ॐ अनेकरूपको नमस्कार हैं। शत्रुका स्तम्भन
कीजिये, स्तम्भन कीजिये। ॐ सम्मोहन कीजिये।
ॐ सब शत्रुओंको खदेड॒ दीजिये। ॐ ब्रह्माका
आकर्षण कीजिये। ॐ . विष्णुका आकर्षण
क़ौजिये। ॐ महेश्वरका आकर्षण कीजिये।
ॐ इन्द्रको. भयभीत कौजिये। ॐ पर्वतोंको
विचलित. कौजिये। ॐ सातों समुद्रोको सुखा
डालिये। ॐ काट डालिये, कार. डालिये।
वदद
अनिकरूपको नमस्कार है ॥४॥
मिट्टीकी मूर्ति बनाकर उसमें शत्रुको स्थित
छुआ जाने, अर्थात्, उसमें शत्रुके...स्थित -होनेकी
भावना करे। उस. मूर्तिमें. स्थित. शत्रुका ही नाम
भुजंग है; "ॐ बहुरूपाय' इत्यादि .मन्त्से
अभिमन्त्रित करके उस शत्रुके नाशके. लिये
उक्त मन्त्रका जप -करे।,इससे शत्रुका अन्त. हो
जाता है॥५॥
दद्दर
इस प्रकार आदि आग्ने महापुराणमें वुद्धजवार्णवके अन्तरत. “त्रैलोक्ग्रविजया-विद्याका.
वर्णन क्रामक एक सौ चाँतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥# १२४॥
क
एक सौ पैंतीसवाँ अध्याय
संग्रामविजय-विद्या
महेश्वर कहते हैं--देवि! अब मैं संग्राममे | दुष्टमदु्टे वा गृहीतमगृहीतं वाऽऽवेशय, ॐ नृत्य;
विजय दिलानेवाली विद्या (मन्त्र)-का वर्णन
करता हूँ, जो पदमालके रूपमे है ॥ १॥
ॐ दीं चामुण्डे
महामुखे बहुभुजे घण्टाडमरुकिक्लिणि ( हस्ते ),
अट्टाइहासे किलि किलि, ॐ दहं फट्,
दं्घोरान्धकारिणि नादशब्दबहुले
गजचर्मप्रावृतशरीरे मांसदिग्धे लेलिहानोग्रजिदे
महाराक्षसि रौद्रदं्टकराले भीमाट्ाटृहासे
स्फुरद्रिद्युत््रभे चल चल, ॐ चकोरनेत्रे चिलि
चिलि, ॐ ललजिह्ले, ॐ धीं ध्रुकुटीमुखि
हुँकारभयत्रासनि कपालमालावेष्टितजटा-
मुकुटशशाङ्कधारिणि, अद्टृहासे किलि किलि,
ॐ हूं दंष्टाघोरान््धकारिणि, सर्वविध्नविनाशिनि,
इदं कर्म साधय साधय, ॐ शीघ्रं कुरु कुरु, ॐ
फट्, ओमङ्ुशेन शमय, प्रवेशय, ॐ रङ्ग रङ्ग,
कम्पय कम्पय, ॐ चालय, ॐ रुधिरमांसमदप्रिये
हन इन, ॐ कुट कुड, ॐ छिन्द्, ॐ मारय,
ओमनुक्रमय, ॐ वज्रशरीरं पातय, ॐ श्रैलोक्यगतं
ॐ वन्द, ॐ कोटराक्ष्यूध्वकेश्युलूकवदने करङ्किणि,
पातय, ॐ शिरो गृह्ण, चक्षुमीलय, ॐ हस्तपादौ
गृह, मुद्रां स्फोटय, ॐ फट्, ॐ विदारय, ॐ
त्रिशूलेन च्छेदय, ॐ वरेण इन, ॐ दण्डेन
ताडय ताडय, ॐ चक्रेण च्छेदय च्छेदय, ॐ
शक्त्या भेदय, दंष्टरया कीलय, ॐ कर्णिकया
पाटय, ओमद्कुशेन गृह, ॐ शिरोऽश्षिज्वर-
मेकाहिक॑ द्वणहिक॑ व्याहिकं चातुधिकं
डाकिनिस्कन्दग्रहान् मुझ मुञ्च, ॐ पच,
ओपुत्सादय, ॐ भूमिं पातय, ॐ गृह्ण, ॐ
ब्रह्माण्येहि, ॐ माहेश्वर्येहि, ( ॐ ) कौमारयेहि,
ॐ वैष्पाव्येहि, ॐ वाराहोहि, ओमैन्द्रमेहि,