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& श्री लिंग पुराण & ७७

का पान करने वाला पापी भी पाप मुक्त हो जाता है।

स्नान, जप, हवन आदि न करने वाला ब्राह्मण एक

हजार जप करने से शुद्ध हो जाता है । ब्राह्मण की चोरी

करने वाला तथा सोना चुराने वाला अधम मनुष्य भी

दस लाख मानसी जप द्वारा पापों से छूट जाता हे । गुरु

पतली में रत तथा माता का वध करने वाला नीच जन भी

तथा ब्रह्म हत्यारा भी इस अघोर मन से जपने से पाप से

मुक्त होता है । पापियों के साथ रहने वाले भी पापी के ही

समान है । अतः वे भी दस करोड़ जप करने से पाप से

मुक्त होते हैँ । पापियों के साथ सम्पर्क करने बाले पापी

भी एक लाख मानसी जप द्वारा शुद्ध हो जाते हें । उपांशु

जप चौगुना ओर वाणी के द्वारा बोलकर जप आठ गुना

करना चाहिए । छोटे पापों के लिए इनसे आधा जप

करना चाहिए)

ब्रह्महत्या, मदिरा पान, सोने की चोरी करने का

ओर गुरु की शव्या पर शयन करने का जो पाप ब्राह्मण

करे तो उसे रुद्र गायत्री ओर कपिला गौ के मूत्र द्वारा ही

ग्रहण करना चाहिये । वह पापी ब्राह्मण '* गन्ध द्वारा ''

आदि मन्त्र द्वारा गोबर को खावे तथा ' तेजोऽसि

शुक्रामित्य' ' मन््र से कपिला गाय का मूत्र पान ।*' अप्याय

स्वा'' आदि मन्त्र से साक्षात कपिला गौ के गव्य, दही,

दूध का पंचामृत बनाकर पान करे । '' देवस्य इति '' मन्त्र

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