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श्रीकिष्णुपुराण

[ ॐ २०

अजमीढस्यान्य ऋक्षनामा पुत्रोऽभवत्‌ ॥ ७४ ॥

तस्य संवरणः ॥ ७५ ॥ संवरणात्कुरुः ॥ ७६ ॥

च इदं धर्मक्षेत्रं कुरु्चेत्रं चकार ॥ ७७ ॥

सुधनुर्जहपरीक्षित्ममुखा: कुरोः पुत्रा बभूवुः

॥ ७८ ॥ सुधनुषः पुत्रस्सुह्ोत्रस्तस्माच्च्यवन

ङच्यवनात्‌ कृतकः ॥ ७९ ॥ ततश्चोपरिचरो बसु

॥ ८० ॥ बृहद्रथप्रत्यग्रकुशाम्बकुचेलमात्य-

प्रमुखा वसोः पुत्रास्सप्राजायन्त ॥ ८९ ॥

वृहद्रथात्कुस्ाग्रः कुदाग्राद्वृषभो वृषभात्‌

पुष्पवान्‌ तस्मात्सत्यहितस्तस्मात्सुधन्वा तस्य च जतुः

॥ ८२ ॥ बृहद्रथाचान्यर््तकलद्रयजन्पा जरया

संहितो जरासन्धनामा ॥ ८३॥ तस्मात्सहदेवः

स्सहदेवात्सोपपस्ततश्च श्रुतिश्रवा ॥ ८४ ॥ इत्येते

पया मागधा भूपालछा: कथिताः ॥ ८५ ॥

अजमीढका ऋक्ष नामक एक पुत्र ओर था ॥ ७४ ॥

उसका पुत्र संतरण दुआ तथा संवरणक पुत्र कुरु वा

जिसने क्रि अधर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्री स्थापना को

॥ ७५--७७ ॥ कुरुके पुत्र सुधनु, जद् ओर परीक्षित्‌

आदि हए ॥ ७८ ॥ सुधनुका पुत्र सुहोत्र या, सुहोत्रका

च्यवन, च्यवनकर कृतक और कुतकका पुत्र उपरिचर वसु

हुआ ॥ ७९-८० ॥ वसुके बृहद्रथ, प्रत्यग्र, कुशाम्बु,

कुचेल और मात्स्य आदि सात पुत्र ये ॥ ८१ ॥ इनमेंसे

युहदथके कुशाग्र, कुदाग्रके यृषभ, युषभके पुष्पवान्‌,

पुष्पवानके सत्यहित, सत्यहितके सुधन्वा और सुधन्याके

जतुका जन्म हुआ ॥ ८२ ॥ बृहद्रथके दो खण्डोंमें विभक्त

एक पुत्र और हुआ था जो कि जरवेः द्वारा जोड़ दिये

जानेपर जरासन्ध कहलाया ॥ ८३ ॥ उससे सषदेवका

जन्म हुआ तथा सहदेवसे सोमप और सोमपसे

श्रुतिश्रवाकी उत्पत्ति हुई ॥ ८४ ॥ इस प्रकार मैने तुमसे यह

मागघ भूपा वर्णन कर दिया है ॥ ८५॥

~~~ ऋ ता

इति श्रीविष्णुपुराणे चतुर्थेऽदो एकोनिरोऽध्यायः ॥ १९ ॥

न -

बीसवाँ अध्याय

कुरुके व॑दाका वर्णन

शीपयसार उका श्रीपराकारजी जोस्ठे--[ कुर्पुत्र ] परीक्षितके

परीक्षितो जनपेजयश्रुतसेनोग्रसेन- | जनमेजय, श्रुतसेन, उग्रसेन ओर भीमसेन नामक चार पुत्र

भीमसेनाश्चत्वारः पुत्राः ॥ १ ॥ जस्तु सुरथो

नामात्मजो बभूव ॥ २ ॥ तस्यापि विदूरथः

॥ ३ ॥ तस्मात्सार्वभौमस्सार्वभौमाज्यत्मेन-

स्तस्मादाराधितस्ततश्वायुतायुरयुतायोरक्रोधनः

॥ ४ ॥ तस्पादेवातिथिः ।॥ ५॥ ततश्च

ऋश्षोऽन्योऽभवत्‌ ॥ ६ ॥ ऋक्षाद्धीपसेनस्ततश्च

दिलीपः ॥ ७ ॥ दिलीपात्‌ प्रतीपः ॥ ८ ॥

तस्यापि देवापिशान्तनुबाद्लीकसंज्ञासत्रयः पुत्रा

बभूवुः ॥ ९ ॥ देवापिर्वाल एवारण्यं विवेश

॥ १० ॥ शान्तनुस्तु महीपात्रऽभूत्‌ ॥ ९९ ॥

अयं च तस्य इलोकः पृथिव्यां गीयते ॥ ९२ ॥

हुए, तथा जूके सुरथ नामक एक पुत्र हुआ ॥ १-२॥

सुरथके कदूरथका जन्म हुआ । विदूरधके स्यर्वभौम,

सार्वभौमके जयत्तेन, जयत्सेनके आयधित, आयधितके

अयुताय, अयुतायुके अक्रोधन, अक्रोधनके देवतिचि

तथा देवतिचिके [ अजमीकके पुत्र ऋक्षसे भित्र ] दूसरे

ऋक्षका जन्म हुआ ॥ ३--६॥ ऋक्षसे भीमसेन,

भीमसेनसे दिलीप और दिल्मैपसे प्रतीपनामक पुने

हुआ ॥ ७-८ ॥

अ्तीपके देवापि, शान्तनु और बाह्लीक नामक तीन पुत्र

हुए॥ ९॥ इनमेंसे देवापि बाल्यावस्थामें ही वनमें चला

गया था अतः शान्तनु ही राजा हुआ। १०-११ ॥ उसके

विषयमे पृथिवीतलपर यह रस्त्ेक कहा जाता है ।। १२ ॥

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