सहस्रपूर्दधातपनत्तशञक्ति
सहस्रवाह पुरुष पुराणम्।
शायानमनःसलिले तवैव
नारायणाख्य॑ प्रणतोऽस्मि रूपम्॥ २३४॥
दंष्राकरालं त्रिदश्ाभिवनद्ं
नमामि रूपं तव कालसंननप्॥ २३५॥
विचित्र भेदों वाले चौदह भुवन जो जल में संस्थित हैं
और जिनका एक हो पुरुष स्वामौ है तथा अनेक भेदो से
अधिवासित जगत् जिसकी अण्ड संज्ञा है ऐसे आपके रूप
को मैं नमस्कार करता हूँ। समस्त वेदों के स्वरूप वाते
अपने तेज से लोकभेद को पूरित करने वाले, एकाकी, आध,
तोबों कालों का हेतु और परमेष्ठी संज्ञा वाले, रविमण्डल में
स्थित आपके रूप के लिये मैं नत होता हूँ। हस्म
वाले, अनन्ते शक्ति से समन्वित, सहस भुजाओं से युक्त
पुराण-पुरय, जल के भोतर शयन करने वाले नारायण नाम
से प्रसिद्ध रूप को मैं नमस्कार करता हूँ। दाढा से महान
कराल, देवों के द्वारा अधिवन्दनोय-युगान्त काल में अनल
रूप को मैं नमस्कार करता हूँ। जो अशेष भूतो के अण्ड का
विनाश कारक हेतु है ऐसे आपके काल संक रूप को मैं
प्रणाम करता हूँ।
फणासहल्रेण विराजपान॑
भोगीडमुख्यैरणि पृज्यपानप्।
प्रसुप्त
नतोऽस्मि रूप तव शेपसंज्ञम॥२३६॥
अव्याहतैश्चर्यमयुग्पेत्र |
्रहमपृतानम्दरसज्ञपेकम्।
युगान्तशञेषं दिवि जृत्यमार
नतोऽस्मि रूपं तव रुद्रसंज्ञपा॥२३७॥
्रह्मेणश्ञोक प्रविहीनकूपं
नमापि ते रूपपिदं भवानि॥२३८॥
ओं नपरस्तेऽस्तु महादेवि नमस्ते परमेश्वरि
नमो भगवतीज्ञानि शिवायै ते नमो नम:॥ २३९॥
एक सहस्न फणो से विराजमान तथा प्रमुख भोगीद्धों द्वार
पून्यमान ओर जनार्दन जिसके शरीर पर आरूढ हैं, ऐसे
कूर्मप्हापुराणम्
निदरागतत शेष नाम वाले आपके रूप आगे मैं नत होता हूँ।
अप्रतिहत ऐश्वर्य से युक्त, अयुग्म नेत्रो वाले ब्रह्मामृत के
आनन्दरस के ज्ञाता, युगान्त में भी शेष रहने वाले तथा
चुलोक में नृत्य करने वाले रुद्र संक आपके रूप को मैं
प्रणाम करता हूँ। हे देवि! प्रहोण-शोक वाले, रूपहीन, सुरो
और असुरो के द्राण समर्च्ति चरण कमल वाले और
सुकोमल शुभ दीप्तियुक्त आपके इस रूप को हे भवानी! में
प्रणाम करता हूँ। हे महादेवि! आपको नमस्कार है। हे
परमेश्वरी! आपको सेवा में प्रणाम है। हे भगवति ! हे ईशानि!
शिवा के लिये बारम्बार नपस्कार है।
त्वन्पवोऽहं त्दाारस्त्वमेव च गतिर्मम।
त्वापेव शरणं यास्य प्रसीद परभेश्वरि॥ २४०॥
परया चस्ति सपो लोके देवो वा दानवोऽपि वा।
जगन्यातैव ततरो सभूता तपसा यतः॥ २४१॥
एषा तवाम्विके देवि ।
प्रेनाशेषजगन्मातुरहो में पुण्यगौरवम्॥ २४२॥
मैं आपके हो स्वरूप से पूर्ण हूँ और आप हो मेरा आधार
हो तथा आप हो मेरी गति हो। हे परमेश्वरि! प्रसन्न हों। मैं
आपको हौ शरणागति में जाऊँगा। इस लोक में मेरे समान
देव या दानव कोई भी नहीं हैं कारण यह है कि मेरी
तपश्चर्या का हो यह प्रभाव है कि आप जगत् को माता हो
और मेरी पुत्री होकर उत्पन्न हुईं हो। हे अम्बिके! हे देति!
यह तुम्हारी पितृ-कन्यका मेना अशेष जगत् कौ माता हुई
है, यह मेरे पुण्य का गौरव है।
पाहि माममरेशानि मेतया सह सर्वदा।
नपापि त्तव पादाब्जं व्रजामि शरणं शिवम्॥ २४३॥
हे देवस्वायिनि! तुम मेना सहित सर्वदा मेरी रक्षा करो।
मैं आपके चरणकपत को नपन करता हूँ और शिव कौ
शरण में जाता हूँ।
अहो मे सुमहद्धाग्यं महादेवीसमागमात्]
आज्ञाषव महादेवि कि करिष्यापि शंकरि॥ २४४॥
मेरा महान् अहोभाग्य है कि महादेवी का समागम हुआ
है। हे महादेवि! हे पार्वती! आज्ञा करो, मैं क्या करूँ?
एतावदुक्त्वा कचनं तदा हिमगिरीश्वरः।
संप्रेक्षणाणो गिरिजा प्राञ्जलिः पार्शरगो3भवत्॥ २४५॥
इतना वचन कहकर उस समय णिरिगिज हिमालय हाथ
जोड़कर पार्वती कौ ओर देखते हुए उनके समोप पहुँच गये।