* शुण्डिचा-यात्राका माहात्म्य तथा द्वादश यात्राकी प्रतिष्ठा-विपि * १३७
करनेवाली है । ग्येषठमासके
८ ५४० |स न तिथिको एकार्रचनमे
वमक | किसी पवित्र जलाशयपर जाकर आचमन करे
गीत तथा मनोहर वाद्यकि दाख आराधना करेंगे, उन्हें पा भायप नए जब पाक
है १००८०] ण कः | आवाहन करके भगवान् नारायणका ध्यान करते
यों कहकर भगवान् किक"
न] | लिलके लिये पैसी विधि अदलाबी है. उसको
र नजन क्थ | उसी विधिसे स्नान करना चाहिये । स्नानके पश्चात्
उतीचमका रावं नाम, गोत्र ओर विधिका जाता पुरुष शास्त्रोक्त
| ॥कज देवताओं, ऋषियों, पितरों तथा अन्य
0 जीर्ोका तर्पण करे। फिर जलसे निकलकर दो
चाहें, उन्हें प्राप्त कर सकते हैं। | म का मा
का अल भक ) उसे करके एक सौ आठ बार गासत्रीका मानसिक जप
त करे । गायत्री सब वेर्दोकी माता, सम्पूर्ण पापोंको
करनेसे नर या नारीकौ कौन-सा फल मिलता है? किलि बा
ब्रह्माजी बोले ब्राह्मणो ! सुनो) मैं प्रत्येक | दूर अ
याग्राका फल बताता हूं । गुण्डिचामें प्रबोधिनी जत वक ०-०-५०
विधुवयोगमें ४ न द प्रणाम के। प्र् क्षत्रिय और वैश्य-इन
१.० तीन वर्णोका स्नान और जप वैदिक विधिके अनुसार
म न ~ १५५७७४०१ बताया गया है; किंतु स्त्री और शूद्रोंके स्नान और
५ पव मनुष्योंको ८ निषेध है।
यो, य ०५.७४ = ०० घरमे जाय और हाथ-
५ सिव स्त्री अल ४४- यहाँ | चैर धोकर विधिवत् आचमन करके श्रीपुरुषोत्तमकी
क वर करके | पूजा करे । पहले भगवानूको घीसे स्वान कराये।
७७०५८ कह न | फिर दधसे; उसके बाद मधु, गन्ध ओर जलसे;
उनको प्रतिष्ठा करता है ओर उस ० नप
समय धन् खर्च करनेमें कृपणता नहीं करता, वह | फिर जय
भाँति-भातिके भोगोंका उपभोग करके अन्ते स भ (348 ०
०८५००४१ | लगाये। पुनः पराभक्तिके साथ कमलसे तथा
मुनियोने कहा--देव! जगत्पते! हम आपके | ०७६. व म आय पुल
द 0 पन क| श्रोपुरुषोत्तमकी पूजा करे। भोग और मोकषके दाता
टला छा यात्राएँ | जगदीश्वर श्रीहरिकी इस प्रकार पूजा करके उनके
मे अगर, गूगल तथा अन्य सुगन्धित पदार्थोके
पूरी हो जायं, तब विधिपूर्वक उनकी प्रतिष्ठा करे । ' समक्ष