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ब्रह्माणवतं वणन |] [ १३५

करायी हुई सृष्टि को भली भाँति जानकर मेधावी पुरुष कभी भी मोह को

प्राप्त नहीं होता है ।४६। जो भी कोई विद्वान विप्र इस ब्रह्माजी के परम

पुरातन इतिहास का श्रवण करता है अथवा श्रवण कराता है और इसका

ध्यान भी करता है वह महेन्द्र देव के स्थानों में अनन्त वर्षों पर्यन्त आनन्द

प्राप्त किया करता है और ब्रह्म के सायुज्य को प्राप्त करके ब्रह्म के साथ

आनन्दित होता है ।४७-४८। उन प्रजाओं के स्वामी महात्माओं तथा कीत्ति-

मानों की कीत्ति को जो कि इस पृथिवी के ईश हैं संसार में प्रथित करके

ब्रह्म के ही समात हो जाता है ।४६।

धन्यं यशस्यमायुष्यं पुण्यं वेदं श्च संमितम्‌ ।

कृष्णद्रं पायनेनोक्त पुराणं ब्रह्मवादिना ॥५०

मन्वन्तरेष्वराणां च यः कीति प्रथयेदिमाम्‌ ।

देवतानामृषीणां च भूरिद्रविणतेजसाभ्‌ ।।५१

स सर्वेमु च्यते पापे पुण्यं च महदाप्नुयात ।

यश्चेदं श्रावयेद्धिद्रान्सदा पर्वणि परवैणि ॥५२

धूतपाप्मा जितस्वर्गो ब्रह्मभूयाय कल्पते ।

अक्षयं सर्वकामीयं पितृ .स्तञ्चोपतिषटते ।

यस्मात्पुरा ह्यणंतीदं पुराणं तेन चोच्यते । ५४

निरक्तमस्य यो वेद सवंपापैः प्रमुच्यते ।

तथेव त्रिषु वर्णेषु ये मनुष्या अधीयते ॥५५

इतिहासमिमं श्रुत्वा धर्माय विदधे मतिम्‌ ।

याव॑त्यस्य शरीरेषु रोमकुपानि सर्वेश: ॥५६

यह पुराण परम धन्य है--यश की वृद्धि करने वाला है--आगयु के

बढ़ाने वाला--परम स्मरूप और वेदों की समानता रखने वाला है । यह

पुराण ब्रह्मवादी श्रीकृष्ण द्वैपायन ने ही कहा है ।५६। जो मनुष्य इस

मन्वन्तरो की कीत्ति को प्रथित करता है तथा देवों की और भूरि द्रविण

तेज वाले ऋषियों की कीत्ति को फैलाता है वह सभी प्रकार के पापों से छूट

जाता है और महान पुण्य का लाभ प्राप्त क्रिया करता है और जो विद्रान

प्रत्येक पर्व पर इसका श्रवण कराता है और इस अन्तिम पादकोश्वाद्ध में

ब्राह्मणों को सुनाता है वह अक्षय और सर्वकामनाओं की पूर्ति करने वाला

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