कृपासे पूर्ण हो जाय। मेरे द्वारा कौ हुई आपकी
पूजा पूर्णतः सफल हो '॥१०--१५३ ॥
इस प्रकार प्रार्थना और नमस्कार करके
अपराधोंके लिये क्षमा माँगकर पवित्रकको मस्तकपर
चढ़ावे। फिर यथायोग्य बलि अर्पित करके
दक्षिणाद्वारा वैष्णव गुरुकों संतुष्ट करे। यथाशक्ति
एक दिन या एक पक्षतक ब्राह्मणॉकों भोजन-
वस्त्र आदिसे संतोष प्रदान करे। स्रानकालमें
पवित्रककों उतारकर पूजा करे। उत्सवके दिन
किसीको आनेसे न रोके ओर सबको अनिवार्यरूपसे
अन्न देकर अन्तमें स्वयं भी भोजन करे। विसर्जनके
दिन पूजन करके पवित्रकोंका विसर्जन करें और
उञ;
इस प्रकार प्रार्थना करे -' हे पवित्रक! मेरी इस
वार्षिक पूजाको विधिवत् सम्पादित करके अब
तुम मेरे द्वारा विसर्जित हो विष्णुलोकको पधारो ।'
उत्तर और ईशानकोणके बीचमें विष्यक्सेनकी
पूजा करके उनके भी पवित्रकोंकी अर्चना करनेके
पश्चात् उन्हें ब्राह्मणको दे दे। उस पवित्रकरमे
जितने तन्तु कल्पित हुए हैं, उतने सहल युरगोतक
उपासक विष्णुलोके प्रतिष्ठित होता है। साधक
पवित्रारोपणसे अपनी सौ पूर्व पीढ़ियोंका उद्धार
करके दस पहले और दस बादकी पीढ़ियोंको
विष्णुलोके स्थापित करता और स्वयं भी मुक्ति
प्राप्त कर लेता है॥ १६-२३ ॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें “विष्णु-प्रवित्रारेपणविधि-निरूपण” नामक
छत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ# ३६ ॥#
+ ७००कम्दत..0.
सैंतीसवाँ अध्याय
संश्चेपसे समस्त देवताओंके लिये साधारण पवित्रारोपणकी विधि
अग्निदेव कहते हैं--मुने! अब संक्षेपसे
समस्त देवताओंके लिये पवित्रारोपणकी विधि
सुनो। पहले जो चिह्न कहे गये हैं, उन्हीं लक्षणोंसे
युक्त पवित्रक देवताको अर्पित किया जाता है।
उसके दो भेद होते हैं 'स्वर्स' और 'अनलग'।
पहले निम्नाद्धित रूपसे इष्टदेवताको निमन्त्रण देना
चाहिये -' जगतुके कारणभूत ब्रह्मदेव! आप परिवार-
सहित यहाँ पधारें। मैं आपको निमन्त्रित करता
हूँ। कल प्रातःकाल आपकी सेवामें पवित्रक
नमस्कार है। यह पवित्रक स्वीकार कीजिये।
इसके द्वारा आपके लिये मणि, मूँगे और मन्दार-
कुसुम आदिसे प्रतिदिन एक वर्षतक की जानेवाली
पूजा सम्पादित हो।' “पवित्रक ! मेरी इस वार्षिक-
पूजाका विधिवत् सम्पादन करके मुझसे विदा
लेकर अब तुम स्वर्गलोकको पधार ।' "सूर्यदेव !
आपको नमस्कार है; यह पवित्रक लीजिये। इसे
पवित्रीकरणके उदेश्यसे आपकी सेवामे अर्पित
किया गया है। यह एक वर्षकी पूजाका फल
अर्पित करूँगा।' फिर दूसरे दिन पूजनके पश्चात् | देनेवाला है ।' “गणेशजी! आपको नमस्कार है;
निप्नाद्धित प्रार्थना करके पवित्रक भेंट करे-
"संसारक सृष्टि करनेवाले आप विधाताको नमस्कार
है । यह पवित्रक ग्रहण कीजिये। इसे अपनेको
पवित्र कटनेके लिये आपकी सेवामें प्रस्तुत किया
यह पवित्रक स्वीकार कीजिये। इसे पवित्रीकरणके
उद्देश्यसे दिया गया है । यह वर्षभरकी पूजाका
फल देनेवाला है ।' “शक्ति देवि ! आपको नमस्कार
है; यह पवित्रक लीजिये। इसे पवित्रीकरणके
गया है। यह वर्षभरकी पूजाका फल देनेवाला | उदेश्यसे आपकी सेवामें भेंट किया गया है। यह
है ।' "शिवदेव ! वेदवेत्ताओकि पालक प्रभो ! आपको | वर्षभरकी पूजाका फल देनेवाला है ' ॥ १--९ २ ॥