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+ स्वस॑हिता *

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धारणा किये भूतो तथा प्रेत आदिके साथ

रहते हैं और नंग-धड़ंग हो ध्यूछ धारण किये

द्विजो ! मेरा हठ भी छूटनेब्वाला नहीं है । घेरा

दारीर पर्वतसे उत्पन्न होनेके कारण मुझमें

घूमते हैं। धूर्तं नारदने अपनी मायासे तुम्हारे

समे चिल्लानको नष्ट कर दिया, युक्तिसे

तुम्हें पोह लिया और तुमसे तप करवाया।

देवेश्वारि ! गिरिशजनन्दिनि ! तुम्ही चचार

करे कि रेरे वरको पके तुस्हें क्या सुख

मिलेगा। पहले रुद्धने बुद्धये खूब स्रोच-

विच्चारकर साध्वी सतीसे चिवाह किया।

यरतु के ऐसे मूढ़ है कि कुछ दिर भी उनके

साथ निबाह न सके । उस बेचारीको जैसे ही

दोष देकर उन्होने त्याग दिया और स्वर्यं

स्वतन्त्र हो अपने निष्कल और शोकरहित

स्वरूपका ध्यान करते हुए सीमे सुखपूर्वक

रमर गये । देवि } जो सदा अकेले रहनेचास्ठे

झान्त, सड्ऋरहित और अद्वितीय हैं, उनके ५ षं

साथ किसी स्का निर्वाह कैसे होगा? |

आज भी कुछ नहीं बिगड़ा है। तुम हमारी स्वाभायिक कठोरता विद्यमान है। अपनी

आज्ञा मानकर घर त्त्रैट चत्तों और इस बुद्धिस ऐसा वि्लारकर आपतल्लोंग मुने

दुर्बद्धिक्ो त्याग दो। पहाभागे ! इससे तपेस्यासे रोकनेका कष्ट न करें। देलर्पिका

तुम्हारा धका होगा। तुम्हारे योग्य च्रं हैं उपदेद्य-लाक्य मेरे दिव्ये परम ड्ितकारक है।

भगवान्‌ विष्णु, जो समस्त सदुणोंसे युक्त हैं। इसलिये मैं उसे कभी नहीं । वेदवेत्ता

चे वैकुण्ठमें रहते हैं, लक्ष्मीके स्वामी हैं और भी यह मानते हैं कि गुरूजनॉका वचन

नाना श्रकारकरी क्रीडाएँ करनेमें क़ुझरू हैं। हित्कारक होता है। 'गुरुओंका वचन सत्य

उनके साथ हम तुम्हारा विवाह करा देंगे और होता है', ऐसा जिनका दकु जिचार है, उन्हें

वह त्रियाह तुम्हारे ल्ियि समस्त सुख्वोंकों इहंलक्तेक और परलोकमें परम सुखको प्राप्ति

देनेवाला होगा। पार्वती ! तुम्हारा जो डके होती है और दुःख कभी नहीं होता।

साथ विवाह करनेका हट है, ऐसे हठको 'गुरुओंका वचन सत्य होता है' यदे विचार

छोड़ दो और सुखी हो जाओ । जिनके हृदयपें नहीं है, उन्हें इहलोक और

ब्रह्माजी कड़ते हैं->नारद ! उनकी ऐसी परलोके भी दुःख ही प्राप्त येता है, सुख

बात सुनकर जगदम्बिका पार्वती हैंस पड़ी कथरी नहीं मिता । अतः द्विजो ! शुरूओंके

ओर पुनः उन ज्ञानविज्ारद सुनियोंसे बोलीं । बच्चनका कभी किसी तरह भी त्याग नहीं

पार्वतीने कहा--मुनीश्चरो ! आपने करना चाहिये । मेरा घर बल्ले या उजड़ जाय,

अपनी समझसे ठीक हो कहा है। परंतु गुद्धे तो यह हठ ही सदा सुख देनेवाला है।

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