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* पुराणौ परम॑ पुण्य भविष्य॑ सर्वसोख्यदम्‌ + [ संक्षिप्त धविच्यपुराणाङ्क

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वा सिर होनेपर दुःखी, दरिद्र, विषम होनेपर समान तथा है । बहुत गहरे और कठोर केदा दुःखदाय होते हैं। विरल,

गोल सिर होनेपर सुखी, हाथीके समान सिर होनेपर राजाके ख्िग्ध, कोमल, रमर अथवा अंजनके समान अतिद्ञाय कृष्ण

सपान होता है। जिनके केश अथया रोम मोटे, रूखे, कपिल केदावाला पुरुष अनेक प्रकारके सुखका भोग करता है और

और आगेसे फटे हुए होते हैं, वे अनेक प्रकारके दुःख भोगते रजा होता है। (अध्याय २४--२६)

अन्द

राजपुरुषोके लक्षण

कार्तिकेयजीने कहा--ब्रह्मनू! आप राजाओकिं

शारीरके अङ्गि लक्षणोंकों बतानेकी कृपा कर ।

ब्रह्माजी बोले--में मनुष्योंमे रजाओंके अड्जोकि लक्षणो

को संक्षेपमें बताता हूँ। यदि ये लक्षण साधारण पुरुषोंमें भी

प्रकट हों तो वे भी राजाके समान होते हैं, इन्हें आप सु्नें--

जिस पुरुफ्के नाभि, स्वर और संधिस्थान--ये तीन

गम्भीर हों, मुख, छूलाट और यक्षःस्थल--ये तीन विस्तीर्ण

हों, वक्ष/स्थल, कक्ष, नासिका, नख. मुख और कृकारिका--

ये छः उन्नत अर्थात्‌ ऊँचे हों, उपस्थ, पीठ, ग्रीवा और

जंघा--ये चार हस्त हों, नेत्रोंके प्रानत,हाध, पैर, तालु, ओष्ठ,

जिह्वा तथा नख--ये सात रक्त वर्णके हों, हनु, नेत्र, भुजा,

नासिका तथा दोनों स्तनॉका अत्तर--ये पाँच दीर्घ हों तथा

दन्त, केश, अङ्गुलक पर्व, त्वचा तथा नख--ये पाँच सूक्ष्म

हों, वह सपद्रोपवती पृथ्वीका राजा होता है। जिसके नेत्र

कमलदलके समान और अन्तमे रक्तवर्णके होते हैं, वह

लक्ष्मीका स्वामी होता है। शहदके समान पिङ्गल नेकाला

पुरुष महात्या होता है। सूखी आँखवात्म डरपोक, गोल और

चक्रके सपान धृमनेयाली आैत्रवात्मा चोर, केकड़ेके समान

आँखवाला क्रूर होता है। नौल कमलके समान नेत्र होनेपर

विद्धान्‌, श्यामवर्णके नेत्र होनेपर सौभाग्यश्ञाली, विशाल नेत्र

होनेपर भा्यवान्‌, स्थूल नेत्र होनेपर राजमन्त्री और दीन नेत्र

होनेपर दरिद्र होता है। भौरि विदल होनेपर सुखी, ऊँची

होनेपर अल्पायु और विषम या बहुत लंबी होनेपर दरिद्र और

दोनों भौंहोंके मिले हुए होनेपर घनहीन होता है। मध्यभागे

नीचेकी ओर झुकी भौंहवाले परदाराभिगामी होते हैं।

बालचन्द्रकलाके समान भौहें होनेपर राजा होता है। ऊँचा और

निर्मल खर्र होनेपर उत्तम पुरुष होता है, नीचा ललाट होनेषर

सतति किया जानेबाल्ल और धनसे युक्त होता है, कहीं ऊँचा

और कहीं नीचा लल्त्रट होनेपर दरिद्र तथा सीपके समान

ललाट होनेपर आचार्य होता है। स्रिग्घ, हास्ययुक्त और

दीनतासे रहित मुख शुभ होता है, दैन्यभावयुक्त तथा

आँसुओंसे युक्त आँखोवास्म एवं रूखे चेहरेवाला श्रेष्ठ नहीं है।

उत्तम पुरुषका हास्य कम्पनरहित धीरे-धीरे होता है। अधम

व्यक्ति बहुत शब्दके साथ हँसता है। हँसते समय आँखकों

मुँदनेवाल्त्र व्यक्ति पापी होता है। गोल सिरवाला पुरुष अनेक

गौ ओका स्वामी तथा चिपटा सिस्वाल्म माता-पिताको मारने-

कालः छोता है। पण्टेकी आकृतिके समान सिरवाला सदा

कहीं-न-कहीं यात्रा करता रहता है। निम्न सिरवाला अनेक

अनर्थको करनेवाला झोता है।

इस प्रकार पुरुषोंके शुभ और अशुभ लक्षणोंको मैंने

आपसे कहा। अब सयक लक्षण बतल्प्रता हूँ।

(अध्याय २७)

~न

ख्रियोंके शुभाशुभ-लक्षण

ब्रह्माजी बोले--कार्तिकिय ! स्ियेकि जो लक्षण मैंने

पहले नारदजीको बतत्थये थे, उन्हीं झुभाशुभ-लक्षणोंको

बताता हूँ। आप सावधान होकर सुर्नें-- शुभ मुहूर्तमें कन्याके

हाथ, पैर, अगुली, नख, हाथकी रेखा, जंघा, करि, नाभि,

ऊर, पेट, पीठ, भुजा, कान, जिह्वा, ओट, दाँत, कपोल, गत्र,

नेत्र, नासिकः, एाट, सिर, केश, स्वर, वर्ण ओर भौरी --हन

सबके लक्षण देखे ।

जिसकी प्रीवामें रेखा हो और नेत्रोंका प्रान्तभाग कुछ

त्मल हो, वह स्त्री जिस घरमें जाती है, उस घरकी प्रतिदिन

वृद्धि होती है। जिसके लल्याटमें त्रिशुलका चिह्न होता है, वह

कई हजार दासियौकी स्वामिनी होती है। जिस खोकी राजहेसके

समान गति, मृगके समान नेत्र, मृगके समान ही शारीरक वर्ण,

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