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संक्षिप्त नारदपुराण

ही शब्दब्रह्म कहा गया है और जो विशुद्ध, अक्षर, | वे प्रणवकी अर्धमात्राक ऊपर विराजमान नादस्वरूप

नित्य, पूर्ण, हदयाकाशके मध्य विराजमान अथवा

आकाशमें व्याप्त, आनन्दमय, निर्मल एवं शान्त तत्त्व

है, उसीको “परब्रह्म परमात्मा' कहते हैं, योगीलोग

अपने हृदयमें जिन अजन्मा, शुद्ध, विकाररहित, सनातन

परमात्माका दर्शन करते हैं, उन्हींका नाम पर्रम है।

मुनिश्रेष्! अब दूसरा ध्यान बतलाता हूँ, सुनो।

परमात्माका यह ध्यान संसार-तापसे संतप्त मनुष्योंको

अमृतकी व्षकि समान शान्ति प्रदान करनेवाला है।

परमानन्दस्वरूप भगवान्‌ नारायण प्रणवर्में स्थित

है-एेसा चिन्तन करें। उनकी कहीं उपमा नहीं है।

हैं। अकार ब्रह्माजीका रूप है, उकार भगवान्‌

विष्णुका स्वरूप है, मकार रुद्वरूप है तथा अर्धमात्रा

निर्गुण परब्रह्म परमात्मस्वरूप है। अकार, उकार और

मकार--ये प्रणवकी तीन मात्राएँ कही गयी हैं। ब्रह्य,

विष्णु और शिव--ये तीन क्रमशः उनके देवता हैं।

इन सबका समुच्चयरूप जो ॐकार है, वह परब्रह्म

परमात्माका बोध करानेवाला है। परब्रह्म परमात्मा

वाच्य हैं और प्रणव उनका वाचक माना गया है।

नारदजी ! इन दोनेमिं वाच्य-वाचक-सम्बन्ध उपचारसे

ही कहा गया है। जो प्रतिदिन प्रणवका जप करते हैं,

वे सम्पूर्ण पातकोंसे मुक्त हो जाते हैं तथा जो निरन्तर

उसीके अभ्यासमें लगे रहते हैं, वे परम मोक्ष पाते हैं।

३७ | जो ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप प्रणब-मन्त्रका जप

करता है, उसे अपने अन्तःकरणमें कोटि-कोटि सूर्यकि

समान निर्मल तेजका ध्यान करना चाहिये अथवा

प्रणव-जपके समय शालग्रामशिला या किसी

भगवत्प्रतिमाके स्वरूपका ध्यान करना चाहिये। अथवा

जो-जो पापनाशक तीर्थादिक वस्तु है, उसी-उसीका

अपने हृदये चिन्तन करना चाहिये । मुनीश्वर! यह

वैष्णवज्ञान तुम्हें बताया गया है । इसे जानकर योगौ श्र

पुरुष उत्तम मोक्ष पा लेता है । जो एकाग्रचित्त होकर

इस प्रसंगको पढ़ता अथवा सुनता है, वह सब पापोंसे

मुक्त हो भगवान्‌ विष्णुका सालोक्य प्राप्त कर लेता है।

[

भवबन्धनसे मुक्तिके लिये भगवान्‌ विष्णुके भजनका उपदेश

नारदजीने कहा--हे सर्वज्ञ महामुने ! सबके | शरण लेनेवाले मनुष्यको शत्रु मार नहीं सकते,

स्वामी देवदेव भगवान्‌ जनार्दन जिस प्रकार संतुष्ट | ग्रह पीड़ा नहीं दे सकते तथा राक्षस उसकी ओर

होते है, वह उपाय मुझे बताइये ।

आँख उठाकर देख नहीं सकते । भगवान्‌ जनार्दनमें

श्रीसनकजी वोले- नारदजी ! यदि मुक्ति चाहते | जिसको दृढ़ भक्ति है, उसके सम्पूर्ण श्रेय सिद्ध

हो तो सच्िदानन्दस्वरूप परमदेव भगवान्‌ नारायणका | हो जाते हैं। अत: भक्त पुरुष सबसे बढ़कर है।

सम्पूर्ण चित्तसे भजन करो। भगवान्‌ विष्णुकी | मनुष्योंके उन्हीं चैको सफल जानना चाहिये, जो

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