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* सूर्यकी महिमा तथा अदितिके गर्भते उनके अवतारका वर्णन * ६५

भगवान्‌ सूर्यका इस स्तोत्रके द्वारा स्तवन करे । | करके कठोर नियमका पालन करती हुई एकाग्रचित्त

मुनियोंने पूछ--भगवन्‌! आपने भगवान्‌ सूर्वको | हो आकाशे स्थित तेजोराशि भगवान्‌ भास्करका

निर्गुण एवं सनातन देवता बतलाया है; फिर | स्तवन करने लगीं।

आपके ही मुंहसे हमने यह भी सुना है कि वे | अदिति बोलीं -- भगवन्‌! आप अत्यन्त सूक्ष्म,

बारह स्वरूपोंमें प्रकट हुए। वे तेजकी राशि ओर | परम पवित्र ओर अनुपम तेज धारण करते है ।

महान्‌ तेजस्वी होकर किसी स्त्रीक गर्भमें कैसे | तेजस्वियोकि ईश्वर, तेजके आधार तथा सनातन

प्रकट हुए, इस विषये हमें बड़ा संदेह है। | देवता है । आपको नमस्कार है । गोपते ! जगत्‌का

ब्रह्माजी बोले-- प्रजापति दक्षके साठ कन्याएं | उपकार करनेके लिये मैं आपकी स्तुति- आपसे

हुईं, जो श्रेष्ठ और सुन्दरी थीं । उनके नाम अदिति, | प्रार्थना करती हं । प्रचण्ड रूप धारण करते

दिति, दनु ओर विनता आदि थे। उनमेंसे तेरह | समय आपकी जैसी आकृति होती है, उसको वैँ

कन्याओंका विवाह दक्षने कश्यपजीसे किया था। | प्रणाम करती हं । क्रमश: आठ मासतक पृथ्वीके

अदितिने तीनों लोकोंके स्वामी देवताओंको जन्म | जलरूप रसको ग्रहण करनेके लिये आप जिस

दिया। दितिसे दैत्य और दनुसे बलाभिमानी | अत्यन्त तीव्र रूपको धारण करते हैं, उसे मैं

भयंकर दानव उत्पन्न हुए। विनता आदि अन्य | प्रणाम करती हूं । आपका बह स्वरूप अग्रि और

स्त्रियोंने भी स्थावर-जङ्गम भूतौको जन्य दिया। | सोमसे संयुक्त होता है । आप गुणात्माको नमस्कार

इन दक्षसुताओकि पुत्र, पौत्र और दौहित्र आदिके | है । विभावसो ! आपका जो रूप ऋक्‌, यजुष्‌

द्वारा यह सम्पूर्ण जगत्‌ व्याप्त हो गया। कश्यपके | ओर सामी 'एकतासे त्रयीसंजक इस विश्वके

पुत्रोंमें देवता प्रधान हैं, वे सात्विक हैं; इनके | रूपमेँ तपता है उसको नमस्कार है । सनातन!

अतिरिक्त दैत्य आदि राजस ओर तामस है । | उससे भी परे जो " ॐ ' नामसे प्रतिपादित स्थूल

देवताओंको यज्ञका भागी बनाया गया है। परंतु | एवं सूक्ष्मरूप निर्मल स्वरूप है, उसको मेरा

दैत्य और दानव उनसे शत्रुता रखते थे, अतः वे | प्रणाम है ।*

मिलकर उन्हे कष्ट पहुँचाने लगे। माता अदितिने। ब्रह्माजी कहते हैं--इस प्रकार बहुत दिर्नोतक

देखा, दैत्यो ओर दानवोनि मेरे पुत्रको अपने | आराधना करनेपर भगवान्‌ सूर्यने दक्षकन्या अदितिको

स्थानसे हटा दिया और सारी त्रिलोकी नषटप्राय | अपने तेजोमय स्वरूपका प्रत्यक्ष दर्शन कराया ।

कर दी। तब उन्होने भगवान्‌ सूर्यकी आराधनाके ¦ अदिति बोलीं -- जगत्‌के आदि कारण भगवान्‌

लिये महान्‌ प्रयत्न किया। वे नियमित आहार | सूर्य! आप मुझपर प्रसन्न हों। गोपते! मैं आपको

* नमस्तुभ्यं परं सूक्ष्म॑ सुपुण्यं भिभ्रतेऽतुलम्‌ । धाम धामवठामीशं धामाधारं च शाश्वतम्‌॥

अगतामुपकाराय त्वामहं स्तौमि गोपते! आददानस्य यद्रूपं तीत्रं तस्यै नमाम्यहम्‌ ॥

ग्रहीतुमष्टमासेन कालेनाम्बुमयं रसम्‌ । बिभ्रतस्तव यद्रपमतितीघ्रं नतास्मि तत्‌॥

सपेतपग्निसोमाध्यां नमस्तस्यै गुणात्मने। यदूषमृग्यजुःसाभ्रापैक्येन तपते तव॥

विश्चमेतत्रयोसंजे नमस्तस्यै विभावसो | यत्त॒ तस्मात्पर कूपमोमित्युक्त्वाभिसंहितम्‌॥

अस्थूर्ल स्थूलपमलं नमस्तस्मै सनातन ॥

(३२। १२-१६)

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