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* अध्याय ३८ *

*पवित्रकका यह उत्तम सूत नारायणमय

और अनिरुद्धमय है। धनधान्य, आयु तथा

आयोग्यको देनेवाला है, इसे मैं आपकी सेवामें दे

रहा हूँ। यह श्रेष्ठ सूत प्रद्युप्रमय और संकर्षणमय

है, विद्या, संतति तथा सौभाग्यको देनेवाला है ।

इसे मैं आपकी सेवा अर्पित करता हूँ। यह

बासुदेवमय सूत्र धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्षको

उत्तम साधन है, इसे आपके चरणोंमें चढ़ा रहा हूँ।

यह विश्वरूपमय सूत्र सब कुछ देनेबाला और

समस्त पापोंका नाश करनेवाला है; भूतकालके

पूर्वजों और भविष्यकी भावी संतानोंका उद्धार

करनेवाला है, इसे आपकी सेवामें प्रस्तुत करता

हूँ। कनिष्ठ, मध्यम, उत्तम एवं परमोत्तम-इन चार

प्रकारके पवित्रकोंका मन्त्रोच्चारणपूर्वक क्रमश: दान

देनेवाला है। संसारसागरसे पार लगानेका यह | करता ह" ॥ १०--१४॥

इस ग्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'संक्षेप्त: सर्वदेवसाधारण प्रविज्ररोपण” नामक

सँँतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २७॥

अड़तीसवाँ अध्याय

देवालय-निर्माणसे प्राप्त होनेवाले फल आदिका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं-- मुनिवर वसिष्ठ ! भगवान्‌ | बड़े हर्षके साथ विष्णुधाममें निवास करते हैं।

वासुदेव आदि विभिन्न देवताओंके निमित्त मन्दिरका | देवालयका निर्माण ब्रह्महत्या आदि पापोंके पुञ्जका

निर्माण करानेसे जिस फल आदिकी प्राप्ति होती

है, अब मैं उसीका वर्णन करूँगा। जो देवताके

लिये मन्दिर-जलाशंय आदिके निर्माण करानेकी

इच्छा करता है, उसका वह शुभ संकल्प ही

उसके हजारों जन्मोंके पापॉंका नाश कर देता है।

जो मनसे भावनाद्वारा भी मन्दिरका निर्माण करते

हैं, उनके सैकड़ों जन्मोंके पापोंका नाश हो जाता

है। जो लोग भगवान्‌ श्रीकृष्णके लिये किसी

दूसरेके द्वारा बनवाये जाते हुए मन्दिरके निर्माण-

कार्यका अनुमोदन मात्र कर देते हैं, वे भी समस्त

पापोंसे मुक्त हो उन अच्युतदेवके लोक (वैकुण्ठ

अथवा गोलोकधामको ) प्राप्त होते हैं। भगवान्‌

विष्णुके निमित्त मन्दिरका निर्माण करके मनुष्य

अपने भूतपूर्व तथा भविष्ये होनेवाले दस हजार

कु्लोको तत्काल विष्णुलोंकमें जानेका अधिकारी

बना देता है । श्रीकृष्ण-मन्दिरका निर्माण करनेवाले

मनुष्यके पितर नरकके क्लेशोंसे तत्काल छुटकारा

पा जाते हैं और दिव्य वस्त्राभूष्णोसे अलंकृत हो

नाश करनेवाला है॥ १--५॥

यज्ञॉंसे जिस फलकी प्राप्ति नहीं होती है, वह

भी देवालयका निर्माण करानेमात्रसे प्राप्त हो जाता

है। देवालयका निर्माण करा देनेपर समस्त तीथ्थोमें

सान करनेका फल प्राप्त हो जाता है। देवता-

ब्राह्मण आदिके लिये रणभूमिमें मारे जानेवाले

धर्मात्मा शूरवीरोको जिस फल आदिकी प्राप्ति

होती है, वही देवालयके निर्माणसे भी सुलभ

होता है। कोई शठता (कंजूसी )-के कारण धूल-

मिट्टीसे भी देवालय बनवा दे तो वह उसे स्वर्ग

या दिव्यलोक प्रदान करनेवाला होता है। एकायतन

(एक ही देवविग्रहके लिये एक कमरेका) मन्दिर

बनवानेवाले पुरुषकों स्वर्गलोककी प्राप्ति होती है।

ज्यायतन-मन्दिरका निर्माता ब्रह्मलोकमें निवास

पाता है। पञ्मायतन-मन्दिरका निर्माण करनेवालेको

शिवलोककी प्राप्ति होती है और अष्टायतन-

मन्दिरके निर्माणसे श्रीहरिकी संनिधिमें रहनेका

सौभाग्य प्राप्त होता है। जो षोडशायतन-मन्दिरका

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