# श्री लिंग पुराण # ८९
बीज तथा योनी तीनों ही नाम वाले भगवान महेश्वर हैं।
इस लिंग में अकार तो बीज है प्रभु ही बीजी हैं तथा
उकार योनि है।
अन्तरिक्ष आदि एक सोने के पिंड में लिपटा हुआ
एक अण्ड था। अनेकों वर्षों तक वह दिव्य अण्ड भली
भांति रखा रहा। हजारों वर्षों के बाद उस अण्ड के दो
भाग हो गये। उस सुवर्ण के अण्ड का ऊपर का कपाल
जैसा भाग आकाश कहलाया तथा नीचे का कपाल
जैसा भाग रूप, रस, गन्ध आदि पाँच लक्षणों सहित
पृथ्वी जाननी चाहिये। उस अण्ड से अकार नाम वाले
चुतुर्मुख ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए हैं, जो सम्पूर्ण लोकों के
रचने वाले हैँ ।
इस प्रकार वेदों के जानने वाले ऋषि लोग उस ॐ
का वर्णन करते ह । इस प्रकार यजुर्वेद के जानकारों को
वचनो को सुनकर ऋग् ओर सामवेद के ज्ञाता भी आदर
सहित यही कहते हैं कि वह ऐसा ही है । अकार उस ब्रह्म
का मूर्धा अर्थात् दीर्घं ललाट है। इकार दायाँ नेत्र है
ईकार वाम नेत्र है, उकार दक्षिण कान है, अकार बायाँ
कान है, ऋकार उस ब्रह्म का दायाँ कपोल है, ऋकार
उसका बायाँ कपोल है तथा लू लृ उसके दोनों नाक के
छेद हैँ । एकार उसका होंठ है, एेकार उसका अधर है ।
ओ ओर ओ क्रमशः उसकी दोनों दन्त पंक्ति है । अं उसका