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* विद्योश्वरसंहिता * ष्‌

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उसका नाम पूजा है । मनोवाच्ित वस्तु तथा आवणमास्रमें की जानेवाली श्रीहरिकी पूजा

ज्ञान--ये ही अधीष्ट वस्तुतै $; सकाम अभीष्ट मनोरथ और आरोग्यं प्रदान

भावतालेको अभीष्ट भोग अपेक्षित होता ै करनेवास्की देती है। अङ्ग एव॑

और निष्काम भाववालेकौ अर्थ-- उपकरणोहित पूर्वोक्त गौ आदि बारह

पारमार्थिक ज्ञान। ये दोनों ही पृजा-

शब्दके अर्थ हैं; इनकी योजना करनेसे ही

पूजा-शाब्दकी सार्थकता है। इस प्रकार

बस्तुओंका दान करनेसे जिस फलकी आप्मि

होती है, उसीको ह्वादशी तिथिमें

आराधनाद्मरा श्रीविष्णुकी तृप्ति करके

लेक और वेदे पूजा-झब्दका अर्थ मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जो द्वादशी

विख्यात है। नित्य और नैमित्तिक कर्म तिधिको भगवान्‌ विष्णुके खारह भामोद्वारा

कारूान्तरमें फल देते हैं; किन्तु काम्य बारह ब्राह्मणोंका घोडझोपचार पूजन करता

कर्मका यदि भलीभाँति अनुष्ठात हुआ हो तो है, वह उनकी असच्नता प्राप्त कर छेत्ता है।

हे तत्काल फलद होता है। प्रतिदिन एक इसी प्रकार सम्पूर्ण देवताओंके विभिन्न

पक्ष, एक मास और एक वर्षतक लगातार

क्षय होता है।

अत्येक मासके कृष्णपक्षकी चतुर्थी

तिधिको की हुई महागणपतिक्री पूजा एक

पक्षके पापोंका नाश करनेवाली और एक

पक्षतक्र उत्तम भोगरूपी फल देनेवाली होती

होती है और जब सूर्य सिंह राशिपर स्थित

हों, उस समय नाद्रपदमासकी चतुर्थीको की

हुई गणेराजीकी पूजा एक बर्षतक

मनोवाच्छिते भोग प्रदान करती है--ऐसा

जानना चाहिये। श्रावणमासके रचिवारको,

हस्त नक्षत्रसे युक्त सप्तमी तिथिको तथा

माघझुक्का सप्तमीको भगवान्‌ सूर्यका पूजन

करना चाहिये। च्येष्ठ तथा भात्रपदमासोंके

खुधयारको, अवण नक्षत्रसे युक्त द्वादशी

तिधिकी तथा केवल द्वादशीको भी किया

गाया भगवान्‌ चिष्णुका पूजन अभीष्ट

सप्यस्तिकको चेनेलाका पाना ग्या कै)

कर्ककी संक्रान्तिसे युक्त श्रावणमासे

नवमी तिथिको मृगझिरा नक्षत्रके योगमें

अम्बिकाका पूजन करे। वे सम्पूर्ण

पनोवाच्छित भोगों और फल्मको दैनेखात्की

है । रेश्र्यच्टी इच्छा रखनेवाले पुरुषो उस

दिने अवश्य उनकी पूजा करनी चाहिवे ।

आश्चिनपासके सुक्क पश्षकी नवमी तिश्रि

सम्पूर्णं अभीष्ट फलॉको 'देनेवात्टी है। उसी

मासके कृष्ण ॒पश्चकी चतुर्दशीकी यदि

रविवार पड़ा हो तो उस दिनका महत्व विशेष

बढ़ जाता है । उसके साथ ही यहि आर्क्र और

महार््रा (सूर्यसंकरान्तिसे युक्त आर्द्र) का

योग हो तो उक्त अवसरोपर की हुई

क्िवपूजाका यिदोष महत्त्व माना गया है ।

माघ कृष्णा चतुर्दशीको की हुई शिवजीकी

पूजा सप्पूर्ण अभीष्ट फलोको देनेवाली दै ।

चह मनुष्योकी आयु बढ़ाती, पृत्यु-कष्टको

दूर हटाती और सपस्त सिद्धिर्योकी आसि

कराती है ज्येषटपपा्पे अरुर्दशीकों यदि

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