# संक्षिप्त
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स्तरेगको उसे शिव-नामामृतके चिना शान्ति
नहीं भि सकती। जो शिवनापरूपी
सुषाकी युष्ठिजिनित धारामें गोते लगा रहे हैं,
शे संसाररूपी हावानलके बीचमे स्पड़े होनेपर
प्री कदापि शोकरके भागी नही होते जिन
महात्मा ओके मनम झियनामके प्रति खड़ी
भारी भक्ति दै, ऐसे छोगोंकी सहसा और
सर्वथा मुक्ति होती है ।* मुनीश्षर ! जिसने
अनेक जयोॉतक पत्या की है, उसीकी
शिवनामके भ्रति भक्ति होती है, जो समस्त
पापॉका नाद करनेवात्डी है।
जिसके पनपे भगयान् झिखके नामके
रति कभी खण्डित न होनेवाली असाधारण
भक्ति प्रकट हुई हैं, उसके त्वयि मोक्ष सुलभ
है--बह मेरा मत है । जो अनेक पाप करके
भी भगवान् शिवके नाम-जपपें आदरपूर्वक
कग गया है, वह समस्त पापॉसे मुक्त हो ही
जाता है--इसमें संकाय नहीं है । जैसे बनपें
दायानलसे दग्ध हुए वृक्ष भस्म हो जाते हैं,
उसी प्रकार दिवनामरूपी दावानलसे दग्घ
होकर उस स्रमथतकके सारे पाप भस्म हो
जाते हैं। झौनक ! जिसके अङ्ग नित्य भस्म
त्यगानेसे पविन्न हो गये हैं तथा जो शिवनाम-
जपका आदर करने गा है, वह घोर
संसार-सागरको भी पार कर हीं लेता है।
सम्पूर्ण चेदोँंका अवलोकन करके पूर्ववर्ती
महर्षियोंने यही निश्चित किया है कि भगवान्
जझितके नामका जप संसार-सागरकों पार
करनेके लिये सोत्ति उपाय है। मुनिवरो !
अधिके कहनेसे क्या खा, मैं झिव-नापके
सर्वपापापहारी पाहात्म्यका एक ही इलोकर्में
वर्णन च्छरता हूँ। भगवान् ङोकरके एक
नाममें भी पापहरणकी जिलनी झक्ति है,
उतना प्रातक मनुष्य क्री कर ही नहीं
सकता ।: सुने ! पूर्वकालमें महापापी राजा
इन्द्र्मप्रने झिलनासके प्रभावसे ही उत्तम
सद्गति प्राप्त की थी। इसी तरह कोई
ब्राह्मणी युवती भी जो बहुत पाप कर चुकी
थी, ज्िवनामके प्रभावसे ही उत्तम गतिकों
प्राप्त हुई। द्विजबरों ! इस प्रकार मैंने तुपसे
भगवत्नामके उत्तम माहात्यका वर्णन किया
है। अच तुम भ्रस्मका माहात्यय सुनो, जो
समस्त पावन वस्तुओंको भी पावन
करनेश्राला है।
महर्षयो ! भस्म भ््पूर्ण मद्रको
देनेवा्ा तथा उत्तम है; उस्के दो भेद बताये
गये हैं, उन भेटोंका चै वर्णन करता हैँ,
सावधान होकर सुनो । एकको “महाभस्म'
जानना चाहिये और दूसरेक्रो 'स्वल्पभस्प' ।
महापस्मके भी अनेक भद् हैं। वह तीन
* शियनापतरी आआप्ये संसारा्यि तरन्ति ते। संसारमूलपापानि तानि नदथन्त्यसशायम् ॥
संसारमूछभुतानों पातठकाना
दितनामासुते
रिनेति
वेव
पाति । िवनामक्रुटरेण क्वो जायते म् ॥
पापदावानछार्दिती: । प्रापदात्राग्रठप्तानों शान्तिस्तेन विना न हिं॥
नामपौयुषयणण्वरापरियुता: । संसादवमध्येअपि न शोचन्ति कदागन ॥
ि्वनान्नि महद्धक्तिर्जाटा यैणौ महात्मनाम् । तंद्रिधानां त॑ सह्ला मुक्तिर्भवति सर्वथा ॥
(दि पुः वि> २३ ॥ २९-- ३9)
† पापानौ हरणे क्रम्भो्गात्नि:ः वक्तरि यावती । शक्रोति पातकैः ताचत् कतुं नापि नरः कित् ॥
(शिः पुः विर २३।४२)