेत्रमें तथा किसी आश्रमपर जो भगवान्‌

विष्णुका मन्दिर बनवाते हैं, उन्हें अन्यत्र मन्दिर

बनानेका जो फल बताया गया है, उससे तीन गुना

अधिक फल मिलता है। जो लोग भगवान्‌ विष्णुके

मन्दिरको चूनेसे लिपाते ओर उसपर बन्धूकके

फूलका चित्र बनाते हैं, वे अन्ते भगवान्‌के

धाममें पहुँच जाते है । भगवान्‌का जो मन्दिर गिर

गया हो, गिर रहा हो, अथवा आधा गिर चुका

हो, उसका जो मनुष्य जीर्णोद्धार करता है, वह

नवीन मन्दिर बनवानेकी अपेक्षा दूना पुण्यफल

प्राप्त करता है। जो गिरे हुए विष्णु-मन्दिरको पुनः

बनवाता ओर गिरे हुएकी रक्षा करता है, वह मनुष्य

साक्षात्‌ भगवान्‌ विष्णुका स्वरूप प्राप्त करता है ।

तबतक उसका बनवानेवाला विष्णुलोके कुलसहित

प्रतिष्ठित होता है। इस संसारमें ओर परलोकरमें

वही पुण्यवान्‌ ओर पूजनीय है ॥ १३--२०

जो भगवान्‌ श्रीकृष्णका मन्दिर बनवाता है,

वही पुण्यवान्‌ उत्पन्न हुआ है, उसीने अपने

कुलकी रक्षा की है। जो भगवान्‌ विष्णु, शिव,

सूर्यं और देवी आदिका मन्दिर बनवाता है, वही

इस लोकमें कीर्तिका भागी होता है । सदा धनकी

रक्षामें लगे रहनेवाले मूर्ख मनुष्यको बड़े कष्टसे

कमाये हुए अधिक धनसे क्या लाभ हुआ, यदि

वह उससे श्रीकृष्णका मन्दिर ही नहीं बनवाता।

जिसका धन पितरों, ब्राह्मणों और देवताओंके

उपयोगमें नहीं आता तथा बन्धु-बान्धवोंके भी

उपयोगे नहीं आ सका, उसके धनकी प्राप्ति

व्यर्थ हुई। जैसे प्राणियोंकी मृत्यु निश्चित है, उसी

प्रकार कमाये हुए धनका नाश भी निश्चित है।

मूर्ख मनुष्य ही क्षणभङ्गुरं जीवन और च्ल

धनके मोहमें बधा रहता है। जब धन दानके

लिये, प्राणियोंके उपभोगके लिये, कीर्तिके लिये

और धर्मके लिये काममें नहीं लाया जा सके तो

उस धनका मालिक बननेमें क्या लाभ है?

इसलिये प्रारब्धसे मिले अथवा पुरुषार्थसे, किसी

भी उपायसे धनको प्राप्तकर उसे उत्तम ब्राह्मणोंको

दान दे, अथवा कोई स्थिर कीर्ति बनवावे। चूँकि

दान और कीर्तिसे भी बढ़कर मन्दिर बनवाना है,

इसलिये बुद्धिमान्‌ मनुष्य विष्णु आदि देवताओंका

मन्दिर आदि बनवावे। भक्तिमान्‌ श्रेष्ठ पुरुषोंके

द्वारा यदि भगवानके मन्दिरका निर्माण और उसमें

भगवानूका प्रवेश (स्थापन आदि) हुआ तो यह

समझना चाहिये कि उसने समस्त चराचर त्रिभुवनको

रहनेके लिये भवन बनवा दिया । ब्रह्मासे लेकर

तृणपर्यन्त जो कुछ भी भूत, वर्तमान, भविष्य,

← पिछला
अगला →