* परत्स्यमाधवकी महिमा, समुद्रमें माजन अदिकी विधि एवं अष्टाक्षर-मन्त्रकी महत्ता *
चतुर्व्यूहन्यास पहले हृदयमें ध्यान करके बाहर कर्णिकामें भी
"ॐ शिरसि शुक्लो वासुदेव इति, * ॐ आं | उनकी भावना करे। उनके ध्यानका स्वरूप इस
ललाटे रक्तः संकर्षणो गरुत्मान् वहिस्तेज आदित्य | प्रकार है । भगवान्की चार भुजाएँ हैं। बे महान्
इति, " ॐ आं ग्रीवायां पीतः प्रद्मुप्नो बायुमेघ इतिः, | सत्त्वमय हैं, कोटि-कोटि सूरयोकि समान उनके
"ॐ आं इदये कृष्णोऽनिरुद्धः सर्वशक्तिसमन्वित | श्रीअङ्गोकी प्रभा है ओर वे महायोगस्वरूप,
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इति।*
इस प्रकार अपने आत्माका चतुर्व्यूहरूपसे
चिन्तन करके कार्य आरम्भ करे।
“मेरे आगे भगवान् विष्णु और पीछे केशव
हैं। दक्षिणभागमें गोविन्द और वामभागे मधुसुदन
हैं। ऊपर वैकुण्ठ और नीचे वाराह हैं। बीचकी
सम्पूर्ण दिशाओंमें माधव हैं। चलते, खड़े होते,
जागते अथवा सोते समय भगवान् नृसिंह मेरी
रक्षा करते हैं। मैं वासुदेवस्वरूप हूँ।' इस प्रकार
विष्णुमय होकर पूजन आरम्भ करे। अपने शरीरकी
भाँति भगवान्के विग्रहमें भी सम्पूर्ण तत्त्वोंका
न्यास करे। प्रणवका उच्चारण करके शरीरपर
जलके छट दे। "ॐ फद्' का उच्चारण सब
विष्लॉका निवारण करनेवाला और शुभ माना गया
है। वहाँ सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, वायु और
आकाशमण्डलका चिन्तन करे। कमलके मध्यभागमें
विष्णुका न्यास करे। फिर हृदयमें ज्योतिःस्वरूप
ज्योतिःस्वरूप एवं सनातन हैं। इसके बाद मन-
ही-मन भगवानूका स्मरण करते हुए मन्रोच्चारणपूर्वक
उनका आवाहन आदि करे।
आवाहन-मन्त्र
मीनरूपो वराहश्च नरसिंहोऽथ खामनः।
आयातु देवो वरदो मप नारायणोऽग्रत्तः ॥
ॐ नमो नारायणाय नमः
“मीन, वराह, नरसिंह एवं वामन-अवतारधारी
बरदायक देवता भगवान् नारायण मेरे सम्मुख पधार ।
सच्विदानन्दस्वरूप श्रीनागययणको नमस्कार है
आसन-मन्त्र
कर्णिकायां सुपीठेउत्र पद्मकल्पितमासनम्।
सर्वसतत्वहितार्थाय तिष्ठ त्ब॑ मधुसूदन ॥
ॐ नमो नारायणाय नमः
“यहाँ कमलकी कर्णिके सुन्दर पीठपर कमलका
आसन बिछा हुआ है। मधुसूदन! सब प्राणियोंका
हित करनेके लिये आप इसपर विराजमान हों।
ॐकारका चिन्तन करके कमलकी कर्णिकामें | सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीनारायणको नमस्कार है।'
ज्योति:स्वरूप सनातन विष्णुकी स्थापना करे)
फिर क्रमश: प्रत्येक दलमें अष्टाक्षर-मन्त्रके एक-
अर्घ्य-मन्त्र
ॐ जैलोक्यपतीनां पतये देवदेवाय इषीकेशाय
एक अक्षरका न्यास करे । एक-एक अक्षरके द्वारा | विष्णवे नमः। ॐ नमो नारायणाय नमः।
तथा समस्त मन्त्रके द्वारा भी पूजन करना अत्यन्त
"त्रिभुवनपतियेकि भी पति, देवताओकि भी देवता,
उत्तम माना गया है। सनातन परमात्मा विष्णुका | इन्दरियोकि स्वामी भगवान् विष्णुको नमस्कार है।
द्वादशाक्षर -मन्रसे पूजन करे। इसके बाद भगवान्का | सच्िदानन्दस्वरूप श्रीनारायणको नमस्कार है ।'
* उक्त चार वाक्योंमेंसे एक-एकका उच्चारण करके क्रमशः मस्तक, ललाट, ग्रीवा और इदयका स्पर्श करे।
इनका भावार्थं संक्षेपसे इस प्रकार है- शुक्लवर्णं वासुदेव मस्तके हैं। रक्तवर्णं बलरामजौ, गरुड़, अग्नि, तेज और
सूर्य ललाटे स्थित हैं। पीतवर्ण प्रद्युज्न तथा वायुसहित मेध ग्रीवा हैं। कृष्णवर्णं अनिरुद्ध सम्पूर्ण शक्तियोंके साथ
इृदयमें निवास करते हैं।