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# शरणं ब्रज स्वेशं सृत्युंजयमुमापतिम् #
[ संक्षिप्त स्कन्वपुराण
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€ंसार बन्धन दे हुए. देखे जाते हैं । तत््तशानसे रिति यहिर्मुख
हो जाते हैं, वही शाश्रत पद माना गया है । वद व्यवधान-
शल्य, निर्गुण, बोधस्वरूप, निरक्षन ( निर्लेप )» निर्विषयः
निरीद, सत्तामात्र, शनगम्य, ख्वतःसिद्ध, स्वयंप्रकाश, वेदवेद्य
तथा अगम्य है । प्रेतराज ! जिसकी जड़ अनादि कालसे चली
आ रही ट, मायाके कारण जिसको विचारमे स्ना भी
कठिन है, उस मायामय शंखारसे ऊपर उठकर तथा मायाका
शरवंथा परित्याग करके जो ममता और आसक्तिसे रहित दो
गये है, वे विकल्पशल्य नित्य पदको भास होते हैं । खंखर
कस्पनामूलक है । यह कल्पना ही नित्यकी भाँति प्रतीत होती
है। जिन्होंने इस कस्पनाको त्याग दिया दे वे परम पदको
प्राप्त होते हैं। जैवे लीपीमें चॉंदीकी प्रतीति, सर्पमें रस्सीकी प्रतीति
तथा सूर्यकी किरणोंमें जकी प्रतीति मिष्या दै, उसी प्रकार
नित्य परमात्मामें अनित्य संसारकी प्रतीति भी मिष्या दी दै ।
सम्भव है १ आनीका संसार-बन्धन वैका धी असत्य है जेते
लरगोशके सीगका होना । इसलिये अब इल विधये बहुत-
सी व्यं बातें कहनेते कोई लाम नहीं दे । विद्वान्, जितेन्द्रिय
तथा बीतराग ज्ञानी पुरष ममताका परित्याग करके परम पद-
को प्राप्त करनेकी अमिछाषा रखते हैं। जिन्होंने ममत्वकों
त्याग दिया है ओर स्मेभ तथा मोदको दूर कर दिया ह, वे
काम -गरेषसे हीन मानव परम पदको प्राप्त होते र । जबतक
मनम काम, छोभ; राग और देष डेरा डाके रहते है, तयतक
केषर शब्दमात्रका बोध रखनेवाले विद्धान् परम सिद्धि
( मुक्ति ) को नहीं प्रात रोते हैँ ।# यमराज ! जिनके सब पाप
दूर हो गये हैं वे समस्त ऋषि-मुनि शानका प्रवचन करनेवाले
तथा शानाम्यांसके अनुकूल बर्ताव करनेवाले हैं; तथापि
शानवेत्ता नहीं हैं । शान, शेष तथा शनगम्य बल्तुको जानकर
ही मलुष्य शनी कहलाता रै । कैसे जानना चाहिये, फिलके
द्वारा जानने योग्य है और जिसकों जानना अभीष्ट दैः
बह वस्तु क्या है--ये सब बाते मैं तुम्दारी जानकारीके लिये
संक्षेफ्ते बतलाता हँ । आत्मा एक ही है तथापि मेदबुद्धि
होनेसे वह अनेक-सा दिखायी देता है । जैसे मेँचरी देनेवाले-
की दृष्टम यह शषवी घूमती हुई-सी प्रतीत होती दै, उरः
प्रकार मेदबुद्धिसे एक आत्मा भी अनेक-सा प्रतीत दता है ।
अतः विचारक द्वारा ही आत्माका श्न प्राप्त करना चाहिये ।
गुरूके मुखसे भवणके द्वारा तथा भज्वीभाँति प्रयोगमें चये
हुए. विशेष मननके द्वारा भी आत्मतत्त्वका साक्षात्कार करना
उचित है । इस प्रकार आत्माकों जानकर मनुष्य अनायास ही
बन्धने मुक्त हो जाता दे । यद सम्पूर्ण चराचर जगत्
मायाका जाछ है। ममतासे उपलक्षित शोनेवा्म यद महान
संसार मायामय है । ममताकों दूर कर देनेपर बन्घनसे
अनायास छुटकारा मिल जाता है । मैं कोन हूँ; तुम कोन
हो, तथा महामायाके आमित रहनेबाले अन्य रोग भी
कसि आये हैं । वद सारा मपश्च वकरीके गलेमे छटकते हुए.
स्तनकी भोति निरर्थक रै, निष्क द, प्रकाशदीन है तथा
जआप्तुकन्ति परां सिद्धि झब्दमातैकबोधकाः ॥
( रू० मा» के ११ । ६३-३४ )