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पूर्वार्थिक ऐडपर्वीण तृतीयोऽध्यायः ३.१५

सत्करमो से प्रशंसित, वृत्र संहारकः, चुलोक में प्रतिष्ठित, शत्रुओं का विनाश करने वाले, शक्तिशाली, संग्राम

में स्थिर रहने वाले, वज्रधारक, दुष्ट-विनाशक इन्र, हमें सर्वदा विजय प्रदान करते है । अतः हम उनकी ्रशंसनीय

मनुष्य की तरह स्तुति करते हैं ॥५ ॥

३२८. प्र वो महे महे "वृधे भरध्वं प्रचेतसे प्र सुमतिं कृणुध्वम्‌ ।

विशः पूर्वीः प्र चर चर्षणिप्राः ॥६॥

हे मनुष्यो ! महान्‌ कार्य सम्पन्न करने वाते, प्रख्यात इन्द्रदेव के लिए सोम प्रदान करते हुए, श्रेष्ठ स्तोत्र से

स्तुति करो । हे इन्द्रदेव आप भी हविदाता प्रजाओं की कामना पूर्ण करते हुए उनका कल्याण करें ॥६ ॥

३२९. शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतम॑ वाजसातौ ।

शृण्वन्तमुग्रमूतये सपत्सु घ्नन्तं वृत्राणि सञ्जितं धनानि ।७ ॥

अन प्राप्ति की सम्भावना वाते, संग्राम में उत्साह सम्पन्न, ऐश्वर्यवान्‌, श्रेष्ठ वीर, ध्यानपूर्वक प्रार्थना सुनने

वाले, शत्रु-संहारक सम्पत्तिजयो इन्द्रदेव का हम अपनी सहायता के निमित आवाहन करते हैं ॥७ ॥

३३०. उदु ब्रह्माण्यैरत श्रवस्येन्द्रं समर्ये महया वसिष्ठ ।

आ यो विश्वानि श्रवसा ततानोपश्रोता म ईवतो वचांसि ॥८ ॥

हे इन्द्रियजित (वसिष्ट) ऋषे ! यश के संवर्धक, उपासकों की प्रार्थना सुनने वाले, अन (पोषक आहार)

प्राप्ति की कामना से यज्ञ मे इन्द्रदेव की महिपा का वर्णन करने वाले स्तोत्रों का पाठ करो ॥८ ॥

३३१. चक्रं यदस्याप्स्वा निषत्तमुतो तदस्मै मध्विच्चच्छद्यात्‌ ।

पृथिव्यामतिषितं यदूधः पयो गोष्वदधा ओषधीषु ॥९ ॥

अंतरिक्ष में देदीप्यपान इन्द्रदेव का वञ्च उपासको के लिए मधुर जल (पोषक रस्‌) प्रेरित करता है । पृथ्वी

पर प्रवहमान वही जल गौओं मे दूध के रूप मे ओर वनस्पतियों मे पोषक रस के रूप में विद्यमान है ॥९ ॥

॥इति द्वाविंशः खण्डः ॥

कै कै कैः

॥त्रयोविशः खण्डः ॥

३३२. त्यम षु वाजिनं देवजूतं सहोवानं तरुतारं रथानाम्‌ ।

अरिष्टनेमि पृतनाजमाशु स्वस्तये तार्यमिहा हुवेम ॥९ ॥

हम अपने कल्याण के लिए, देवताओं से सेवित. शक्तिशाली, संग्राम में उद्धार करने में सपर्ध, शत्रु सेना

पर विजय प्राप्त करने वाते, जिसकी गति रुकती नही, उस तीव्र गति से उड़ने वाले तार्यं ( गरुड़-सूर्य-इन्द्र) का

आवाहन करते हैं ॥१ ॥

३३३. त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रं हवेहवे सुहवं शूरमिद्धम्‌।

हुवे नु शक्रं पुरुहूतमिन्द्रमिदं हविर्मघवा वेत्विन्द्रः ॥२ ॥

संरक्षक एवं सहायक , युद्ध पे आवाहन योग्य, पराक्रमी, सक्षम तथा अनेक स्तोताओं द्वारा स्तुत्य, इन्द्रदेव

का हम कल्याण के निमित्त आवाहन करते ह । रेश्वर्यवान्‌ वे इनद्रदेव (याजकों द्वारा समर्पित) हविष्या को

ग्रहण करें ॥२ ॥

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