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एकोदिष्टश्चाद्धप्रकरण | | १४५

कि शूद्र को दान की प्रधानता बाला अवश्य होना ही चाहिए. कारण

यही है करि इस शूद्र बर्ग वाले पुरुष को केवल दानसे ही समस्त काम-

ताओं. के फलोंकी प्राप्ति हो जाया करती है इसीलिए शूद्र के लिए दान

देने का बिशेष महत्व होता है ।६६।

१६-एको द्विष्टक्राद्धप्रकरण

एकोहिष्टमंतावक्ष्ये यदुक्त चक्रपाणिना ।

भृते पत्रयेथाकार्यमाशौचडूच पितयेपि ।१

दशाहं णावभाशौचं ब्राह्मणेषु विध्रीयते ।

क्षत्रियेषु दश द्वं च पक्षं वेश्येषु चेव हि ।२

शृद्रषु मासमाशौचं सपिण्डेष विधोयते ।

ने शम्बाऽकृतचूडस्य चिरात्रम्परतेः स्मृतम्‌ ।३

जननेऽप्यवमेव स्यात्‌ सवेवर्णेषु सवदा ।

तथास्थिसञ्चियादृध्वंम ङ्गस्पर्शो विधीयते ।४

भ्रं ताय पिण्डदानन्तु द्वादशाहं समाचरेत्‌ ।

पाथेयं तस्य तत्‌ प्रोक्त यतः प्रीतिकरं महत्‌ ।५

तस्मात्‌ प्र तपुरं प्रतो द्वादशाहं न नीयते ।

ग्रहं पुत्र कलवञ्च द्वादशाहं प्रपश्यति ।६

तस्मान्निधेयमाकाशें दशरात्रं पयस्तथा ।

सवंदाहोपशान्त्यथमध्वश्रमविनाभनम्‌ ।७

महषि प्रवर सूतजी ने कटा-अव तक पार्वण तथा साधारणं श्राडों

आदि का वर्णन किया जिनके साथ आभ्वुदायिके श्रादध$को भी बतला

दिया गया था। अब एकोदिष्ट श्राद्ध के विषय में क्तलाति हैँ जिसे

भगवान्‌ चक्र पाणिने कहा है । पुत्रों के द्वारा पिता के मृतं हौ जानेपर

जिस प्रकार से आशौच करना चाहिए-यह सभी कहा जाता है ।१।

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