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वायु, तेज, जल, पृथिवी, मन, श्रोत्र, त्वचा, नेत्र,

रसना, प्राणेन्द्रिय, भूलोक, भुवर्लोक तथा सोलहहवेंमें

स्वर्लोकका पूजन करना चाहिये॥ १--४॥

तदनन्तर तृतीय आवरणमें चौबीस दलवाले

कमलमें क्रमशः महर्लोक, जनलोक, तपोलोक,

सत्यलोक, अग्निष्टोम, अत्यग्रिष्टोम, उकथ, षोडशी,

वाजपेय, अतिरात्र, आप्तोर्याम, व्यष्टि मन, व्यष्टि

बुद्धि, व्यष्टि अहंकार, शब्द, स्पर्श, रूप, रस,

गन्ध, जीव, समष्टि मन, समष्टि बुद्धि (महत्तत्त्व),

समष्टि अहंकार तथा प्रकृति-इन चौबीसकी

अर्चना करे । इन सबका स्वरूप शब्दमात्र है--

अर्थात्‌ केवल इनका नाम लेकर इनके प्रति

मस्तक झुका लेना चाहिये । इनकी पूजामें इनके

स्वरूपका चिन्तन अनावश्यक है । पचीसवें अध्यायमें

कथित वासुदेवादि नौ मूर्ति, दशविध प्राण,

मन, बुद्धि, अहंकार, पायु और उपस्थ, श्रोत्र,

त्वचा, नेत्र, रसना, भ्राण, वाक्‌, पाणि और

पाद --इन बत्तीस वस्तुओंकी बत्तीस दलवाले

कमलमें अर्चना करनी चाहिये । ये चौथे आवरणके

देवता हैं। उक्त आवरणमें इनका साङ्गं एवं

सपरिवार पूजन होना चाहिये ॥ ५--९॥

तदनन्तर बाह्य आवरणमे पायु ओर उपस्थकी

पूजा करके बारह मासोकि बारह अधिपतिर्योका

तथा पुरुषोत्तम आदि छब्बीस तत्त्वोंका यजन

करे । उनमेंसे जो मासाधिपति हैं, उनका चक्राब्जमें

क्रमशः पूजन करना चाहिये । आठ, छः, पाँच या

चार प्रकृतिर्योका भी पूजन वहीं करना चाहिये।

तदनन्तर लिखित मण्डलमें विभिन्न रंगोंके चूर्ण

डालनेका विधान है। कहाँ, किस रंगके चूर्णका

उपयोग है, यह सुनो। कमलकी कर्णिका पीले

रंगकी होनी चाहिये। समस्त रेखाएं बराबर और

अँगूठेके बराबर मोटी होनी चाहिये। एक हाथके

मण्डलमें उनकी मोटाई आधे अँगूठेके समान

रखनी चाहिये । रेखाएँ श्वेत बनायी जायं । कमलको

श्वेत रंगसे ओर संधिर्योको काले या श्याम

(नीले) रंगसे रँगना चाहिये। केसर लाल-पीले

रेगके हों। कोणगत कोष्ठलोंको लाल रंगके चूर्णसे

भरना चाहिये। इस प्रकार योगपीठको सभी

तरहके रंगोंसे यथेष्ट विभूषित करना चाहिये।

लता-वह्लरियों और पत्तों आदिसे वीथीकी शोभा

बढ़ावे। पीठके द्वारको श्वेत रंगसे सजावे और

शोभास्थानोको लाल रंगके चूर्णसे भरे।

उपशोभाओंको नीले रंगसे विभूषित करे। कोणोंके

शङ्खको श्वेत चित्रित करे। यह भद्ग-मण्डलमें रंग

भरनेकी बात बतायी गयी है। अन्य मण्डलो भी

इसी तरह विविध रंगोंके चूर्ण भरने चाहिये।

त्रिकोण मण्डलको शेत, रक्त और कृष्ण रंगसे

अलंकृत करे। द्विकोणको लाल और पीलेसे रैंगे।

अक्राब्जमें जो नाभिस्थान है, उसे कृष्ण रंगके

चूर्णसे विभूषित करे ॥ १०--१७॥

चक्राब्जके अरोंको पीले और लालसे रौंगे।

नेमिको नीले तथा लाल रंगसे सजावे और

बाहंरकी रेखाओंको शेत, श्याम, अरुण, काले

एवं पीले रंगोंसे रँगे। अगहनी चावलका पीसा

हुआ चूर्ण आदि श्वेत रंगका काम करता है।

कुसुम्भ आदिका चूर्ण लाल रंगकी पूर्ति करता है।

पीला रंग हल्दीके चूर्णसे तैयार होता है। जले हुए

चावलके चूर्णसे काले रंगकी आवश्यकता पूर्ण

होती है। शमी-पत्र आदिसे श्याम रंगका काम

लिया जाता है। बीज-मन्त्रोंका एक लाख जप

करनेसे, अन्य मन्त्रोंका उनके अक्षरोंके बराबर

लाख बार जप करनेसे, विद्याओंको एक लक्ष

श्वेत रंगकी रहें। दो हाथके मण्डलमें रेखाएँ | जपनेसे, बुद्ध-विद्याऑंको दस हजार बार जपनेसे,

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