३९ अधथर्ववेद संहिता भाग-२
३४९६. दुरदभ्नैनमा शये याचितां च न दित्सति ।
नास्मै कामाः समृध्यन्ते यामदत्त्वा चिकीर्षति ॥१९ ॥
जो याचना किये जाने पर भी बाह्मणों को नहीं देते, उनके घर में यह गौ दुर्दम्य (नियन््रणरहित) होकर वास
करती है । जो इसे न देकर अपने पास हौ रखना चाहते हैं , उनके अभीष्ट पूर्ण नहीं होते ॥१९ ॥
[ जो प्रतिभा या विद्या, ब्रह्मनिष्ठों के नियन्रण में नहीं दी जाती, वह बागी होकर अनर्थ खड़े करती है। ]
३४९७. देवा वशामयाचन् मुखं कृत्वा ब्राह्मणम् । तेषां सर्वेघामददद्धेडं न्येति मानुषः ॥२० ।
ब्राह्मण का रूप धारेण करके, देव-शक्तियाँ ही वशा की याचना करती हैं । अतः दानस्वरूप गौओ को न देने
वाले मनुष्य देवों के कोपभाजन बनते हैं ॥२० ॥
३४९८. हेडं पशूनां न्येति ब्राह्मणे भ्यो 5ददद् वशाम् । देवानां निहितं भागं मर्त्यश्रेश्रिप्रियायते
देवताओं की सुरक्षित निधि रूप में रखे गये भाग (वशा) को जो मनुष्य अपना प्रिय मानकर ब्राह्मणों को दान
स्वरूप नहीं देता, तो उसे पशुओं का भौ कोप भाजन बनना पड़ता है ॥२१ ॥
३४९९. यदन्ये शतं याचेयुब्ाह्मणा गोपतिं वशाम् ।
अथैनां देवा अब्रुवन्नेवं ह विदुषो वशा ॥२२ ॥
गोपति के पास सैकड़ों अन्य ब्राह्मण भी यदि वशा कौ याचना कर, तो भी वशा विद्वान् की होती है, ऐसा
देवों का कथन है ॥२२ ॥
[ ब्रह्मनिष्ठ में थी जो विद्ठान-अनुधवी- कुशल हों- उन्हे सुजन विद्या के उपयोग का अधिकार सौपना चाहिए । ]
३५००. य एवं विदुषेऽदत्त्वाथान्येभ्यो ददद् वशाम् ।
दुर्गा तस्मा अधिष्ठाने पृथिवी सहदेवता ॥२३ ॥
जो मनुष्य इस प्रकार विद्वान् को गौ न देकर; दूसरे अपात्र को गोदान करता है, उसके लिए उसके स्थान में
समस्त देवों के साथ-साथ पृथ्वी भी कष्टदायी हो जाती है ॥२३ ॥
३५०१. देवा वशामयाचन् यस्मिन्नग्रे अजायत । तामेतां विद्यान्नारद: सह देवैरुदाजत ॥२४।
जिसके यहाँ वशा का जन्म होता है, उससे देवता गौ की माँग करते हैं। नारद ने यह जान लिया कि देवों
को इसका दान दिये जाने से (गौ और देवताओं ) सबकी प्रगति होती है ॥ २४ ॥
[ यह भाव गीता के उस भाव के अनुरूप है कि यज्ञ से देवो को तृप्त करो, देवता तुफ्हें उत्कर्ष देंगे ।]
३५०२. अनपत्यमल्पपशुं वशा कृणोति पूरुषम् ।
ब्राह्मणैश्च याचितामथेनां निप्रियायते २५ ॥
ब्राह्मणों द्वारा माँग किये जाने पर भी, जो वशा (गाव) को अपना प्रिय मानकर अपने पास रखता है, वह वशा
उस मनुष्य को सन्तति के सौभाग्य से रहित और पशुधन से भी क्षीण करती दै । ।२५ ॥
३५०३. अग्नीषोमाभ्यां कामाय मित्राय वरुणाय च ।
तेभ्यो याचन्ति ब्राह्मणास्तेष्वा वृश्चतेऽददत् ॥२६ ॥
ब्राह्मण लोग अग्नि, सोम, मित्र, वरुण और काम आदि देवों के निमित्त वशा की याचना करते हैं, अपने लिए
नही, इसलिए यह दान न किये जाने पर मनुष्य उन देवों को ही अपमानित करता है ॥२६ ॥