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७८ के श्री लिंग पुराण #

से कुशा द्वारा जल को अपने शरीर पर छिड़के। पंच

गव्य आदि को सोने के अथवा ताँबे के अथवा कमल

के या पलाश ( ढाक ) के पत्ते के दोने में रख ले ओर

सभी रलों की अथवा सोने की शलाका द्वारा उसे चलावे।

अघोरेश मन्त्र का एक लाख जप करे तथा घी,

चरु, तिल, जौ, चावल आदि से हर एक का अलग

सात बार हवन करे। यदि अन्य सामग्री न हो तो घी से ही

हवन करना चाहिए।

हे ब्राह्यणो! अघोर के द्वारा भगवान को निमित्त

करके हवन करने के बाद अघोर मन्त्र से ही स्नान करना

चाहिये। आठ द्रोण घी से स्नान करने पर शुद्ध होता है।

रात दिन में स्नान आदि करने के बाद उस पंचामृत को

कुची से चला कर शिवजी के सामने ही पीवे। ब्राह्मण

जप आदि करके तथा आचमन करके पवित्र होवे। इस

प्रकार करने से कृतघ्न, ब्रह्म हत्यारा तथा भ्रूण हत्यारा

( गर्भपात करने वाला ), वीर घाती, गुरु घाती, मित्र के

साथ विश्वासघात करने वाला, चोर, सोने की चोरी

करने वाला, गुरु की शय्या पर सोने वाला, शराब पीने

वाला, दूसरे की स्त्री में रत रहने वाला, ब्राह्मण का

हत्यारा, गौ का हत्यारा, माता पिता का हत्यारा, देवताओं

की निन्दा करने वाला, शिवलिंग को तोड़ने वाला तथा

अन्य प्रकार से मानसिक पाप आदि करने वाला भी

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