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५८ + संक्षिप्त मार्कण्डेय पुराण +

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देंगे। तत्पश्चात्‌ तुप सब लोग मिलकर दैत्यों और आपकी कृपासे हम पुनः स्वालोक प्राप्त करना

दानवॉका कशं कर सकोगे। चाहते हैं। जगत्ता ! आप निष्पाप एवं निर्लेप हैं।

गर्गने कहा--उनके ऐसा ऊकहगेपर देवगण | विद्याक्े प्रभावसे शुद्ध हुए आपके अन्तःकरणमें

दत्तात्रेयकं आश्रमपर गये और वहाँ लक्ष्मोजीके ज्ञानको किरणौ पैल रही हैं।

साथ उन महात्माका दर्शन क्रिया। सबसे पहले | दत्तात्रेयजीने कहा--देवताओ! यह सत्य हैं

उन्होने अपना कार्यसाधत करदेके लिये उन्हें कि मेरे पास विद्या है और में समदो भो हूँ;

प्रणाम क्रिया, फिर स्तवन कछिया। भक््य-भोज्य , तथापि इस नारीके सक़से मैं दूषित हो रहा हूँ.

| - क] | क्योकि रीका निरन्तर सहयोग दोषका ही कारण

होता है।

उनके ऐसा कहनेपर देवता फिर बोले--द्विजओए

ये साक्षात्‌ जगन्माता लक्ष्मी हैं। इनमें पापका लेश

थो नहों है: अत: ये कभी दूषित नहीँ होतीं। जैसे

सूर्यकी किरणें द्राह्मण और चाण्डाल दोनोंपर

पडती हैं; किन्तु अपतित्र नहीं होतीं।

2 देवताओंके ऐसा कहनेपर दत्तात्रेयजीने हँसकर

¡ । कहा--यदि तुमलोगोंका ऐसा हौ विचार है तो

| समस्त अखुरोंकों युद्धके लिये यहाँ मेरे सामने

बुला लाओ, विलम्ब न करो । मे दृष्टिपातजनित

आग्निद्धे उनके बल और तेज दोनों क्षोण हो

जायेंगे और इस प्रकार वे सब-के-सब मेरी

दृष्टिपें पडकर नष्ट हो जायँगे।

| | उनकी यह बात सुनकर देलताओंने महाबली

और माला आदि वस्तुं भेंट कों । इस प्रकार वे | दैत्योंको गुद्धकरे लिये ललकारा तथा वे क्रोधे

आराधनामें लग गये। जन्न दत्तात्रेमजी चलते तो भरकर देवताऑपर दूट पड़े। दैत्योंकी मार खाकर

देवता भौ उनके पीछे-पौछे जाते। जब ञे खड़े | देवता भयसे व्याकुल ह गये और शरण पानेकी

होते तो देवता भो ठहर जाते और जब वे ऊँचे | इच्छासे शीत्र ही भागकर दत्तात्रेयजीके आश्रमपर

आसनपर जैठते तो देवता नौचै खड़े रहकर उनको गये। दैत्य भी देवताओंको कालके गालमें भेजनेके

उपासना करते । एक दिन पैसेंपर पढ़ें हुए देवताओंसे | लिये उसी जगह जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने महाबली

दत्ताज्रेयजोने पूछा-' तुमलोग क्या चाहते हो, जो! महात्मा दत्ताग्रेयजीको देखा। उनके वापभागमें

पेरी इस प्रकार सेवा करते हो ?' चन्रमुखौ लक्ष्मीजी विराजमान थीं, जो उनकी

देवता बोले- मुनिश्रेष्ट! जम्भ आदि दानवोंने | प्रिय पत्ती एवं सम्पूर्ण जगत्‌के ल्लोगोंका कल्याण

जिलोकीपर आक्रमण करके भूर्लोक, भुवर्लोक करनेवालो हैं। वे सर्वाज्गसुन्दी लक्ष्मी स्त्रोसमुचित

आदिपर अधिकार जप लिया है और सम्पूर्ण | सम्पूर्ण उत्तम गुणोंसे त्रिभूषित थीं और मीठी

बद्धा धो हर लिये हैं; अत: आप हमारी | वाणीमें भगवानूसे वार्तालाप कर रही थीं।

रक्षक लिये उनके वधका विचार कीजिये।। उन्हें सापने देखकर दैत्योंके मनमें उन्हें प्रास

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