८० | [ ब्रह्माण्ड पुराण
प्रसिद्ध था । समस्त कन्याओं में बहुत श्रेष्ठ ज्येष्ठा थी जो वैरिणी का सुता
थी ।३६। पिता उस कन्या को लेकर ब्रह्माजी के समीप में गया था । ब्रह्मा-
जी बराज मे समवस्थित थे और धमं तथा मन के द्वारा उपासीन थे ।४०।
जब दक्ष भव और धरं के समीप में स्थित थे तव उनसे ब्रह्माजी ने कहा
था---है दक्ष आपकी यह सुन्नत कन्य चार मनुओं को जन्म देगी जो इसके
पुत्र चारों वर्णों के करने वाले परम शुभ होंगे । ब्रह्माजी के इस वचन को
सुनकर दक्ष-धमं ओर भव उस समयमे यह किया था ।४१-४२॥
तां कन्यां मनसा जम्मुस्त्रयस्ते ब्रह्मणा सह ।
सत्याभिध्यायिनां तेषां स: कन्या व्यजायत ४३
सट णान् पतस्तेषां चतुरो वं कृमारकान् ।
संसिद्धाः कायंकरणे संभूतास्ते धियान्विताः ।।४४
उपभोगासमर्थेऽ्च सद्योजातैः शरीरकैः ।
ते टष्ट्वा नान्स्वयंभृतान्त्रह्मन्याहारिणस्तदा ॥ ४५
सरंब्धा वं व्यक्त मम पुत्रों ममेत्युत।
अभिध्यायात्मनो त्पन्नानूचुवें ते परस्परम् ॥४६
यो अस्य वपुषा तुल्यो भजतां सततं सुतम् ।
यस्य यः सटणश्चापि रूपे वीर्ये च मानतः ।। ४७
तं ग्रहणातु स भद्रंवो वर्णतो यस्य यः समः ।
ध्रुवं रूप पितुः पुत्र: सोऽनुरुध्यति संदा ॥४८
तस्मादात्मसमः पत्रः पितुर्मातुश्च वीयेत: ।
एवं ते समयं कृत्वा सर्वेषां जगृहुः सुतान् । ४६
उस समय ब्रह्माजोके साथ ही मन से उन तीनों ने उस कन्या को
गमन किया था । सत्याभि धायी उनकी कन्या के तुरन्त हो समुत्पन्न किया
था । अर्थात् रूप से उन्हीं के सहश चार क़ुमारों को जन्म दिया था वे
कार्यों के करने में संसिद्ध थे तथा श्रो पे समन्वित हुए थे ।४५। उनके तुरन्त
ही समुत्पन्न शरीर सभी उपभोगों के लिए समर्थ थे । स्वयं ही समूत्पन्न
उन कुमारों शे देखकर वे जो उस समय ब्रह्म के व्यापारी थे आपस में
बहुत ही संरम्भ वाले होकर खीं चातानी करने लगे कि यह मेरा पुत्र है--