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^ पात्तालकेतुका घंध और मदालसाके साख त्तश्चगका लिवाह*

22:00 ००७४७ ### & #5:55५4: अशशप शक फालआ ५ # 9

उसक्रो चोट पहुँचायी। बाणसे आहत होकर बह

अपने प्राणः बचानेकी धुनमें भागा और वृक्षों तथा

पर्वतसे घिरी हुई नो झाड़ीपें घुस गया। वह

घोड़ा भी मनके समान वेगसे चलनेवाला था।

उसने बड़े वेगसे उस सुअरका पीछा किया।

वाराहरूपधारी दानव तीतर जेगसे भागता हुआ

सहस्नों योजन दूर निकल गवा और एक जगहे

यृध्वीपर विवस्के आकारमें दिखायी देनेवाले

गढ़ेके भीतर बड़ी फुर्तकि साथ कूद पड़ा। इसके

बाद शीघ्र हो अश्वारोही राजकुमार भी घोर

अन्धकाये भरे हुए उस भारी पढ़ेमें कूद पड़े।

उसमें जनेर्‌ राजकृपारको क॒ सूअर नहीं

दिखायी पड़ा, बल्कि उन्हें प्रकाशसे पूर्ण

ग्राताललोकका दर्शन हुआ। सामने ही इन्द्रपुरीके

समानं एक सुन्दर नगर था, जिसमें सैकड़ों सोनेके

महल शोभा पा रहे थे। उस नगरके चारों ओर

सुन्दर चहारदीवारी बनी हुई थी} राजकुमारने

उसमें प्रवेश किया, किन्तु कँ उन्हें कोई मनुष्य

नहीं दिखायी दिवा । बे नगस्में घूमने लगे। चूमते-

हौं-घूमते उन्होंने एक स्त्रीकों देखा, जो बड़ी

उतावलीके साथ कहीं चली जा रही थी । राजकुमारने

उससे पूछा--' तू किसकी कल्या है ? किस कामसे

जा रही है ?' उस सुन्दरोने कुछ उत्तर नहीं दिया।

वह चुपचाप एक महलकी सीढ़ियोंपर चढ़ गवी ¦

ऋतध्बजने भी घोड़ेकों एक जगह बाँध दिया और

उसी स्त्रीके पीछे-पीछे महलपें प्रवेश किया | ठस

समय उनके नेत्र आश्चर्यसे चक्तिते हो रहे थे।

उनके मनमें किसी प्रकारकों शङ्का नहीं थी।

महलपे पहुँतनेपर उन्होंदे देखा, एक विशाल

पलंग बिछा हुआ है, जो ऊपरसे नीचेटक सोनेका

बना है। उसपर एक सुन्दरी क्या बैंटी धी, जो

कामनायुक्त रत्ति-सो जान पड़ती थीं। चन्द्रमाके

समान पुख, सुम्दर भि, कुँदरूके समान लाल

ओठ, छरहरा शरीर और नील कमलके समान

उसके नेत्र थे। अनज्ञलताकी भाँति उस सर्नाड्भमुन्दरी

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स्मणीकों देखकर राजकुमारने समझा, यह कोई

रसातलकी दैवी है।

उस सुन्दरी जालाने भी मस्तकपर काले

घुँघराले बालोंसे सुशोभित, उभरी हुई छाती, स्थूल

कंधों और विशाल भुजाओंवाले राजकुमारको

देखकर साक्षात्‌ कामदेव ही समक्ञा। उनके आते

ही वह सहसा उठकर खड़ी हो गयी; किन्तु

उसका मन अपने चश्मे न रहा। वह तुरंत ही

लना, आश्चर्य और दीनताके बशीभूत हो गयी।

सोचने लगी-“ये कौन हैं? देवता, यश्च, गन्धर्व,

नाग अथवा विद्याधर तो नहीं आ गये ? या ये कोई

पुण्यात्मा मनुष्य हैं?” वो चिचारकर उसने लंबी

साँस ली और पृथ्वीपर नैटकर सहसरा मूच्छित हो

गयी । लकरुमारको भौ कामदेवके नाणका आघात -

सा लगा। फिर भी शैवं धारण करके उन्होंने उस

तरुणीको आश्वासन दिया और कहा--' डरनेक्रो

आवश्यकता नहाँ।' बह स्त्री, जिसे उन्होंने पहले

महलमें जाते हुए देखा था, ताड़का पंखा लेकर

व्यग्रतापूर्वक हवा करने लगी । राजकुमारने आश्वासन

देकर जब उससे मूर्च्छाका कारण पूछा, तब चह

जाला कुछ लज्जित हो गयी। उसने अपनी

सखीको सच बातें बता दीं। फिर उस सुखने

उसको मूर्च्छाका सारा कारण, जो राजकुमास्को

देखनेसे हीं हुई थी, बिस्तारपूर्वक कह सुनावा।

बह स्त्री बोली- प्रभो! देवलोके विश्वावसु

नामसे प्रसिद्ध एक ग-धर्वकि राजा है । यह सुन्दो

उन्हींकी कन्या हैं। इसका नाप मदालसा है ।

वज़केतु दानत्रका एक भयङ्क पुत्र है, जो

शत्रुओंका नाश करनेवाला है। वह संसारपें

पाताकितुके नामसे प्रसिद्ध है, उसका निनाक्चभ्थान

पातालके हीं भीतर है। एक दिन यह मद्रालसा

अपने पित्ताकरे द्याने घूम रहौ शरौ । उसी समय

उस दुरात्मा दानबने विकारमवी माधः कैलाकर

इस असहाय बालिकाकी हर लिया । उस दिन मैं

इसके साथ नहीं थीं । सुना है, आगामी त्रयोदशीकों

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