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५८ * संक्षिप्त ग्रह्मवैवर्तपुराण «

अंडऊ 55४8 8558 ४४% #$ ४ ५5 $ 5 $ $ $ ४ $ $ $ ४ $ $ 5 ४ $ $ ४ ४5 8 ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ 5 # 5 ४ ४४ ५४४ ॥ ४४ ४४ #॥# ४ ॥ ४ ४ ४8 ४ # # ४ ५४ 5 ४ ४5 #

करें। इस कवचके प्रसादसे मनुष्य जीवन्मुक हो | महेश्वर उवाच

जाता है। शौनकजी! यदि किसीने इस | शृणु वक्ष्यामि हे वत्स! कवचं परमाद्भुतम्‌।

कवचको सिद्ध कर लिया तो बह विष्णुरूप | अहं तुभ्यं प्रदास्यामि गोपनीयं सुदुर्लभम्‌॥ ४४॥

ही हो जाता है। | ४ पुः का

इस प्रकार श्रीग्रह्मवैवर्त महापुराणके ब्रह्मखण्डे |

= नामक श्रीकृष्णकवच पूरा हुआ। |

सौति कहते ईै- शौनक ! अब शिवका

कवच ओर स्तोत्र सुनिये, जिसे वसिष्ठजीने

गन्धर्वको दिया था। शिवका जो द्वादशाक्षर-मन्त्र

है, वह इस प्रकार है, ' ॐ नमो भगवते शिवाय

स्वाहा '। प्रभो ! इस मन्त्रको पूर्वकालमें वसिष्ठजीने

पुष्करतीर्थमें कृपापूर्वक प्रदान किया था। प्राचीन

कालमें ब्रह्माजीने रावणको यह मन्त्र दिया था

और शंकरजीने पहले कभी बाणासुरको और

दुर्वासाको भी इसका उपदेश दिया था। इस

मूलमन्त्रसे इष्टदेवको नैवेद्य आदि सम्पूर्ण उत्तम

उपचार समर्पित करना चाहिये। इस मन्त्रका

वेदो ध्यान ' ध्यायेक्रित्य परशं ' इत्यादि श्लोकके | पुरा दुर्वाससे दत्तं श्रैलोक्यविजयाय च।

अनुसार है, जो सर्वसम्मत है । मैवेदं च कवचं भक्त्या यो धारयेत्‌ सुधीः ॥ ४५॥

ॐ नमो महादेवाय जेतुं शक्रोति तैलोक्यं भगवानिव लीलया ॥ ४६॥

बाणासुर उवाच महेश्वर बोले- बेटा! सुनो, उस परम

महेश्वर महाभाग कवचं यत्‌ प्रकाशितम्‌ । अद्भुत कवचका मैं वर्णन करता हूं । यद्यपि वह

संसारपावनं नाम कृपया कथय प्रभो ॥ ४३॥ | परम दुर्लभ और गोपनीय है तथापि तुम्हें उसका

सच्विदानन्दस्वरूप श्रीमहादेवजीको नमस्कार है। | उपदेश दूँगा । पूर्वकालमें त्रैलोक्य-विजयके लिये

खाणासुरने कहा - महाभाग ! महेश्वर! प्रभो ! | वह कवच मैंने दुर्वासाको दिया था। जो उत्तम

आपने संसारपावन नामक जो कवच प्रकाशित | बुद्धिवाला पुरुष भक्तिभावसे मेरे इस कवचको

किया है, उसे कृपापूर्वक मुझसे कहिये। | धारण करता है, बह भगवान्‌की भाँति लीलापूर्वक

१. ध्यायेनित्यं महेशं ' इत्यादि श्लोक इस प्रकार है--

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं दिव्याकल्पोज्ज्वलाद्गं परशुमृगवराधीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।

तत्रासीनं समन्तात्‌ स्तुतममरगणैव्यश्रिकृत्तिं वसानं विधां विधवन्द्यं सकलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌ ॥

"प्रतिदिने महै श्वरका ध्यान करे। उनकी अङ्घकान्ति चाँदीके पर्वत अधवा कैलासके समान है, मस्तकपर मनोहर

चनद्रमाका मुकुट शोभा पाता है, दिव्य वेशभूषा एवं शृङ्गारसे उनका प्रत्येक अद्ध उज्म्बल--जगमगाता हु आ जान पड़ता

है, उनके एक हाथमें फरसा, दूसरेमें मृगछौना तथा शेष दो हाथोंपर अभयकी मुद्राएँ हैं, ये सदा प्रसन्न रहते ह, रमय सिंहासनपर

विराजमान हैं, देवता लोग चारों ओरसे खड़े होकर उनकी स्तुति करते हैं। ये बाघम्बर पहने बैठे हैं, सम्पूर्ण वि धके

आदिकारण और वन्दनीय हैं, सबका भय दूर कर देनेवाले हैं, उनके पाँच मुख हैं और प्रत्येक मुखमें तीन-तीन नेत्र हैं।

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