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अध्याय २१ ]

यह देखकर पितामह ब्रह्माजीने उनसे अनुरोध

किया--'आप दोनों उत्तम ब्रतोंक पालन करने-

वाले है; अतएव अपने-अपने स्वभावके अनुसार

अस्त्रोंको शान्त कर दें।'

ब्रह्माजीके इस प्रकार कहनेपर विष्णु और

शिव--दोनों शान्त हो गये। तत्पश्चात्‌ ब्रह्माजीने

उन दोनोंसे कहा-' आप दोनों महानुभाव हरि

और हरके नामसे जगतूमें प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे।

यद्यपि दक्षका यह यज्ञ विध्वंस हो चुका है, फिर

भी यह सम्पूर्णताको प्राप्त होगा। दक्षकी इन देव-

संतानोंसे संसार भी यशस्वी होगा।'

लोकपितामह ब्रह्माजी विष्णु और रुद्रसे

कहकर वहाँ उपस्थित देवमण्डलीसे इस प्रकार

बोले--'देवताओ ! आपलोग इस यज्ञमें भगवान्‌

रुद्रको भाग अवश्य दें; क्‍योंकि वेदकी ऐसी

आज्ञा है कि यज्ञमें रुद्रका भाग परम प्रशस्त है।

इन रुद्रदेवका तुम सभी स्तवन करो। जिनके

प्रहारसे भग देवताके नेत्र नष्ट हुए हैं तथा जिन्होंने

पूषाके दाँत तोड़ डाले हैं, उन भगवान्‌ रुद्रकी इस

लीलासे सम्बद्ध नामोंसे स्तुति करनी चाहिये।

इसमें विलम्ब करना ठीक नहीं है। इसके

फलस्वरूप ये प्रसन्‍न होकर तुमलोगोंके लिये

बरदाता हो जायँगे।'

जब ब्रह्माजीने देवताओंसे इस प्रकार कहा

तो वे आत्मयोनि ब्रह्माजीको प्रणाम करके

परम अनुरागपूर्वक परमात्मा भगवान्‌ शिवकौ

स्तुति करने लगे। ^

देवगण बोले--' भगवन्‌! आप विषम नेत्रोंवाले

अ्यम्यकको मेरा निरन्तर नमस्कार है। आपके

सहस्र (अनन्त) नेत्र हैं तथा आप हाथमे त्रिशूल

धारण करते हैँ । आपको बार-बार नमस्कार है।

खट्वाङ्गं और दण्ड धारण करनेवाले आप

» गौरीकी उत्पत्तिका प्रसङ्ग, दक्षके यज़में रुद्र ओर विष्णुका संघर्ष *

ड९

प्रभुको मेरा बारंबार नमस्कार है। भगवन्‌!

आपका रूप अग्निकी प्रचण्ड ज्वालाओं एवं

करोड़ों सूर्योके समान कान्तिमान्‌ है। प्रभो!

आपका दर्शन प्राप्त न होनेसे हमलोग जड़

बिज्ञानका आश्रय लेकर पशुत्वको प्राप्त हो गये

थे। त्रिशूलपाणे। तीन नेत्र आपकी शोभा बढ़ाते

हैं। आर्तजनोंका दुःख दूर करना आपका स्वभाव

है। आप विकृत मुख एवं आकृति बनाये रहते हैं।

सम्पूर्ण देवता आपके शासनवर्ती हैं। आप परम

शुद्धस्वरूप, सबके स््रष्टा तथा रुद्र॒ एवं अच्युत

नामसे प्रसिद्ध हैं। आप हमपर प्रसन होँ। इन

पूषाके दाति आपके हाथोंसे भग्न हुए है । आपका

रूप भयावह है । वृहत्काय वासुकिनागको धारण

करनेसे आपका कण्ठदेश अत्यन्त मनोरम प्रतीत

हो रहा है । अच्युत ! आप विशाल शरीरवाले ह ।

हम देवताओंपर अनुग्रह करनेके लिये आपने जो

कालकूट विषका पान किया धा, उसीसे आपका

कण्ठ-भाग नील वर्णका हो गया है। सर्वलोकमहेश्वर !

विश्वमूतते ! आप हमपर प्रसन होनेकी कृपा करे ।

भगके नेत्रको नष्ट करनेमें पट्‌ देवेश्वर ! आप इस

यज्ञका प्रधान भाग स्वीकार करनेकी कृपा

कीजिये। नीलकण्ठ! आप सभी गुणोंसे सम्पन

हैं। प्रभो ! आप प्रसन हों और हमारी रक्षा करें।

भगवन्‌! आपका स्वतःसिद्ध स्वरूप गौरवर्णसे

शोभा पाता है । कपाली, त्रिपुरारि ओर उमापति-

ये आपके हौ नाम हैँ । पद्मयोनि ब्रह्मासे प्रकट

होनेवाले भगवन्‌! आप सभी भयोंसे हमारी रक्षा

करें। देवेश्वर आपके श्रीविग्रहके अन्तर्गत हम

अनेक सर्ग एवं अड्भोंसहित सम्पूर्ण वेद, विद्याओं,

उपनिषदों तथा सभी अग्नियोंकों भी देख रहे है ।

परम प्रभो! भव, शर्व, महादेव, पिनाकी, हर

और रुद्र-ये सभी आपके ही नाम है । विश्वेश्वर!

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