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कर्णाअम-धर्ममें तत्पर रहनेवाले मनुष्य, यशमें दीक्षित पुरुष

तथा अग्निहोत्री भी भगवान्‌ पुस्षोच्तमके प्रसादको स्वार

पवित्र होते हैं | दण्डि, कृपन, ग्रषद्य, ममु, स्वदेशी, परदेशी,

जो मी मर्दों आते है, उन्हें चादि कि वे कों भी भगवान्‌

विष्णु प्रखाद प्रहण करनेमें भङ्कार न दिखावें । भविति,

व्येभसे, कौसूहछसे अथवा क्षुधरा-शान्तिके निमित्त आकण्ठ भोजन

किया हुआ भगवत्यसाद सब पापोको पित्र कर देता है। जो

पण्डितमानी मूर्ख अमित तेजस्वी भगयान्‌ विष्णुके उत्त

अमृतमव प्रसादकी निन्दा करते हैं; उनकी निश्चय ही

दुर्गति दयेत है। उस प्रसादको बेचना या मोल सेना +र

अच्छा नहीं माना गया दै। मैं जगब्नाथजीके प्रलादका मोजन

करके और कुछ नहीं लाऊँगा; इस प्रकार सच्ची

प्रविश करके जो प्रतिदिन प्रसाद प्रहण करता है। बह मनुष्य

सब पापोंसे मुक्त एवं श्रुदचित्त होकर मिश्र वेकुष्टभामको

जाता है । भगवासका प्रसाद यदि चिरकाछका रक्ला हो,

दुख गया हो अथवा दूर देशमें छाया गया हो, जिस किसी

प्रकार भी उसछा उपयोग करनेफर यह समर पार्पोक्रा नाश

करनेवासा है। जगन्नाथजीके प्रसादक भन्न और गन्नाजल

दोनों बराबर ई । उनको भोजन करनेसे सब प्रार्पोत्त नाश

धि आता है। यहाँ काषठरूपी परह्य सबके नेत्रोंके समक्ष

प्रकाशित हैं । थोड़े पुष्यतराछे मनुष्योद्ना उस ग्रलादमें

विश्वास नहीं होता, उसकी महिभाफो कोई नशी आनता।

भयङ्कर कष्ठिकालमें धर्मके तीन चरणोंका नाश हो जाता

है; उसका पए ही धाद रह जाता है। उस समय प्रायः ख्व

छोग असस्पवादी, दम्भी ओर शठदतिके होते रै, धर्मसे

विमुख तथा निष्ठा ओर उपस्थके भोगम तसर रहते हैं।

ध्यान, तपस्या और बत कभी नहीं करते, सभी अत्यन्त अधर्मी,

सोमी और हिंसक होते हैं । अपना कोई प्रयोजन न होने-

पर भी दुखरोकी निन्‍्दाते चन्दु्ट होते रै, प्रसङ्ग अथवा

कौतूहलवश भी दूसरोंके कार्यकी हानि करते हैं और अपने

छोटेसे र्यके लिये भी दूसरोंके मह्त्यपूर्ण छायोंमें बाधा

उपस्थित करते ट । धर्मतः प्रास होकर अपने घरमें आयी

हुई सुन्दरी स््ीकी भी अनदेखना इसके धूरो निन्‍्दनीय

सीमे आसक्त होते हैं| अग्निशेत्र आदि कर्मे अपवा दूसरा

दरं बत भी कहीं पारित नहीं होता। यदि कहीं है; तो

यह नाक्षणोकी जीनिकाके रूपमें है। जो पारलौकिक

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ऐज़्वर्यकी इदि खरनेवाले हैं। भगवान्‌का चरणामृत अराल.

मूत्युका निवारण, रोगसमूइकां संहारं तथा पापराधिका नाश

करनेवाला है । इस प्रकार पुर्योत्तमतीरयने लक्ष्मीजीके

साय निवास करनेवाले भगवान्‌ बिष्णु सय छोगोंपर अनुप्रह

करकी इस्छासे निवा करते हुए. अनावास ही मोक्ष देते हैं।

-- न्ध -

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