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वैष्णयच्वण्ड-उत्कल सखण्ड ]

पुरषो साप अनुराग रखते हैं, दूसरोस्म तिरस्कार और

हिंसा करते हैं; जिनका स्वभाव अत्यन्त भयक्घुर है तथा जो

# राजा इन्द्रधुस्तका पुरुषोत्तमक्षेत्रकों प्रश्थाल #

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भगवान्‌ नृसिकके घरणोंके चिन्तने विरक्त रहते है, उने

मह्न मनुप्वोको दूरसे ही स्याग देना चाहिये ।

राजा इन्द्रशुम्नका पुरुषोचमधेत्रको प्रस्थान और महानदीके तटपर विश्राम

जैमिनिजी कहते हैं--अक्षपुश्र देबर्दि नारदसे इस प्रकार

उत्तम भगवद्धक्तिका वर्णन सुनकर राजा इन्द्रसुन्न बहुत

प्रसन्न हुए और इस प्रकार वोछे--पमगषन्‌ ! विद्वान

पुरुषोंने मुझे क्ताया या कि साधुपुरुपो द्ध सब्र संसाररूपी

रोगछा नाश करनेवाला है, ऐसा साधुसक्ष मुझे इसी समय

प्राप्त हुआ दै। आपके सङ्गते मेरे अशनमय अन्यकारका

नाश हो गया, क्योंकि मेरा चित्त इस समय नीलमाधथकी

पूजा करनेके लिये अत्यन्त उतायत्प हो रहा है । अतः हम

और आप दोनों ही रथपर बैठकर चदे ओर भगयान्‌

नील्माघवका दर्शन करें। यदि आफ्के मुखस पुदपोत्तम-

क्षेत्र तीथंका शान प्रात कर सदर, तो पहलेके करे हुए.

महात्माओंके वचन भी सरक हो जायें |?

नारदजीने कदा--एजन्‌ ! वह तो बड़े दर्षकी वात

है। मैं तुम्हें पुरुषोक्तमक्षेत्र और यकि तीथोंके दर्शन

कराऊँगा । उस तीर्थं जो शक्तियों और धिष आदि हैं,

उन्हें भी दिखाऊँगा । उस क्षेत्रके माहात्म्यका भी परिव

दगा । तुम वहाँ भक्तोंकी आत्मसमर्पण करनेयाके देवेश्वर

भगवान्‌ जगन्नाधका साक्षात्‌ दर्शन करोगे ।

इस प्रकार वार्तालाप करके दोनोंने प्रतन्नतापूर्वक दिनका

कृत्य समास दिया और श्ये श्चग्खा फ्ममी बुधवारकों

पुष्प नक्षत्रमें उत्तम छन्न आनेपर यात्रा अनुकूछ होगी,

ऐसा निर्भय करके दोनोंने रातके समय एक ही स्थानपर

झयन किया | फिर सवरा होनेपर उप्रश्े्ठ इन्द्रयुख़ने माइयों-

सहित नील्यचलपर जानेके विषयम अपने राज्यमें यह घोषणा

कराधी चि (मलोग जीगनपर्यन्त पुरुषोत्तमझेधरगें नियास

करेंगे । राजाछोम अपनी रानियां, मन्त्रियों तथा परिकर्रों-

सम्रेत रथ, दाथी, घोड़ा; खजाना और पैदल सेना साथ लेकर

धर्शो चलें |! इस प्रखर आशा देकर राजा इन्द्रयुश्न अपने

आगे खड़े हुए नारद मुनिफी परिक्रमा करके छड़ीदार

सिपाहियोंसे घिरे हुए मध्यद्वारपर आये । उनके आगे-आगे

अग्निशेत्रकी अग्नि छे जायी जा रदी थी । वहाँ उन्दोंने

अपने दाहिनी ओर आह्मणोंकों खड़े हुए, देखा, जो माङ्गल्य-

सूक्तका पाठ कर रहे थे । राज़ाने भक्तिसे विनीत होकर दन्न,

आभूषण, मातम, जगन्थ ओर अनुखेपनके द्वारा उन

ब्राइणोंका पूजन किया । इसी समय एक ही साथ वेको

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खजाना खाथ लेकर शीघ्र डी प्रसित हुए, जो अवरे

अनुसार राज़्लेवार्मे उपस्थित होते ये । सामान बेचकर

जीग्रेका अलछानेवाले सेठ, व्यापारी, मी आदि भी अपनी-

अपनी विक्यक्री वस्तु छेकर राजाशाका पालन करते हुए.

चे | जिसके छिये जो मार्ग सीधा प्रतीत हुआ, बह

उसीसे गवां । नीर्मचलपर पहुँचानेबाले कठिन-से-कठिन

मामके द्वारा भी लोगोनि याजा की । महाराज इन्द्रसुद्र रुमस्त

इवाधि पा इमं मरी हुई चतररक्षिणी सेना पिर हु

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