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५८ + संक्षिप्त ख्रह्मपुतण *

मध्यभाग तथा पूर्व आदि दिशाओंमें क्रमशः हृदय, | दीप, नैवेच्य, साष्टाङ्ग प्रणाम, जय-जयकार तथा

सिर, शिखा, कवच, नेत्र और अस्त्रकौ पूजा स्तोत्रोंद्रार उनकी पूजा करे। इस प्रकार सहस

करे।* फिर अर्व्यं दे, गन्ध, धूप, दीप और नैवेच्च किरणोंद्वारा मण्डित जगदीश्वर सूर्यदेवका पूजन

निवेदन कर जप, स्तुति, नमस्कार तथा मुद्रा | करके मनुष्य दस अश्वमेध-यज्ञोंका फल पाता है।

करके देवताका विसर्जन करे। जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, | इतना हो नहीं, वह सब पापोंसे मुक्त हो दिव्य

वैश्य, स्त्री और शूद्र अपनी इन्द्रियोंको वशमें | शरीर धारण करता है और अपने आगे-पीछेकी

रखते हुए सदा संयमपूर्वक भक्तिभाव और विशुद्ध | सात-सात पीढ़ियोंका उद्धार करके सूर्यके समान

चित्तसे भगवान्‌ सूर्यको अर्ध्यं देते हैं, वे मनोचाज्छित | तेजस्वी एवं इच्छानुसार गमन करनेवाले विमानपर्‌

भोगोंका उपभोग करके परम गतिको प्राप्त होते | बैठकर सूर्यके लोकमें जाता है। उस समय

हैं जो मनुष्य तीनों लोकोंको प्रकाशित करनेवाले | गन्धर्वगण उसका यशोगान करते है । वहाँ एक

आकाशविहारी भगवान्‌ सूर्यकी शरण लेते हैं, वे | कल्पतक श्रेष्ठ भोगोंका उपभोग करके पुण्य क्षीण

सुखके भागी होते हैं। जबतक भगवान्‌ सूर्यको | होनेपर वह पुनः इस संसारमें आता और योगियोंके

विधिपूर्वक अर्घ्यं न दे लिया जाय, तबतक उत्तम कुलमें जन्म ले चारों वेदोंका विद्वान्‌,

श्रीविष्णु, शङ्भूर अथवा इन्द्रका पूजन नहों करना | स्वधर्मपरायण तथा पवित्र ब्राह्मण होता है। तदनन्तर

चाहिये। अतः प्रतिदिन पवित्र हो प्रयत्न करके | भगवान्‌ सूर्यसे हो योगकी शिक्षा प्राप्त करके मोक्ष

मनोहर फूलों और चन्दन आदिके द्वारा सूर्यदेवको | पा लेता है। चैत्र मासके शुक्लपक्षे भगवान्‌

अर्ध्यं देना चाहिये। इस प्रकार जो सप्तमी तिथिको | कोणादित्यकी यात्रा होती है। यह यात्रा दमनभज्जिकाके

ज्ञान करके शुद्ध एवं एकाग्रचित्त हो सूर्यको अर्घ्य | नामसे विख्यात है। जो मनुष्य यह यात्रा करता है,

देता है, उसे मनोबाउिछत फल प्राप्त होता है । रोगी | उसे भी पूर्वोक्त फलकी प्राप्ति होती है। भगवान्‌

पुरुष रोगसे मुक्त हो जाता है, धनकी इच्छा | सूर्यके शयन और जागरणके समय, संक्रान्तिके

रखनेवालेको धन मिलता है, विद्यार्थीको विद्या दिन, विषुव योगमें, उत्तरायण या दक्षिणायन

प्राप्त होती है ओर .पुत्रकी कामना रखनेवाला | आरम्भ होनेपर, रविवारको, सप्तमी तिथिको अधवा

मनुष्य पुत्रवान्‌ होता है। | पर्वके समय जो जितेन्द्रिय पुरुष बहाँकी श्रद्धापूर्षक

इस प्रकार समुद्रमें स्नान करके सूर्यकों अर्घ्य यात्रा करते हैं, वे सूर्यकी ही भाँति तेजस्वी

दे, उन्हें प्रणाम करे, फिर हाथमें फूल लेकर मौन बिमानके द्वारा उनके लोकमें जाते हैं। वहाँ

हो सूर्यके मन्दिरमें जाय। मन्दिरके भीतर प्रवेश (पूर्वोक्त क्षेत्रमें) समुद्रके तटपर रामेश्वर नापसे

करके भगवान्‌ कोणादित्यकी तीन बार प्रदक्षिणा विख्यात भगवान्‌ महादेवजौ विराजमान हैं, जो

करे और अत्यन्त भक्तिके साथ गन्ध, पुष्प, धूप, | समस्त अभिलषित फलोंके देनेवाले हैं। जो

* चूजनके वाक्य इस प्रकार हैं--'हां इृदयाय नमः, अग्रिकोणे। हों शिरसे नम;, नैत्ये। हं शिखायै नमः,

यायव्ये । है कवचाय नमः, एेशाने । डौ नेत्रत्रयाय नपः, मध्यभागे । हः अस्त्राय नमः, चतुर्दिक्षु" इति।

† ये वार्घ्यं सम्प्रयच्छन्ति सूर्याय तियतेन्द्रिया:। ग्राह्मणा: श्चत्रियां वैश्याः स्वरिव: शराश्च संयताः ॥

भक्तिभावेन सत्तं विनुद्धेनान्तरात्यना। ते भुक्त्वाभिमतान्‌ कामान्‌ प्राप्रुवन्ति परां गतिम्‌ ॥

(२८। ३७-३८)